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युद्धों के विनाश से बचाया कला संस्कृति ने, विश्व को शांति एवं सद्भावना संदेश दिया- प्रदीप शर्मा


रंगमंच कला का जनक भारत, भरतमुनि का नाट्यशास्त्र इसका प्रमाण दशपुर नगर की सामाजिक संस्थाओं ने मिलकर मनाया विश्व रंगमंच दिवस
मन्दसौर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद, स्पीक मैके, सार्थक, इनरव्हील क्लब, संजय ड्रीम्स, मालवा मेवाड़ फिल्मस, टेलेण्ट ऑफ मंदसौर ने दिनांक 27 मार्च 2024 को विश्व रंगमंच दिवस सार्थक संस्था एवं इनरव्हील क्लब अध्यक्षा डॉ. उर्मिला तोमर की अध्यक्षता, फिल्म निर्माता निदेशक एवं पटकथा लेखक श्री प्रदीप शर्मा (मालवा मेवाड़ फिल्मस) के मुख्य आतिथ्य संजय ड्रीम्स के संजय भारती प्रमुख वक्ता, स्पीक मैके कोऑर्डिनेटर श्रीमती चंदा डांगी एवं अजय डांगी, टेलेण्ट ऑफ मंदसौर के नरेन्द्र त्रिवेदी, वंदना त्रिवेदी, गीतकार एवं गायक नन्दकिशोर राठौर, शार्ट फिल्म सिने कलाकार प्रीति कुमावत, अखिल भारतीय साहित्य परिषद अध्यक्ष नरेन्द्र भावसार, चन्द्रकला भावसार के सानिध्य में मनाया गया।
इस अवसर पर प्रमुख वक्ता संजय भारती ने कहा कि रंगमंच के आधुनिक स्वरूप थियेटर की शुरुआत 1962 से हुई। बम्बई का पृथ्वी थियेटर बहुत पुराना एवं नामचीन थियेटर रहा। जिससे कई कलाकारों को अपनी कला को निखारने का अवसर दिया।
प्रमुख अतिथि श्री प्रदीप शर्मा ने कहा कि रंगमंच कला विश्व की प्राचीनतम  कला है जिसका जनक भारत रहा है। ईसा से 400 वर्ष पूर्ण भरतमुनि का नाट्यशास्त्र इसका प्रमाण है। जिसमें 36 चैप्टर, 9 रस, 16 कलाओं का विस्तार से वर्णन मिलता है। भारत में वैदिक काल से ही व्यापारियों के साथ कलाकार भी एक देश से दूसरे देश आते जाते रहे थे। व्यापारी महीनों प्रवास पर रहते उनके स्वस्थ मनोरंजन हेतु इन कलाओं का सहारा लिया जाता था।
भारत में कालिदास के नाटकों मेघदूत, अभिज्ञान शाकुंतलम, मालविका एवं विक्रमोवर्शीयम, ऋतु संहार ने भी भारतीय रंगमंच कला को पुष्ट ही किया है।
रंगमंच के काल ने विश्व को शांति एवं सद्भाव का संदेश ही दिया क्योंकि कला संस्कृति में जहां कला वहां प्रेम जहां प्रेम वहां युद्ध नहीं होते थे। या यू समझे जहां प्रेम वहां शांति एवं सद्भाव। डॉ. उर्मिला तोमर ने कहा कि रंगमंच जिसे नाट्यकला भी कहा जाता है। इससे शांति सद्भाव के संदेश के साथ सामाजिक जीवन पर भी बहुत प्रभाव डाला, भरतमुनि का नाट्यशास्त्र हो या कालिदास के नाटक इन्होंने एक सामाजिक जीवन शैली को विकसित किया। हबीब तनवीर के नाटक, गोपाल दुबे की नाट्य मंडली ‘भूमिका’ अपने नाटकों से आज भी समाज को दिशा देने का कार्य कर रहे है।नरेन्द्र त्रिवेदी ने कहा कि रंगमंच कला का प्रभाव आज भी देखने को मिल रहा है। मराठी नाटक या असमियाँ नाटक आज भी लोकप्रियता के शिखर पर हो। दशपुर नगर भी रंगमंच के प्रभाव से अछूता नहीं रहा। छोटे-छोटे कार्यक्रम ही सही पर रंगकर्म को दशपुर ने आज भी अपना रखा है। आज का आयोजन भी इसी आशा को बलवती करता है कि, सभी संस्थाएं मिलकर दशपुर में रंगकर्म एवं इससे जुड़े कलाकारों को उनके जुनुन के साथ जोड़कर इस विशा को ऊंचाईयों पर पहुंचाएगा।इस अवसर पर गीतकार एवं गायक नंदकिशोर राठौर ने कहा कि मैंने अपने जीवन में नाटको को रामलीला के रूप में देखा ही नहीं जिया भी है। बचपन में राम जैने धनुष को लिये चलना, युद्ध करना तथा हनुमान जैसे उछल उछल कर चलना, समुद्र लांघने के प्रयास के टापरे पर चढ़कर नीचे कूद जाना आज भी याद है। सेवानिवृत्ति के बाद फिर रंगकर्मी से जुड़कर कविताएं एवं गीत लिखना एवं गाना मेरे जीवन का बेस्ट परफार्मेंस बन गया है।
इस अवसर पर नरेन्द्र भावसार ने कहा कि दुनिया एक रंगमंच है। और हम सब उसके किरदार को शिद्दत से निभाए। इस अवसर पर प्रीति कुमावत, वंदना त्रिवेदी, अजय डांगी ने भी अपने विचार रखे।
कार्यक्रम का संचालन नरेन्द्र भावसार ने किया। सरस्वती वंदना श्रीमती चन्द्रकला भावसार ने प्रस्तुत की। 

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