कुचड़ौद में सैकड़ो वर्ष पुराना कल्पवृक्ष; नर मादा के दो पेड़ थे, नर वृक्ष के सूखने के बाद इसके फल नहीं आते

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वृक्ष 12 बाय 12 फीट कमरे के क्षेत्र से भी ज्यादा चौड़ाई में
कुचड़ौद । (दिनेश हाबरिया) बसंत ऋतु पर, ऋतु परिवर्तन के साथ पतझड़ शुरू हो जाता है। पुराने पत्ते नीचे झड़ने एवं नए पत्ते आने की शुरूआत हैं। इसे ही बसंत ऋतु कहते हैं।
कल्प वृक्ष की पत्तियां वर्षा ऋतु प्रारंभ के समय आती
पर कुचड़ौद गांव में एक ऐसा विशालकाय कल्प वृक्ष है। जिसकी पत्तियां वर्षा ऋतु प्रारंभ के समय 10 जून के बाद आती है। और दिसंबर से पहले पत्तियां झड़ जाती है। यह कल्पवृक्ष ऐसा विशालकाय है कि आसपास के 100 किलोमीटर के दायरे में कहीं पर भी ऐसा वृक्ष नहीं है। इसकी मोटाई चौड़ाई 10 लोगों की बाहों में भी नहीं आती है। इसकी गोलाई एक बड़े कमरे के बराबर है। इसकी ऊंचाई भी करीब 50 फिट है। ग्रामीण बताते हैं, कि हमारे पूर्वज भी कल्प वृक्ष को ऐसा ही देखते आ रहे। यहां 50 फीट के दायरे में ही एक और विशालकाय वृक्ष था। जो नर एवं मादा का जोड़ा था। नर वृक्ष के फूल आते थे। वही मादा वर्तमान में खड़े वृक्ष के नारियल के आकार के फल भी आते थे। ग्रामीण महिलाएं सोमवती पूर्णिमा को इस विशालकायकल्प वृक्ष की पूजन करती है। एवं कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करती है।
नारियल से भी बड़े आकार के फल होते थे
कुचड़ौद के बुजुर्ग कन्हैयालाल रोडवार 95, नारायण सिंह पंवार 80, शंकर लाल प्रजापत 78, गोवर्धन लाल तेली 75 बताते हैं। कि हमारे दादाजी एवं पूर्वज भी इस कल्प वृक्ष को ऐसा ही देखते आ रहे हैं। सैकड़ो वर्षों से इसके आकार में कोई फर्क नहीं देखा गया। भले ही इसका नाम कल्पवृक्ष है। पर हमारे गांव एवं आसपास के गांवों में हजार रुक नाम से विख्यात है। क्योंकि यह वृक्ष काफी पुराना होकर, सैकड़ो वर्ष पुराना है। पहले इसके पास में ही ऐसा ही एक ओर विशालकाय वृक्ष और था। दोनों पेड़ नर एवं मादा का जोड़ा था। उस नर वृक्ष के आसपास गंदगी कूड़ा करकट के कारण, कीड़ा लगने से वह वृक्ष सुख गया। इसके बाद इस मादा वृक्ष पर फल आने बंद हो गए। फल आते हैं, पर छोटे-छोटे नींबू आकर के होकर नीचे गिर जाते हैं। पहले नारियल से भी बड़े आकार के फल होते थे। यह एक ऐसा विशालकाय कल्पवृक्ष है। ऐसा विशालकाय कल्प वृक्ष आसपास के 100 किलोमीटर के दायरे में नहीं है। और नहीं किसी ने देखा। गांव से गुजरने वाले यात्री भी इसके दर्शन करते हैं। यह पहला वृक्ष है, जिसकी जून महीने में पत्तियां आती है। और दिसंबर तक सभी पत्तियां झड़ जाती है। यह कल्पवृक्ष 6 महीने तक बिना पत्तियों के रहता है। सैकड़ो वर्षों से ऐसा ही दिखने के कारण, इस कल्पवृक्ष का नाम हजार रुक पड़ गया। बता दे इसके तने की लकड़ी रुई के समान, बिना कांटे वाली होती है। यह वृक्ष काफी मुलायम दिखता है। गांव की सीमा में ऐसे तीन वृक्ष और हैं। पर वह काफी छोटे हैं। वह भी सैकड़ो वर्ष पुराने हो चुके हैं।