अफीम की फसल में फूल खिल गये हैं किसान दिन रात उसकी चौकीदारी कर रहे हैं चोरों से और रोजङो से
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मोहन सेन कछावा
मल्हारगढ़- क्षेत्र में अफीम की फसल के पौधों में फूल खिल गए हैं कुछ दिनों के बाद वह ङोड़े के रूप में परिवर्तित हो जाएंगे उसके बाद में किसान भाई अफीम की लूणी चिरनी शुरू करेंगे उसमें भी परफेक्ट मजदूरों को हजारों रुपए किसानों को देना पड़ते हैं पर इससे पहले किसान भाई इस अफीम की फसल को अपने बच्चों की तरह उसको बड़ा करते हैं इसमें काफी मेहनत लगती है सर्वप्रथम तो हकाई जुताई उसके बाद में फिर बुवाई एवं निंदाई खुदाई खाद बीज पानी पिलाना और उसकी रखवाली करना यह सबसे बड़ा किसानों के लिए एक जंग की तरह उसकी रखवाली करना पड़ती है क्योंकि जंगली जानवरों विशेष कर नीलगाय रोज डे से बचाव के लिए अफीम के खेत के चारों तरफ लोहे की जाली लगानी पड़ती है उसमें भी किसानों को काफी खर्च आता है लगभग 10 आरी के खेत में ₹25000 तो जाली लगाने में ही पूरे हो जाते हैं और फिर उन प्रत्येक पौधों को रस्सी से बांधा जाता है ताकि वह नीचे नहीं झुके उसके लिए भी किसान भाई हजारो रुपए खर्च करते हैं
इस प्रकार से अफीम की फसल के लिए किसान अपने दिन-रात मेहनत करते हैं रात-रात जागते हैं रोशनी करते हैं सीसीटीवी कैमरे तक लगाना पड़ते हैं ताकि कोई चोर ङोड़े ना तोड़ ले जावे अफीम के इसलिए भी किसान बहुत चिंतित रहते हैं किस दिन रात रखवाली करते हैं तो फिर सरकार को भी अफीम के अच्छे भाव से लेना चाहिए कम से कम 1 किलो अफीम के ₹25000 देना चाहिए और जो ङोड़े चूरे निकलते हैं उन ङोड़े चुरे को ऊंचे दाम में सरकार जब अफीम का टोल करके अफीम लेती है उसे समय डोडे चुरे को भी साथ में ले लेना चाहिए ताकि बाद में यह एनडीपीसी एक्ट के जो केसेस बनते हैं उसमें निर्दोष किस भी पीस जाते हैं और उनको भी मुलजिम बनाया जाता है जब किसी तस्कर से अफीम या डोडेचूरे की तस्करी करते हुए पकड़े जाते हैं तो फिर वह तस्कर भी किसानों के नाम बता देते हैं जिससे किसान परेशान हो जाते हैं लाखों रुपए का नुकसान फिर वह उठाते हैं तोड़ में किसान के ऊपर केस भी दर्ज हो जाता है उससे जमानत तक नहीं मिलती है 3 महीने तक और सजा भी हो जाती है इसलिए सरकार को चाहिए कि वह अफीम और डोडा चूरा दोनों साथ में ले ले ताकि किसान निश्चित हो जाए और उसके बाद अगर कोई किसान दो नंबर में रखता है तो फिर उसे किसान के ऊपर पुलिस या नारकोटिक्स कार्रवाई करती है तो यह किसान की जवाबदारी होती है और उसका फल उसको भुगतना पड़ता है