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ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर होने के मामले में किसी भी मुस्लिम संस्था को पक्षकार बनाया ही नहीं गया

 

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नोटिस वाले तीनों विभाग केंद्र सरकार के हैं, जबकि दरगाह में खादिमों और दीवान की अहम भूमिका।

खादिमों ने अब संघ प्रमुख मोहन भागवत का संदेश याद दिलाया। दीवान ने भी मंदिर वाले तथ्यों को खारिज किया।

अजमेर की दरगाह का मामला अयोध्या व बनारस से अलग है।
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राष्ट्रीय हिंदू सेना के अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर होने का जो दावा प्रस्तुत किया था, उसे सिविल न्यायाधीश मनमोहन चंदेल ने स्वीकार कर लिया है। दरगाह परिसर में सर्वे के लिए न्यायालय ने 27 नवंबर को केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्रालय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग और केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली दरगाह इंतजामिया कमेटी को नोटिस जारी किए हैं। इस मामले पर अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। न्यायालय ने जिन तीन विभागों को नोटिस जारी किए हैं, वह तीनों केंद्र सरकार से संबंधित है। इस प्रकरण में दरगाह से जुड़ी किसी भी मुस्लिम संस्था को नोटिस जारी नहीं हुआ है। जबकि दरगाह में खादिम समुदाय और दरगाह दीवान की महत्वपूर्ण भूमिका है। दरगाह में खादिमों द्वारा ही सभी धार्मिक रस्तों को पूरा किया जाता है। इसी प्रकार सालाना उर्स और दरगाह में होने वाली धार्मिक महफिलों की सदारत दरगाह दीवान के द्वारा की जाती है। दरगाह में आने वाले अधिकांश चढ़ावे का बंटवारा भी खादिम समुदाय और दीवान के बीच होता है। न्यायालय ने दरगाह परिसर में सर्वे से पहले भले ही केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाली संस्थाओं को नोटिस जारी किया हो, लेकिन दरगाह के संचालन में खादिम समुदाय और दरगाह दीवान की महत्वपूर्ण भूमिका है। दरगाह परिसर का सर्वे होगा या नहीं यह तो न्यायालय के निर्णय पर निर्भर करता है, लेकिन अजमेर की दरगाह के ताजा मामले को लेकर देश में नहीं बल्कि विदेशों में भी हलचल हो गई है। ख्वाजा साहब के अनुयायी भारत में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान आदि देशों में भी है। बांग्लादेश और पाकिस्तान के राष्ट्राध्यक्ष समय समय पर दरगाह में जियारत के लिए आते हैं।

संघ प्रमुख का संदेश याद दिलाना:
ख्वाजा साहब की दरगाह में शिव मंदिर को तलाशने के लिए सर्वे की इच्छा रखने वालों को खादिम समुदाय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का संदेश याद दिलाया है। खादिमों की प्रतिनिधि संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि संघ प्रमुख भागवत ने हाल ही के अपने एक बयान में कहा कि हर मस्जिद में मंदिर तलाशना उचित नहीं है। यदि ऐसा किया जाएगा तो फिर बात बिगड़ेगी। चिश्ती ने कहा कि भागवत के इस बयान का ख्याल रखा जाना चाहिए। चिश्ती ने द प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का हवाला देते हुए कहा कि बाबरी मस्जिद के अलावा किसी भी धार्मिक स्थल पर कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि ख्वाजा साहब की दरगाह पर हिंदू समुदाय के लोग भी जियारत के लिए आते हैं, इसलिए दरगाह को कौमी एकता का स्थल माना जाता है। दरगाह दीवान के उत्तराधिकारी सैयद नसरुद्दीन चिश्ती ने भी दरगाह में मंदिर होने के तथ्यों को नकार दिया है। उन्होंने कहा कि उनका परिवार ख्वाजा साहब के वंश से ताल्लुक रखता है। उनके पूर्वज ख्वाजा साहब का इंतकाल 1236 ईस्वी में हुआ था और तभी से अजमेर में दरगाह का स्वरूप बना हुआ है। आज भी ख्वाजा साहब की मजार दरगाह में ही बनी हुई है। इस मजार पर आकर ही हजारों लोग प्रतिदिन दुआ प्रार्थना करते हैं। दरगाह परिसर को लेकर पिछले 800 सालों से कभी कोई विवाद नहीं हुआ। हिंदू समुदाय के लोग भी पूरी श्रद्धा के साथ दरगाह में जियारत करते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि सैयद नसरुद्दीन चिश्ती ऑल इंडिया सज्जादानशीन कौंसिल के अध्यक्ष भी हैं। इस कौंसिल में देश भर की अधिकांश दरगाहों के सज्जादानशीन शामिल हैं। कौंसिल ने वक्फ एक्ट में संशोधन के प्रस्ताव का समर्थन किया है। चिश्ती ने कहा कि वे केंद्र सरकार के अच्छे कार्यों के समर्थक है। लेकिन अजमेर की दरगाह में शिव मंदिर के तथ्यों को स्वीकार नहीं करते। कुछ लोग बेवजह माहौल को खराब करना चाहते हैं। ताजा मामले को वे प्रधानमंत्री नेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की जानकारी में भी लाएंगे।

अयोध्या-काशी से अलग है अजमेर का मामला:
ख्वाजा साहब की दरगाह में मंदिर होने का मामला अयोध्या और काशी से अलग है। अयोध्या में जहां भगवान राम की जन्मभूमि का विषय रहा तो काशी में ज्योतिर्लिंग का मुद्दा। लेकिन अजमेर में ऐसा कोई मुद्दा नहीं है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने अपने वाद में हरविलास शारदा की पुस्तक को मुख्य आधार बनाया है। अजमेर म्यूनिसपल के कमिश्नर रहे शारदा ने 1911 में हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव नामक पुस्तक लिखी, इस पुस्तक में दरगाह के बुलंद दरवाजे को हिंदू कलाकृति का नमूना माना। गुबंद में हिंदू जैन मंदिर के अवशेष भी बताए गए। इसके अलावा वाद में ऐसा कोई तथ्य नहीं है जो दरगाह परिसर में किसी मंदिर होने की पुष्टि करता हो।

S.P.MITTAL BLOGGER (28-11-2024)

 

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