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जीवन दो प्रकार से जिया जा सकता है तपस्या कर कर या तमाशा बनाकर -पं श्री पुरोहित

जीवन दो प्रकार से जिया जा सकता है तपस्या कर कर या तमाशा बनाकर -पं श्री पुरोहित

किशनगढ़ ताल

ठाकुर शंभू सिंह तंवर

ग्राम दौलतगंज में चल रही सत्यदेव शिव भागवत कथा में आज गांव में चुनरी यात्रा निकाली गई चुनरी 351 मिटर  चुनरी माता शीतला को चढ़ाई गई।

सप्त दिवसीय भागवत कथा के पांचवें दिन कथा वाचक पंडित गोपाल पुरोहित शामगढ़ में बताया जीवन को दो ही तरीके से जिया जा सकता है, तपस्या बनाकर या तमाशा बनाकर। तपस्या का अर्थ जंगल में जाकर आँखे बंद करके बैठ जाना नहीं अपितु अपने दैनिक जीवन में आने वाली समस्याओं को मुस्कुराकर सहने को क्षमता को विकसित कर लेना है।

हिमालय पर जाकर देह को ठंडा करना ही तपस्या नहीं अपितु हिमालय सी शीतलता दिमाग में रखना जरुर है। किसी के क्रोधपूर्ण वचनों को मुस्कुराकर सह लेना जिसे आ गया, सच समझ लेना उसका जीवन तपस्या ही बन जाता हैं।

छोटी-छोटी बातों पर जो क्रोध करता है निश्चित ही उसका जीवन एक तमाशा सा बनकर ही रह जाता है। हर समय दिमाग गरम रखकर रहना यह जीवन को तमाशा बनाना है और दिमाग ठंडा रखना ही जीवन को तपस्या सा बनाना ही है।

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