मल्हारगढ़ में त्रिकोणीय संघर्ष, दोनों प्रमुख दलो के उम्मीदवारों की नींद निर्दलीयो ने उड़ा रखी
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जनसंपर्क में भीड़ जुटाकर माहौल अपनी तरफ करने की कोशिश में लगे है, उम्मीदवार
कांग्रेस की बगावत अंतिम तक रहती तो भाजपा हमेशा की तरह रूठे को मनाने में कामयाब होगी या नहीं
मल्हारगढ़ का चुनाव काफी रोचक हुआ। श्यामलाल को समाजजन का भी मिल रहा है, समर्थन।
कुचड़ोद (दिनेश हाबरिया)
मध्य प्रदेश में चुनाव की तारीख जैसे जैसे नजदीक आ रही है। वैसे-वैसे उम्मीदवारों की चिंता बढ़ती जा रही है। कई जगह सत्ता पक्ष को विरोध का सामना भी करना पड़ रहा तो कहीं जगह निर्दलीय ताल ठोक कर जिस पार्टी से बगावत करी उसको काफ़ी नुकसान भी पहुंच रहे। हालांकि अंतिम समय में रूठे कार्यकर्ता मानते हैं या नुकसान पहुंचाते हैं, यह तो चुनाव बाद ही पता चलेगा। मल्हारगढ़ विधानसभा का चुनाव भी इस बार काफी रोचक हो गया। यहां हमेशा कांग्रेस बीजेपी के बीच ही मुकाबला होता आया। परन्तु इस बार कांग्रेस बीजेपी के एक-एक बागी ने, दोनों दल के उम्मीदवारों की नींद उड़ा रखी है। यहां भाजपा से वर्तमान विधायक एवं वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा मैदान में है। तो कांग्रेस ने पिछले उम्मीदवार पर ही भरोसा करते हुए परशुराम सिसोदिया को पुनः मैदान में उतारा है। दोनों पार्टियों के नाराज एक-एक जननेता बगावत पर उतर आए। और मैदान में उतरकर मुकाबले को रोचक बना दिया। वही निर्दलीय श्यामलाल जोकचंद को अपने समाजजन का भी समर्थन मिलता दिख रहा है। तो दूसरे निर्दलीय बसंतीलाल मालवीय भी अपनी समाज के वोटों पर निर्भर दिख रहे हैं। अगर दोनों अपनी समाज के वोट अपनी तरफ लाने में सफल होते हैं, तो अन्य समाज के वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं। इसी कारण मल्हारगढ़ विधानसभा का मुकाबला काफी रोचक हो गया है।
भाजपा से बगावत कर निर्दलीय जिला पंचायत लड़े और जीतकर आए बसंतीलाल मालवीय ने नामांकन दाखिल कर मैदान में उतर गए। वही 2008 एवं 2013 में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे, श्यामलाल जोकचंद अपने समर्थकों के बलबूते कांग्रेस से बगावत कर मैदान में डटे हुए हैं। इस कारण यहां का मुकाबला काफी रोचक होकर त्रिकोणीय संघर्ष दिख रहा है।
दोनों पार्टियों के बागी भरेंगे दम या बिगाड़ेंगे खेल। अपनी-अपनी समाज के वोट लाने में कामयाब हुए, तो अन्य समाज जन के वोट निर्णायक भूमिका में रहेंगे।
भाजपा के जगदीश देवड़ा की बात करें तो यहां से लगातार तीन चुनाव जीतकर चौथी बार मैदान में है। विकास के बलबूते प्रचार प्रसार में दम दिखा रहे। वही भाजपा के बागी बसंतीलाल मालवीय मैदान में होने से देवड़ा चिंतित जरूर है। इससे ज्यादा चिंता मंडल लेवल के कार्यकर्ताओं से हैं। जगदीश देवड़ा से ज्यादा विरोध उनका हो रहा है। जैसा कुछ जगह देखने को भी मिला। अगर इन कार्यकर्ताओं से नाराज भाजपा के मतदाता बागी बसंतीलाल मालवीय की तरफ मुड़ गए। और बसंती लाल के समाज के वोट मालवीय को मिले, तो वित्त मंत्री को काफी नुकसान झेलना पड़ सकता है। क्योंकि बसंतीलाल मालवीय जिला पंचायत चुनाव भी बागी होकर लड़े थे और दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों को मात देकर जिला पंचायत सदस्य बने। अगर यही दम विधानसभा में दिखाते हैं और भाजपा के नाराज वोटो को अपनी तरफ कर लेते हैं तो जगदीश देवड़ा का खेल बिगड़ सकता है। प्रचार प्रसार में बसंतीलाल मालवीय के साथ में भीड़ तो नहीं है। पर जिला पंचायत चुनाव में भी बिना भीड़ के हजारों वोट लाकर चौका दिया। बसंतीलाल मालवीय उसी विश्वास से लबरेज दिख रहे।
वही सबसे ज्यादा रस्साकशी कांग्रेस उम्मीदवार एवं कांग्रेस के बागी के बीच दिख रही है। जनसंपर्क में भी दोनों भीड़ जुटाकर माहौल अपनी तरफ होने का दावा कर रहे है। यहां कांग्रेस ने दूसरी बार परशुराम सिसोदिया को मैदान में उतारा। इस कारण नाराज श्यामलाल ने बगावती तेवर दिखाते हुए, समर्थकों के बलबूते मैदान में उतरे। प्रचार प्रसार में काफी भीड़ जुटा कर कांग्रेस उम्मीदवार की नींद हराम कर दी। श्यामलाल के साथ में भीड़ वोटों में तब्दील होती है, तो सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार को ही होना है। वही श्याम लाल की समाज के वोट एक तरफा श्यामलाल को मिले, तो श्यामलाल किंग मेकर की भूमिका में आ जाएंगे। वहीं प्रचार प्रसार में भाजपा से नाराज कार्यकर्ता एवं मतदाता श्यामलाल के साथ जुड़ गए, तो चुनाव त्रिकोणीय हो सकता है।
दोनों निर्दलीयों को अपनी-अपनी समाज के वोट मिल गए, तो अन्य समाजजन के वोट काफी निर्णायक साबित होंगे।
पहले लग रहा था श्याम लाल कांग्रेस वोटों को ही विभाजित करेंगे पर प्रचार में भीड़ देखकर त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है। प्रचार में एक ही दिन बचा। इसके बाद दोनों पार्टियां अंतिम समय में बगावत को रोकने का काम करेगी। जो कहां तक सफल होता है।
जहां तक देखा गया भाजपा हमेशा अंतिम समय में अपने नाराज कार्यकर्ता को मना लेती है। क्या इस बार भी ऐसा ही करेगी या बगावत बरकरार रहेगी? बगावत में नाराज श्यामलाल का साथ देते हैं तो मुकाबले काफी रोचक हो जाएगा। वही भाजपा के नाराज बागी बसंती लाल की तरफ मुड़ते हैं। तो हारजीत का अंतर भी कम रहने की संभावना रहेगी। कुल मिलाकर दोनों बागीयों के कारण दोनों प्रमुख दल चिंता में डूबे हुए हैं। यही कारण है कि भाजपा 18 साल से सत्ता में है, विकास के दावे कर रही, फिर भी प्रचार में पूरी ताकत लगा दी। यहां गुजरात के मुख्यमंत्री भाजपा के पक्ष में चुनावी सभा कर गए।
इधर कांग्रेस उम्मीदवार परशुराम नाराज कार्यकर्ता को तो नहीं मना पाए। पर कमलनाथ के चेहरे पर चुनावी दम दिखा रहे हैं। दोनों पार्टियों का घोषणा पत्र भी प्रदेशवासियों के सामने आ चुका है। अब देखना यह है कि मल्हारगढ़ के मतदाता घोषणा पत्र पर भरोसा करते हैं। या श्यामलाल बागी के साथ जाते हैं। मतदाता दोनों घोषणा पत्र को ध्यान में रखकर गुणा भाग लगा रहे। कुल मिलाकर मल्हारगढ़ का चुनाव पहली बार रोचक हुआ। ऊंट किस करवट बैठता है। यह तो आने वाला समय ही बताएगा।
क्योंकि जनता के सामने भाजपा का 18 वर्ष का शासन, विकास, अस्पताल, स्कूल, सड़के, सिएम राईज स्कूल एवं घोषणा पत्र है।
तो दूसरी तरफ कमलनाथ की 15 महीने की सरकार के कार्य, कर्ज माफी, बिजली बिल आधे किये, गौशालाएं खोली, बिना सर्वे मुआवजा दिया एवं घोषणा पत्र है। अब जनता किस पर विश्वास करती है। यह तो 3 दिसंबर को ही पता चलेगा।