अंतर्राष्ट्रीयनई दिल्ली

द्विदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफलता पूर्वक समापन

सीकेएनकेएच हिंदी साहित्य समिति द्वारा

 

दिल्ली

चलो कुछ न्यारा करतें हैं फाउंडेशन के हिंदी साहित्य समिति द्वारा आयोजित द्विदिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन आज दिनांक 28 फरवरी 2024 को संपन्न हुआ । संगोष्ठी का विषय भारतीय गद्य साहित्य के साहित्यकारों एवं समाज सुधारकों का हिंदी साहित्य में अवदान रखा गया था अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रमुख रूप से आज मुख्य वक्ता के रूप में मिशिगन टेक्नोलॉजीकल यूनिवर्सिटी मिसिगन ( संयुक्त राज्य अमेरिका ) के प्रो. डॉ प्रीतम मंडल उपस्थित रहे । सर्वप्रथम मां सरस्वती की आराधना के पश्चात संगोष्ठी के द्वितीय दिवस का शुभारंभ हुआ स्वागत भाषण के बाद चलो कुछ न्यारा करतें हैं फाउंडेशन के संचालक मंडल अध्यक्ष राघब चंद्र नाथ ने बताया साहित्य केसे संस्कृति का ज्ञान कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उन्होंने कहा किसी भी काल का अध्ययन से हम तत्कालीन मानव जीवन के रहन-सहन व अन्य गतिविधियों को आसानी से जान सकते हैं, साहित्य से हम अपने विरासत के बारें में सीख सकते हैं।

अपने वाणी में डॉक्टर नम्रता जैन ने बताया कि साहित्य में समाज की विविधता, जीवन-दृष्टि और लोककलाओं का संरक्षण होता है। साहित्य समाज को स्वस्थ कलात्मक ज्ञानवर्धक मनोरंजन प्रदान करता है जिससे सामजिक संस्कारो का परिष्कार होता है । रचनाएँ समाज की धार्मिक भावना, भक्ति, समाजसेवा के माध्यम से मूल्यों के संदर्भ में मनुष्य हित की सर्वोच्चता का अनुसंधान करती हैं।

प्रो. डॉ प्रीतम मंडल ने अपने वक्तव्य में कहा कि साहित्य का आविर्भाव भी इसी समाज से होता है जिसे रचनाकार अपने भावों के साथ मिलाकर उसे एक आकार देता है। यही रचना समाज के नवनिर्माण में पथप्रदर्शक की भूमिका निभाने लगती है। अज्ञेय मानते हैं कि साहित्यकार होने के नाते अपने समाज के साथ उनका एक विशेष प्रकार का संबंध है।

अंत में हिंदी साहित्य समिति की अध्यक्षा डॉ. नम्रता जैन ने मुख्य वक्ताओं का एवं इस संगोष्ठी में प्रतिभाग करने वाले प्रतिभागियों का तथा सी.के.एन.के.एच फाउंडेशन के संचालक मंडल अध्यक्ष एवं सभी साथियों का ह्रदय की गहराइयों से आभार व्यक्त किया । डॉ नम्रता ने बताया कि आज संगोष्ठी के समापन तक पूरे भारत से लगभग 135 विद्वानो ने अपने-अपने शोध पत्रों का वाचन किया । जिसमे ऑफलाइन मोड पर रवि कुमार ने हमारे बीच में उपस्थित होकर हिंदी साहित्य में उत्तर प्रदेश के साहित्यकारों का योगदान एवं अमित कुमार ने उत्तर प्रदेश के साहित्यकारों में मूल रूप से राजेंद्र यादव और सर्वेश्वर दयाल पर अपने विचार व्यक्त किए । डॉ नम्रता ने बताया कि इस संगोष्ठी का सुचना 1 महीने पहले ही निकाला गया था और सभी विद्वानों का भारत के प्रत्येक राज्य से इतना प्यार और स्नेह प्राप्त हुआ कि संगोष्ठी का समापन स्वरुप देने में हमें 1 महीने से भी कम समय लगा डॉ नम्रता ने बताया कि सभी विद्वानों के शोध पत्रों जर्नल में प्रकाशित किया जाएगा ।

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