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अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जयंती पर विशेष

अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जयंती पर विशेष


छत्रपति शिवाजी ने अपने बाहुबल एवं योग्यता से एक विशाल मराठा साम्राज्य की नींव डाली थी। 1674 में उनका राज्याभिषेक हुआ। महाराष्ट्र के रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया और मध्यकाल में देश में जो निराशा की भावना थी, उसे दूर किया और राष्ट्रीय भावना जाग्रत की। उनने साम्राज्य उत्तर से दक्षिण तक फैला दिया। उनके उत्तराधिकारियों में उनके द्वारा जो अष्ट प्रधान शासन व्यवस्था लागू की थी। उसमें पेशवा का पद प्रमुख था। जिसमें पांच मराठा सरदार (सेनापति) थे।

पूना के पेशवा, बड़ौदा के गायकवाड, इंदौर के होल्कर, ग्वालियर के सिंधिया, नागपुर के भौंसले, इन्होंने विशाल मराठा साम्राज्य के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इनमें इंदौर के मल्हारराव होल्कर थे। ये पूना के पास होल नामक गांव के रहने वाले थे। अतः इनके नाम के आगे होल्कर सरनेम हो गया। ये गडरिया (चरवाहे) थे। इनके पिता का नाम खण्डोजी माता का नाम जिवाई था। 1730 में इनकी योग्यता वीरता के गुणों के कारण पेशवा बाजीराव के समय मराठा सेनापति नियुक्त हुए। इन्होंने मराठों की ओर से कई युद्धों में भाग लिया था। बाद में अपनी कार्यकुशलता में योग्यता के कारण इंदौर के होल्कर महाराजा बने। इन्होंने विशाल साम्राज्य स्थापित कर दिया। इनके पुत्र खांडेराव थे, वे पिता के सामान वीर योद्धा नही थे। राजकाज में रुचि नही थी।

एक समय मल्हारराव होल्कर अपने राज्य में भ्रमण के लिए महाराष्ट्र के औरंगाबाद (अहमदनगर) जा रहे थे। रास्ते में चौड़ी गांव में एक शिव मंदिर पर रुके, वहां एक 9 वर्षीय बालिका तन्मयता से शिवजी की पूजा कर रही थी। मल्हारराव की निगाह उस बालिका पर गई और वह उसकी सादगी, धर्म परायणता देखकर मंत्र मुग्ध हो गए। बालिका के पिता को बुलाया और कहा कि मैं इसको अपनी पुत्र वधू बनाना चाहता हंू। पिता एक साधारण किसान थे। उनको खुशी का ठिकाना न रहा। और मन ही मन सोचने लगे। मेरी बेटी राज रानी बनेगी। उन्होंने हां कर दी और उसका विवाह इंदौर लाकर अपने पुत्र खांडेराव से कर दिया। यह बेटी अहिल्या रानी बनी।

अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को हुआ था। पिता का नाम मनकोजी शिंदे था। अहिल्याबाई शादी के बाद राजमहलों में सादगी, सरलता से रहती थी। सादे वस्त्र पहनती थी, स्वयं भोजन बनाती व अपने काम स्वयं करती थी। महाराजा अहिल्याबाई के गुणों के पारखी थे। उन्होंने अहिल्याबाई को योग्य शिक्षक लगाकर पढ़ाया। उन्होंने स्वयं अहिल्याबाई को राजकीय शिक्षा दी। शस्त्र चलाना सिखाया। युद्ध, कला की जानकारियां दी। 1745 में अहिल्याबाई के एक पुत्र का जन्म हुआ। उसका नाम मालेराव रखा। बाद में एक पुत्री भी हुई। उसका नाम मुक्ताबाई था। 1754 में मल्हारराव ने अपने पुत्र खांडेराव को साथ लेकर भरतपुर के जाट राजा पर चढ़ाई कर दी। जाटों से भंयकर युद्ध हुआ। इसमें तोप का एक गोला खांडेराव को लगा और उनकी मृत्यु हो गई। खांडेराव की अंतिम संस्कार की तैयारी चल रही थी। इधर अहिल्याबाई सती होने के लिए श्वेत वस्त्र पहनकर तैयार हो रही थी। महाराज को जब पता लगा तो वो विलाप करने लगे। और अहिल्याबाई को समझाया। तुम सती नही हो सकती। तुम मेरे बेटे के समान हो। तुम मेरा व राज्य का सहारा बनो। मेरा बेटा बनकर राज्य और समाज के कार्य संभालो। तुमको देखकर मैं जी सकता हंू। अपने ससुर के विलाप व तड़प को देखकर अहिल्याबाई ने श्वेत वस्त्र उतार दिए और बाद में यही अहिल्याबाई होल्कर वंश की साम्राज्ञी बनी और देवी अहिल्या लोकमाता अहिल्या के नाम से प्रसिद्ध हुई। मल्हारराव 1761 पानीपत के युद्ध के बाद मराठा गौरव को पुनः स्थापित करने के लिए उत्तर भारत की ओर निकले। साथ में पौत्र मालेराव भी था। 20 मई 1766 को आलमपुर में मल्हारराव होल्कर का स्वास्थ्य बिगड़ा और उनकी मृत्यु हो गई।

मल्हारराव का अंतिम संस्कार पोत्र मालेराव ने आलमपुर में ही कर दिया। अहिल्याबाई का पुत्र मालेराव अवगुणों की खान था। अहिल्याबाई ने उसे सुधारने का बहुत प्रयास किया, लेकिन वह नही सुधरा। फिर भी रिती के अनुसार 23/08/1766 को मालेराव का राज तिलक किया। पेशवा ने भालेराव को पद की सनद प्रदान की। परन्तु राज्य का राजकाज का वास्तविक अधिकार अहिल्याबाई को ही दिया। मालेराव में अनेकों अवगुण थे। प्रजा को काफी परेशान करता था व यातनाएं देता था। प्रजा त्रस्त हो गई। अहिल्याबाई ने बहुत समझाया, लेकिन नही माना। अहिल्याबाई न्याय की मूर्ति थी। अहिल्याबाई ने पुत्र को मार्च 1767 में मृत्युदंड दे दिया। सारा देश आश्चर्यचकित हो गया और न्याय की मूर्ति देवता अहिल्याबाई की जय-जयकार करने लगा। होल्कर वंश सुनसान हो गया। अहिल्याबाई के ससुर, पति, पुत्र तीनों नही रहे। उनका कोई वारिश नही रहा। पेश्वा माधवराव अल्प व्यस्क थे। अतः उनके चाचा रघुनाथ राव शासन के कार्यों में हस्तक्षेप करते थे। उन्होंने इंदौर आकर अहिल्याबाई से कहा कि होल्कर वंश का कोई वारिश नही है। अतः यह राज्य पेशवा का होगा। अहिल्याबाई बिल्कुल भयभीत नही हुई। वीर मल्हारराव ने अहिल्याबाई को तैयार कर दिया था। मल्हारराव ने पेशवा परिवार के लिए हमेशा अपना र्स्वस्व न्यौच्छावर किया था। फिर भी गंगाधर चंद्रचूड तथा चिन्तो मिठ्ठल की सलाह पर रघुनाथ राव ने इंदौर पर आक्रमण करने की आज्ञा दी। रघुनाथ के एक भी सैनिक ने उसकी आज्ञा का पालन नही किया। क्योंकि मल्हारराव के मराठा सरकार वफादार थे। अहिल्याबाई युद्ध के लिए तैयार हो गई। रघुनाथ के शिविर के प्रत्येक मराठा सरदार ने अहिल्याबाई के प्रति सहानुभूति दिखाई और अहिल्याबाई ने रघुनाथ राव को खबर भिजवाई। तुम युद्ध के मैदान में हार गए तो पूरा जमाना तुम पर थूकेगा कि एक महिला से हार गए। कहीं भी मूंह बताने काबिल नही रहोगे। जीत गए तो भी लोग कहेंगें एक महिला से जीते। रघुनाथ राव शर्मिंदा हो गए। बिना युद्ध किए ही लौट गया। पेशवा की सहानुभूमि अहिल्याबाई में थी। अहिल्याबाई कूटनीतिज्ञ भी थी। अहिल्याबाई हमेशा शिव की भक्ति में लीन रहती थी। शिव के नाम की मोहर ही शासन कार्यों में लगाती थी। उन्होंने होल्कर राज्य की राजधानी इंदौर के बजाए महेश्वर को बनाया। तथा नर्मदा के तट पर विशाल घाट बनाया। शिव मंदिर बनाया। प्रतिदिन शिव, नर्मदा मैया के दर्शन के बाद राज्य का कार्य चलाती थी। अहिल्याबाई ने पूरे भारत में अनेकों मंदिर बनवाए। एवं पुराने मंदिरों का जिर्णोद्धार कराया। इनमें काशी विश्वनाथ उज्जैन, सोमनाथ के मंदिर प्रमुख थे। संर्घर्षों से अहिल्यबाई विचलित नही हुई। अहिल्याबाई ने अपनी पुत्री मुक्ताबाई का विवाह वीर नवयुवक यशवंत राव फणसे से किया। फणसे ने मालवा में पिडारियों का आंतक को समाप्त किया था। इसी वीरता के कारण मुक्ताबाई का विवाह अहिल्याबाई ने यशवंत राव से किया था। मुक्ताबाई के पुत्र हुआ। अहिल्याबाई ने सोचा यह नाती होल्कर राज्य का उत्त्तराधिकारी बनेगा। परन्तु शय की बीमारी से अल्पआयु में ही नाती की मृत्यु हो गई। दामाद ने भी पुत्र के गम मेें 3 दिसम्बर 1791 में दम तोड दिया। इसके बाद मुक्ताबाई की भी मृत्यु हो गई। विधि के विधान के आगे किसी की भी नही चलती है। फिर भी अहिल्याबाई शिव के भरोसे कुशलता से साम्राज्य चला रही थी। सरयू, गंगा, गोदावरी, नर्मदा नदी के किनारे कई घाटों का निर्माण कराया। अहिल्याबाई कूटनीतिज्ञ भी थी। प्रतिवर्ष कई राजाओं को राखी भेजती थी। अतः युद्धों की आशा कम ही रहती थी। महिला सशक्तिकरण, महिला सेना का निर्माण किया। रोजगार के अवसरों के लिए उद्योग खोले। महेश्वर में प्रसिद्ध साड़ी उद्योग खोला। आज भी पूरे भारत में महेश्वर की साडियां प्रसिद्ध है। जगह-जगह बावडियां, तालाब बनवाए। अहिल्याबाई ने धर्म के कार्यों के लिए अलग से कोष बनाए और राज्य में दो प्रकार के कोष थे। 1. खासगी और 2 सरजामी। खासगी उनका निजी कोष था। जो मल्हारराव होल्कर से मिला था। उसमें करोड़ों रुपए थे। सरजामी कोष से प्रशासन और सेना का खर्च चलता था। अहिल्याबाई ने अपना निजी कोष भी इसमें मिला दिया। अहिल्याबाई लोक कल्याणकारी कार्य करते-करते 13 अगस्त 1795 को देह त्याग दी। परन्तु वह देवी व लोकमाता के रुप में हमेशा अमर रहेगी। 31 मई 2025 को उनकी 300 वीं जयंती का समारोह एक सप्ताह से पूरे देश में मनाया जा रहा है।

श्यामलाल बोराना, इतिहासकार, सेवानिवृत प्राचार्य,

पिपलिया स्टेशन, जिला मंदसौर, मो. 9893798250

 

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