राष्ट्रभक्त वीर विनायक सावरकर -डॉ.महिपालसिंह चौहान

राष्ट्रभक्त वीर विनायक सावरकर -डॉ.महिपालसिंह चौहान
भारतमाता की आजादी के लिए जिन महानुभावों ने योगदान दिया, उनमें विनायक दामोदर सावरकर का योगदान महत्वपूर्ण है। ये एकमात्र ऐसे स्वतंत्रता संग्राम सैनानी रहे, जिन्होंने भारत ही नहीं विदेश में जाकर अंग्रेजों से लडाई लडी। आजादी हेतु दो-दो बार कालापानी की सजा भुगती। अंग्रेजी सेना से लडते हुए समुद्र में छलांग लगाकर फ्रांस के मार्शेल बन्दरगाह पहुंचे।
सावरकर का जन्म महाराश्ट्र के नासिक जिले के भगूरगांव में 1883 को हुआ। इनके पिता का नाम दामोदर पंत औ माता का नाम राधाबाई था। इनके बडे भाई का नाम गणेश सावरकर एवं छोटे भाई का नाम नारायण सावरकर था। महाराणा प्रताप और शिवाजी इनके आदर्श रहे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा भागुर में ही हुई। मीडिल परीक्षा नासिक से उत्तीर्ण की।
पाफेकर बंधुओं की फांसी के बाद ये लोकमान्य तिलक के सम्पर्क में आए। 1906 में इन्होंने पूना में विदेशी वस्त्रों की होली जलाई जिसकी अध्यक्षता तिलक ने की। बेरिस्टर की पढाई करने हेतु वे इंग्लैण्ड गए। वहां उन्होनें फ्री इण्डिया सोसायटी की स्थापना की। 1908 में भारत का प्रथम स्वातन्त्र समर पुस्तक लिखी। इस पुस्तक से अंग्रेज सरकार हिल गई। पुस्तक पर प्रतिबंध लगाया गया।
क्रांतिकारियों को हथियार उपलब्ध कराने के आरोप में सावरकर को इंग्लैण्ड से गिरफ्तार कर मुकदमा चलाने के लिए भारत लाया जा रहा था। वे 8 जुलाई 1910 को जहाज से समुद्र में कूद गए और तैरते हुए फ्रांस के किनारे पर बढने लगे। अंग्रेजों ने उन पर गोलियां चलाईं। फ्रांस के तट पर से फिर गिरफ्तार कर भारत लाया गया। मुकदमा चलाकर भायखला, डोगरी जेल भेजा, उसके बाद कालापानी की सजा दो आजन्म कारावास के रूप में दी गई।
अण्डमान जेल में उन्हें रोज कोल्हू में जोतकर एक सैर तेल निकालना होता था। वहां उन्होंने जेल की दीवार पर हथकडियों की कील से कविताएं लिखीं। अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्श कालापानी में बिताए। दो आजन्म कारावास के बाद उन्हें पागलों से भरे जहाज में भारत लाया गया।
भारत आने के बाद हिन्दू महासभा की स्थापना की। राश्ट्रीय स्व्यं सेवक संघ की स्थापना करने से पहले हेडगेवारजी ने सावरकर का आशीर्वाद लिया था। सावरकर भारत में जन्म लेने वाले एवं भारत को मातृभूमि मानने वाले हर व्यक्ति को हिन्दू मानते थे। उन्होंने स्वयं कहा था कि हर हिन्दू भाई है। हिन्दूओं में अस्पृश्यता नहीं होना चाहिए।
भारत विभाजन से सावरकर बेहद दुःखी थे। उन्होनें कहा था यह विभाजन अप्राकृतिक है। गांधीजी की हत्या के बाद सावरकर को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया। एक वर्श के बाद दोशमुक्त कर सावरकर को छोडा गया। चीन आक्रमण के समय भी सावरकर ने नेहरू को पूर्व में ही धोखा होने के संकेत से अवगत कराया था।
अखण्ड भारत के इस स्वप्नदृश्टा सावरकर का निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ। इस महान क्रांतिकारी को शत ष्शत नमन।