पुण्यतिथि विशेष – एक ऐसे पत्रकार जिन्होंने अपना एकमात्र कुर्ता रात को धोया सुबह राज्यसभा की शपथ
पुण्यतिथि आज – एक ऐसे पत्रकार जिन्होंने अपना एकमात्र कुर्ता रात को धोया सुबह राज्यसभा की शपथ
उज्जैन में आज वैद्य स्मृति व्याख्यानमाला
प्रखर पत्रकार, पूर्व राज्यसभा सदस्य, स्वाधीनता सैनानी स्व.कन्हैयालाल वैद्य की आज 16 दिसंबर को पुण्यतिथि है। इस मौके पर उज्जैन में क्षीरसागर स्थित स्वर्गीय राजेंद्र जैन सभा ग्रह में लोकतंत्र में चुनौतियां और समाधान विषय पर शाम 5:00 बजे व्याख्यानमाला रखी गई हैl कर्मभूमि उज्जैन से जुड़े पत्रकार वैद्य के जीवन के त्याग-तपस्या की अजीब कहानी है। स्वतंत्र भारत की पहली राज्यसभा में पत्रकार के किरदार में पंडित जवाहरलाल नेहरू की पसंद पर 1952 में राज्यसभा पहुंचे। आपकी जीवन की ईमानदारी का इसके बड़ा कोई उदाहरण नहीं होगा शपथ लेने के लिए जब दिल्ली पहुंचे तो जिस कुर्ते को पहनकर गए थे उसे रात में धोकर सुबह शपथ ली। वर्ष 1958 में जब कार्यकाल समापन के बाद घर लौटे तो परिजनों को नईपेठ स्थित दो कमरों का किराए का मकान पुन: नसीब हुआ। इस घटना को दैनिक हिंदुस्तान के सहायक संपादक शिवकुमार ने एक लेख में इस प्रकार से रेखांकित किया है- वैद्य की राज्यसभा सदस्यता पर अपार खुशी हुई। आदतन ऐसे मौके पर बधाई किसी को बधाई देने बहुत कम जाता हूू। हर्ष के कारण पत्रकार साथी को बधाई देने का मोह रोक नहीं पाया। शपथ ग्रहण की पूर्व शाम को जानकारी मिली कि नईदिल्ली में वैद्यजी सांसद कृष्णकांत व्यास के निवास पर ठहरे थे। मैं वहा गया और वैधजी को पुकारा। तब उनकी आवाज स्नानागार से आई। जब मैं वहां पहुंचा तो वे अपना कुर्ता धो रहे थे। वे सहज भाव से बोले कल शपथ लेना है इसलिए कुर्ते को धो रहा हूू। वे नि: संकोच बोले एक ही कुर्ता है। जब वैद्य का कार्यकाल राज्यसभा से 1958 में समाप्त हुआ तो पत्नी रूपकुंवर वैद्य एवं पुत्र क्रांतिकुमार वैद्य को उज्जैन वहीं किराए का मकान नसीब हुआ जहां से शपथ लेने के लिए संसद गए थे। यहां तक वैद्य का निधन 16 दिसंबर 1974 को हुआ तब भी परिजनों को किराए के मकान की विरासत सौंप कर दुनिया से अलविदा हुए।
उज्जैन से कल्पवृक्ष –
वैद्य ने 1928 में टाईम्स ऑफ इंडिया में कलम चलाना शुरू किया। बाद में देश के लगभग 70 से भी अधिक गुजराती, अंगे्रजी, उर्दू एवं हिंदी समाचारों में अपनी कलम के जौहर दिखाए। उज्जैन में पत्रिका कल्पवृक्ष से पत्रकारिता शुरू की। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण व्यास के साथ मिलकर मुंबई से 1936 में दैनिक अखंड भारत समाचार पत्र निकाला। इस समाचार पत्र में अंग्रेजों एवं देशी रियासतों के खिलाफ अलख जगाया। स्वयं ने समाचार पत्र का संपादन किया। लगभग दो वर्ष के बाद यह समाचार पत्र उस समय 50 हजार के नुकसान के साथ प्रकाशन बंद हुआ। प्रेस तक बैचना पड़ी। पंडित नेहरू की अध्यक्षता में वैद्य सबसे अधिक मतों से अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के अध्यक्ष चुने गए। इसी प्रकार आचार्य नरेंद्र देव की अध्यक्षता में गुजरात में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के महामंत्री बने।
मध्यभारत श्रमजीवी पत्रकार संघ के प्रथम –
मध्यभारत श्रमजीवी पत्रकार संघ के आप प्रथम प्रांतीय अध्यक्ष बने। विक्रम विश्व विद्यालय के संस्थापकों में आपका नाम शुमार है। बरकत उल्लाह विश्व विघालय से डॉ सूर्यकांत शर्मा ने सैनानी कन्हैयालाल वैद्य के व्यक्तित्व एवं कृतितत्व पर पीएचडी की।
एक दर्जन पुस्तकों के रचयिता-
स्वाधीनता आंदोलन एवं पत्रकारिता के साथ-साथ वैद्य ने एक दर्जन से भी अघिक हिंदी एवं अंग्रेजी में पुस्तके लिखी। वर्ष 1934 में दो पुस्तके झाबुआ राज्य में भयंकर कुशासन एवं झाबुआ किधर प्रकाशित हुई। इसी प्रकार वर्ष 35-36 में झाबुआ राज्य की प्रजा का आंदोलन और स्वार्थ साधकों की चालबाजियां, झाबुआ में कौन्सिल शासन,, खुश रहो अहलेवतन, स्ट्रगल ऑफ झाबुआ सब्जेक्ट चर्चित हुई। हम कहा हैं एवं गवालियर राजनैतिक षडयंत्र केस तथा ट्रुथ कांग्रेस ने वर्ष 1938 में प्रकाशित हुई। वर्ष 1940 से लेकर 45 की समय अवधि में झाबुआ गोलीकांड और बलात्कार की काली कहानी, रतलाम 28 मार्च के लाठी चार्ज और नजरबंदी तथा राजनैतिक स्थिति का सच्चा चित्र व मध्यभारत की जनता से का प्रकाशन हुआ।
पत्रकारिता से राजा को गद्दी से उतारा-
वैद्य ने अपने जीवन में रियासतों के खिलाफ खुब चलाई। आपने झाबुआ रियासत के राजा उदयसिंह से जमकर लोहा लिया। राजा के जुर्म को लेकर वर्ष 1934 में अंग्रेजी में एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक पर गोलमेज कांन्फेस में बहस हुई। बाद में अंगे्रजी हुकुमत ने राजा को गद्दी से उतार दिया और रेसीडेंसी इंदौर में रहने का आदेश दिया। वैद्यजी के कारण बाद में राजा जीते जी झाबुआ अंचल में नहीं आ पाया।
सैनानी शब्द वैध की देन-
मामा बालेश्वर दयाल के अनन्य साथी वैद्य को वर्ष 1970 में पंडित श्यामाचरण शुक्ल के आतिथ्य एवं प्रो. महेश दत्त मिश्र की अध्यक्षता में सैनानियों के अधिवेशन में मप्र स्वाधीनता सैनानी संघ का अध्यक्ष चुना गया। राष्ट्रीय स्तर पर भी सैनानी संघ का उपाध्यक्ष का पद भी संभाला।
देश में स्वाधीनता सेनानियों को किसी समय राजनीतिक पीडि़त शब्द से पुकारा जाता था। वैद्य ने इसके खिलाफ लड़ाई लड़ी और सम्मानजनक स्वाधीनता सेनानी शब्द के संबोधन का दर्जा दिलाया ।
सनद छिनने पर थामी कलम-
आदिवासी अंचल झाबुआ जिले के थांदला में जागीरदार स्व. दौलतराम वैद्य के यहां माता पार्वतीबाई की कोख से वैद्य का जन्म 1 फरवरी 1909 को हुआ। झाबुआ में वकालात शुरू की तब अंगेजों के जमाने में मात्र 22 वर्ष की उम्र में 1931 में आपकी वकालात की सनद को छिन लिया गया। झाबुआ राज्य के तत्कालीन राजा उदयसिंह से टकराने पर धारा 124 ए के तहत राजद्रोह का मुकदमा वैधजी पर लादकर 6 माह तक जेल में बंद किया गया। रियासतों से मुक्ति एवं जागीरदारों के खिलाफ जंग आपके जीवन का हिस्सा रहा। वर्ष 1936 में आप दाहोद गुजरात में अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद के महामंत्री चुने गए।
जयप्रकाश नारायण के साथ अखंड भारत –
वैद्य ने नवभारत टाईम्स से जुडक़र पत्रकारिता में कदम रखे। राजस्थान के पूर्व मुख्यंमंत्री जयप्रकाश नारायण के साथ वर्ष 1936 में दैनिक अखंड भारत समाचार पत्र मुबंई से निकाला था। इस समाचार में प्रकाशित तीखी खबरे से लगभग एक दर्जन राजा को राजपाट खोना पड़ा। पत्रकारिता के जीवन में वीर अर्जुन, दैनिक हिंदुस्थान, जन्मभूमि, अमृत बाजार पत्रिका, नवज्योति, अमर उजाला जैसे समाचार पत्रों में कलम के जौहर दिखाए। आपने हिंदी, अंगे्रजी, गुजराती, मराठी, उर्दू भाषाओं में लगभग 40 प्रमुख समाचार पत्रों में अपनी सेवाएं दी। तकरीबन 70 से भी अधिक समाचार पत्रों में स्वतंत्र पत्रकार के किरदार में लेखनी चलाई। अंग्रेजों के षडयंत्रों का भंडाफोड़ करना आपकी पत्रकारिता का एक मिशन था। स्वाधीनता आंदोलन तथा राजाओं के खिलाफ आवाज उठाने पर आपको महिनों तक जेल जाना पड़ा। यहां तक पूरे थांदला में आपके भाई बंधुओं को निर्वासन की यातनाओं से जूझना पड़ा। झाबुआ रियासत में परिवार के लोग बेगारी में कार्य करने के लिए विवश किए गए। जिसका परिणाम हैकि वैद्य के परिजन स्व. बद्रीनारायण वैद्य, स्व. रामनारायण वैद्य, स्व. तुलसीराम वैध को स्वाधीनता सेनानी के सम्मान से प्रदेश सरकार ने नवाजा।
1952 में राज्यसभा में –
देश की पहली राज्यसभा में एक पत्रकार के किरदार में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अनुशंसा पर भेजा गया। वर्ष 1958 तक राज्यसभा में आपने जनसरोकार से संबधित कई मसलों पर आवाज बुलंद दी। कईबार राज्यसभा में कांग्रेस के सामने धर्मसंकट खड़े किए। आपकी कलम में जहां पैनी धार थी तो वाणी ओजस्वी। वर्ष 1958 में जब राज्यसभा से उज्जैन लौटे तो नइपेठ स्थित किराए का मकान पत्नी स्व. रूपकुंवर वैध, पुत्र क्रांतिकुमार वैद्य को पुन: नसीब हुआ। उज्जैन के क्षत्रिय चौक पर कई सभाओं में आपकी दहाड़ के किस्से पुरानी पीढ़ी के लोग सुनाने से नहीं चुकते हैं।
वैद्य क जीवन में तीन रूप देखने को मिलते हैं। आजादी आंदोलन काल में संघर्ष से एक जाने-माने स्वाधीनता सेनानी बने। साथ ही पत्रकार की भूमिका में वे जीवन पर्र्यत एक तपस्वी साधक बनकर उभरे। राजनीति में एक लड़ाकू राजनेता के रूप में देश में अमिट छाप छोड़ी। निर्भिक लेखनी एवं क्रांतिकारी विचारधारा के कारण कई बार देश की कांग्रेस सरकार के समक्ष धर्म संकट खड़े किए। रियासतों से निर्वासन के कारण रेलयात्राओं के दौरान प्लेटफार्म पर कदम रखना भी आपके लिए प्रतिबंधित था। एक ईमानदार राजनेता एवं निर्भिक पत्रकार की छवि से देश में पहचान बनी। सादा जीवन उच्च विचार के धनी वैद्य का आजीवन खादी से रिश्ता रहा। धोती-कुर्ता आपके परिधान थे।
पूरा जीवन आपने उज्जैन में किराए के मकान में नईपेठ स्थित दूसरी मंजिल पर दो कमरों में गुजारा। एक पूर्व राज्यसभा सदस्य एवं देश का महान पत्रकार जब इस दुनिया से 16 दिसंबर 1974 को अलविदा हुआ तो भी किराए के मकान की ही विरासत परिजनों को सौंपी। लेकिन कई दुलर्भ समाचारों पत्रों की प्रतियों का विपुल भंडार परिजनों के लिए धरोहर बना। इस धरोहर से कई विद्यार्थियों ने शोध किए। पत्रकारों ने पीएचडी भी की।
वैद्य स्मृति पुरस्कार गौरव-
इस आलेख के लेखक को मप सरकार का कन्हैयालाल वैध स्मृति पुरस्कार वर्ष 2008 का मिला है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के हाथों भोपाल में आयोजित एक भव्य समारोह में मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने 8 अप्रैल 2015 को लेखक को एक लाख की सम्मान राशि से पुरस्कृत किया। लेखक का मानना हैकि सरकार के पुरस्कार के साथ वैधजी जैसे राष्टीय स्तर के पत्रकार के नाम का अवॉर्ड पाना सबसे बड़ा सम्मान हैं।
– कैलाश सनोलिया
राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार मप्र शासन
संवाददाता हिंदुस्थान समाचार एजेंसी, नागदा जंक्शन