बम धमाकों के बीच बच्चों को लेकर एयरपोर्ट पहुंचे:दहशत के बीच बांग्लादेश से पति के साथ इंदौर लौटी बेटी की आपबीती
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इंदौर । 1947 में भारत-पाकिस्तान के पार्टीशन के समय लाखों परिवारों को अपना सबकुछ वहीं छोड़कर आना पड़ा था। कुछ ऐसे ही हालात इस समय बांग्लादेश में भी बने हुए हैं। आरक्षण के मसले पर विरोध-प्रदर्शन, प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद अंतरिम सरकार के गठन के बीच पड़ोसी मुल्क हिंसा, आगजनी और लूटपाट से जूझ रहा है। इसमें भी सबसे ज्यादा खौफ में वहां के अल्पसंख्यक खासतौर पर हिंदू परिवार हैं। हिंदुओं और गैर बांग्लादेशियों को टारगेट किया जा रहा है। इस सबके बीच इंदौर की एक बेटी-दामाद अपने दो छोटे बच्चों के साथ बड़ी मुश्किल से जान बचाकर वतन वापस लौटे हैं। दैनिक भास्कर ने वापस लौटे परिवार के लोगों से बात कर वहां के हालात के बारे में जानने की कोशिश की…
इंदौर निवासी अजय शिवानी ने दैनिक भास्कर से चर्चा में सारी कहानी बयां की।
घर के बाहर से गोलियों और बम के धमाके की आवाजें आ रही थी। डर के कारण परिवार को लेकर घर के भीतर ही रहे। हिंदुओं को टारगेट कर उनके साथ मारपीट की जा रही थी। दिन में सड़कों पर निकलना खतरे से खाली नहीं था। स्थिति बिगड़ती देख इंडिया लौटने की प्लानिंग की। परसों (सोमवार) की दोपहर 12 बजे की फ्लाइट थी। टिकट भी बुक कर लिया, लेकिन एयरपोर्ट तक पहुंचना ही मुश्किल था। रास्ते में तलवार, बंदूकों से हमला कर उपद्रवी लोगों को मार रहे थे। खतरा कम रहे इसलिए रात में ही एयरपोर्ट पहुंचने का तय किया। देर रात जैसे-तैसे उपद्रवियों से बचते-बचाते छोटे-छोटे बच्चों को लेकर एयरपोर्ट पहुंचे। सुबह के करीब 3 बजे गए थे। फ्लाइट के इंतजार में दोपहर तक एयरपोर्ट पर ही बैठे रहे। उम्मीद थी कि सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही दिल्ली पहुंच जाएंगे, तभी पता चला कि फ्लाइट कैंसिल हो गई है। घबराहट और बढ़ गई। जगह-जगह जैमर लगे हुए थे, इसलिए घर में भी किसी से बातचीत नहीं हो पा रही थी। रात को 8.30 बजे ढाका से दिल्ली की फ्लाइट रि-शेड्यूल हुई तब राहत मिली। अब वापस जा भी पाएंगे या नहीं कुछ पता नहीं था। यह कहना है बांग्लादेश की राजधानी ढाका से वापस लौटे इंदौर निवासी अजय शिवानी की बेटी पल्लवी शिवानी और दामाद सुनीत दीक्षित का। पिता अजय बताते हैं, पिछले 2-3 दिन से घर में डर का माहौल बना हुआ था। बेटी पल्लवी और दामाद सुनीत अपने 9 और 6 साल के दो बेटों के साथ बुधवार सुबह इंदौर पहुंचे तो जान में जान आई। दोनों ढाका (बांग्लादेश) की डिफेंस ऑफिसर सोसाइटी इलाके में रहते हैं। जब से वहां के हालत बदले बच्चों से बातचीत होना बंद हो गई। बड़ी मुश्किल से आईएसडी कॉलिंग से बात हुई तो उन्होंने अपने मुल्क (इंडिया) वापस आने को कहा। इंदौर सांसद शंकर लालवानी से मदद मांगी। उन्होंने विदेश मंत्री एस जयशंकर से बात की। उनकी हेल्प से इंडिया लौटे।
इंदौर सांसद शंकर लालवानी से मदद मांगी। उन्होंने विदेश मंत्री एस जयशंकर से बात कर परिवार के वापस लौटने में मदद की।
घर के आसपास फायरिंग और धमाके की आवाज से घबराए
ढाका के हालात बदतर हैं। घर के आसपास फायरिंग और बम की आवाज से दहशत फैली हुई थी। सब डरे हुए थे। बेटी और दामाद ने कई दिनों तक खुद को घर में कैद कर रखा। हमें जैसे ही वहां के हालात के बारे में जानकारी मिली हमने भी कई बार फोन और मैसेज किए लेकिन इंटरनेट सर्विस बंद होने के चलते बात नहीं हो पा रही थी। घर में भी तनाव का माहौल था। कई बार कोशिश करने के बाद आईएसडी कॉलिंग में बात हुई। तब बच्चों का मैसेज मिला की हम इंडिया के लिए निकल रहे हैं। वहां के हालात इतने खराब थे कि दिन में घर से बाहर निकलना खतरे से खाली नहीं था। लोग खुलेआम सड़कों पर तलवार और गोली से हिंसा कर रहे थे।
हिंदू मंदिर और परिवारों को किया जा रहा टारगेट
बांग्लादेश में जब से आराक्षण को लेकर हिंसा भड़की तब से वहां हिंदुओं को टारगेट किया जाने लगा। अब तक तकरीबन 70-80% भारतीय अपना काम छोड़ कर देश लौट चुके हैं। कई परिवार वीजा- पासपोर्ट वहां कि ऐंबैसी में फंसे होने के कारण वहां रुकने को मजबूर हैं। वहां फंसा हर परिवार वहां से निकलने की कोशिश में लगा है।
ढाका से दिल्ली फिर इंदौर पहुंचे
दोपहर में ढाका से नई दिल्ली की जो फ्लाइट कैंसिल हुई थी वो देर रात दिल्ली के लिए रवाना हुई। बेटी-दामाद परिवार सहित रात करीब 11 बजे दिल्ली पहुंचे और अलसुबह फ्लाइट लेकर 8 बजे इंदौर एयरपोर्ट आए। जब तक एयरपोर्ट पर फंसे थे तब तक कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कैसे वहां से निकल पाएंगे। फ्लाइट वापस मिलेगी या नहीं, यह भी तय नहीं था।कई फैक्ट्रियों में लगा दी आग . दामाद सुमित के कई साथ वाले और पड़ोसी भी टैक्स्टाइल और फैशन डिजाइनिंग से जुड़े व्यापार में हैं। हिंसा में उनके ऑफिस और करीब 8-10 फैक्ट्रियों में आग लगा दी गई है। ये सभी परिवार भी दूसरे देशों के रहने वाले हैं। सभी ने हालात से लड़ते हुए कैसे भी वहां से बाहर निकलने का प्लान बनाया, लेकिन कई साथी अभी भी वहीं फंसे हुए हैं।
10 साल से बांग्लादेश में थे, घर, सामान सब छोड़ कर आए
बेटी-दामाद करीब 10 साल से वहां रह के फैशन डिजाइनिंग का काम कर रहे हैं। इसके पहले वह बेंगलुरु की एक प्राइवेट कंपनी में थे। ढाका से वापस लौटने के बाद अब आगे का क्या होगा यह किसी को पता नहीं है। वहां से सिर्फ जरूरी कपड़े लेकर जान बचाकर निकले हैं। बेटी-दामाद को पूरी गृहस्थी छोड़ कर आना पड़ी। *एक महीने पहले ही गया था परिवार* पल्लवी और सुनीत करीब एक महीने पहले ही छुट्टियों में इंदौर आए हुए थे। करीब एक हफ्ते यहां रहने के बाद वापस वहां लौट गए थे। हालत तब से ही बिगड़ रहे थे, लेकिन स्थिति इतनी बिगड़ जाएगी ऐसा सोचा नहीं था। वहां मंहगाई और अच्छा खाना-पीना नहीं होने के चलते बेटी अधिकतर जरूरी समान यहां से अपने साथ ले जाती थी, इसलिए खाने पीने की परेशानी नहीं झेलनी
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