मंदसौर जिलासीतामऊ

संघ द्वारा 16 दिसंबर विजय दिवस पर दंड प्रहार महायज्ञ का आयोजन किया गया

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सीतामऊ। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा नगर के श्रीराम विद्यालय मैदान प्रांगण में 16 दिसंबर विजय दिवस पर स्वयंसेवकों का दंड प्रहार महायज्ञ का आयोजन प्रातः कालीन बेला में स्वयंसेवकों के संपद के साथ ही प्रारंभ हुआ इस अवसर पर स्वयं सेवकों ने पूज्य भगवा ध्वज को नमन करते हुए राष्ट्र के प्रति अपने समर्पण भाव रखते हुए दंड प्रहार महायज्ञ कार्यक्रम में सहभागिता की।

इस अवसर पर विजय दिवस पर अपने बौद्धिक में संघ के विस्तारक श्री विनीत पंवार ने अपने उद्बोधन में कहा कि ऐसी क्या स्थिति हो गई थी कि हमारा देश हिंदू राष्ट्र था और हिंदू राष्ट्र होने के बाद देश बदल गया। उसके पिछे कुछ लोगों के निजी स्वार्थ के कारण हुआ है। श्री पंवार ने कहा कि जब मुगल आए तो उन विदेशी आक्रांताओं का अपने पर राज करना कही न कही अपना स्वार्थ रहा है त्रेता युग में मंत्रों कि शक्ति थी सतयुग में और कलयुग में संगठन कि शक्ति कि आवश्यकता महसूस हुई जिसे केशवराव बलिराम हेडगेवार जी ने 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कि स्थापना कर हमें राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव जगाया है। आज 16 दिसंबर को प्रहार महा यज्ञ का दिन इसलिए मना रहे हैं कि आज के दिन पाकिस्तान के द्वारा हमारे देश पर घुसपैठ कर निर्दोष नागरिकों को मारा जा रहा था तब 1971 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया और विजय पताका फहराई। इस आज का दिन विजय दिवस है।

200 वर्ष अंग्रजों ने राज किया और 70 वर्ष हमारी आजादी को हो गये पर जो मिलना चाहिए वो नहीं मिला पर अब जब कश्मीर अपना होते हुए भी दुसरा देश कहलाता था पर स्थिति बदली और धारा 370 समाप्त होने के बाद कश्मीर हमसे पूरी तरह से जुड़ गया है। हम सत सनातन धर्म से जुड़े हुए हैं सबको साथ लेकर चलने वाले हैं। 2025 में संघ 100 वर्ष शताब्दी पूर्ण करने जा रहे हैं। संघ केवल भारत में ही नहीं पूरे विश्व में काम कर रहा है। हम विश्व मंगल कि कामना करने वाले हैं। हमारे जो कलंक थें अब धीरे धीरे मीट रहे हैं। हमारे देश के राष्ट्रपति ने भारत को भारत का नाम दिया है।अब इंडिया नहीं कहेंगे। ऐसे ही भारत राष्ट्र में मुगलों आक्रांताओं के कलंक को मिटाने तथा पुनः भारत परम वैभव कि और बढ़े तथा विश्व गुरु बने इसके लिए निरंतर कार्य हो रहे हैं। हम सबको भी हमारे सत सनातन धर्म के प्रति अपने समर्पण भाव कि आहुति देते रहना है।

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