हरतालिका तीज का व्रत, जानें पूजन विधि, शुभ मुहूर्त ,व्रत कथा

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सनातन धर्म में हरतालिका तीज व्रत का काफी महत्व बताया गया है. इस व्रत में सभी व्रती निर्जला उपवास रख भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य प्राप्ति और अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं. यह व्रत काफी कठिन माना जाता है क्योंकि, इसमें फलाहार नहीं किया जाता और यह निर्जला व्रत होता है. इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा के बाद रात्रि जागरण भी किया जाता है.
हरतालिका तीज की पूजा विधि-
इस साल हरतालिका तीज का व्रत 6 सितंबर को रखा जाएगा. इस तिथि की शुरुआत 5 सितंबर की दोपहर में 12 बजकर 22 मिनट पर होगी और इसका समापन 6 सितंबर की सुबह 3 बजकर 1 मिनट पर होगा. पंडित जी के अनुसार, उदया तिथि 6 सितंबर को होने के कारण व्रत भी इसी दिन रखा जाएगा. जबकि, पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 01 मिनट से लेकर 8 बजकर 32 मिनट तक रहेगा.
सुबह ब्रम्हा मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करें. भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की मिट्टी से प्रतिमा बनाएं. अब प्रथम पूज्य भगवान गणेश की पूजा करें. इसके बाद भगवान शिव को बेलपत्र और माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करें पूजा के अंत में भी पहले गणपति देव और फिर शिव शक्ति की आरती करें.
हलवे का भोग- पूजा के बाद शिव परिवार को सूजी के हलवे का भोग लगाएं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन हलवे का भोग लगाने से भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा बनी रहती है.
खीर का भोग- माना जाता है कि भोलेनाथ को खीर अति प्रिय है. इस दिन खीर का भोग लगाकर महादेव को प्रसन् कर सकते हैं.
हरितालिका तीज, 6/09/2024
तृतीया तिथि प्रारम्भ- 5 सितंबर 12:21 pm
तृतीया तिथि समाप्त- 6 सितंबर 3:01 pm
हरितालिका तीज शुभ मुहूर्त- 6/09/2024
पूजा मुहूर्त- 6:02 am से 8:33 am तक।
पूजा अवधि- 2 घण्टे 31 मिनट
हरितालिका तीज का त्यौहार प्रत्येक वर्ष भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, तीज के त्यौहारों मे हरतालिका तीज सबसे बड़ी तीज होती है।हरितालिका तीज से पहले हरियाली और कजरी तीज मनाई जाती हैं।
मान्यता है कि इस व्रत को रखने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। वर्ष 2024 मे यह व्रत 6 सितंबर को मनाया जायेगा। हरितालिका तीज व्रत को महिलाएं अखंड सौभाग्य और सुखी दांपत्य जीवन के लिए रखती हैं। इस व्रत को सभी व्रतों में सबसे कठिन माना जाता है क्योंकि यह व्रत निर्जला रखा जाता है। कुंवारी कन्याएं हरतालिका तीज व्रत को सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए रखती हैं।
हिन्दू धर्म शास्त्रों मे वर्णन किया गया है कि भगवान शिव को पाने के लिए माता पार्वती ने इस व्रत को किया था। इस दिन महिलाएं पूरे दिन निर्जला व्रत रखकर शाम के वक्त भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, शिवजी की वेशभूषा और उनका रहन-सहन राजा हिमाचल को पसंद नहीं था। उन्होंने इस बात की चर्चा नारदजी से की तो उन्होंने उमा का विवाह भगवान विष्णु से करने की सलाह दी। माता पार्वती भगवान शिव को अपना पति मान चुकी थीं। इसलिए उन्होंने विष्णुजी से विवाह करने से मना कर दिया। तब माता पार्वती की सखियों ने इस विवाह को रोकने की योजना बनाई।
माता पार्वती की सखियां उनका अपहरण करते जंगल ले गईं, ताकि उनका विवाह विष्णुजी से न हो सके। सखियों के माता पार्वती का हरण किया इसलिए इस व्रत का हरतालिका तीज पड़ गया। जंगल ने माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रुप में पाने के लिए तप किया और फिर शिवजी ने उन्हें दर्शन देकर पत्नी के रूप में अपना लिया
इस व्रत का विधान आध्यात्मिक और मानसिक शक्ति की प्राप्ति, चित्त और अन्तरात्मा की शुद्धि, संकल्प शक्ति की दृढ़ता, वातावरण की पवित्रता के लिए लाभकारी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के द्वारा व्रती अपने भौतिक एवं पारलौकिक संसार की व्यवस्था करता है ।
हरितालिका तीज पूजा विधि:-
1. प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व ही जागकर नित्यकर्मों से निवृत्त होने के बाद पूजा की तैयारियां शुरू करनी चाहिए । (इस दिन महिलाएं हरे रंग की चूड़ियां और मेहंदी पहनती हैं। मेहंदी सुहाग का प्रतीक है। हरतालिका तीज के दिन हरे रंग का विशेष महत्व होता है।)
2. हरितालिका तीज में श्रीगणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। सर्वप्रथम मिट्टी से तीनों की प्रतिमा बनाएं । शिव-पार्वती एक ही विग्रह में होते हैं। साथ ही देवी पार्वती की गोद में भगवान गणेश भी विराजमान रहते हैं। संभव हो तो से बने शिव-पाउर्वती के विग्रह को गंगा की मिट़्टी से बनाकर प्रतिष्ठित करने के लिए केले के खंभों से मंडप बनाये तथा तरह-तरह के सुगंधित पुष्पों से साज-सज्जा करनी चाहिए ।
3. तत्पश्चात पूर्व या उत्तर मुख होकर दाहिने हाथ में जल, चावल, सुपारी, पैसे और पुष्प लेकर इस मांगलिक व्रत का संकल्प लें।
4. इसका उपरांत भगवान गणेश को तिलक करके दूर्वा अर्पित करें। माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करें, और पीताम्बर रंग की चुनरी चढ़ायें ।
इस प्रकार पंचोपचार अथवा षोडशोपचार पूजन के उपरांत कलश स्थापन करना चाहिए ।
भगवान शिव की पूजा मे फूल, बेलपत्र, शमिपत्री, धूप, दीप, गन्ध, चन्दन, चावल, विल्वपत्र, पुष्प, शहद, यज्ञोपवीत,धतूरा, कमलगट्टा,आक का फल या फूल का प्रयोग करें।
पूजा मे देवी गौरी की पूजा निम्न मंत्र से करे:-
उॅ उमायै नमः, पार्वत्यै नमः, जगद्धात्रयै नमः, जगत्प्रतिष्ठायै नमः, शान्तिस्वरूपिण्यै नमः, शिवायै नमः, ब्रह्मरूपिण्यै नमः।
भगवान शिव की पूजा निम्नलिखित मंत्र से अथवा पंचाक्षरी मंत्र से करे:-
ऊं हराय नम:
ऊं महेश्वराय नम:
ऊं शम्भवे नम:
ऊं शूलपाणये नम:
ऊं पिनाकवृषे नम:
ऊं शिवाय नम:
ऊं पशुपतये नम:
ऊं महादेवाय नम:
शिव पंचाक्षरी मंत्र:-।। ॐ नमः शिवाय ।।
नाम मन्त्रों से पूजन कर निम्नलिखित मन्त्र से प्रार्थना करें:-
देवि- देवि उमे गौरि त्राहि मां करूणानिधे ।
ममापराधः क्षन्तव्या भुक्ति- मुक्ति प्रदा भव ।।
5. कुंवारी कन्याओं को शीघ्र विवाह एवं मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए सौन्दर्यलहरी या पार्वती मंगल स्तोत्र का पाठ करना लाभदायक माना जाता है।
6. इसके बाद श्रीगणेश, शिव और माता पार्वती की आरती करें । दिन में व्रत कथा सुनने के बाद महिलाएं निर्जला रहकर पूरे दिन व्रत रखती हैं। रात में भजन-कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है।
हरितालिका तीज का व्रत अगले दिन खोला जाता है।
हरतालिका तीज व्रत कथा:-
भगवान शिव ने पार्वतीजी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण कराने के उद्देश्य से इस व्रत के माहात्म्य की कथा कही थी।
श्री भोलेशंकर बोले- हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर स्थित गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में बारह वर्षों तक अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इतनी अवधि तुमने अन्न न खाकर पेड़ों के सूखे पत्ते चबा कर व्यतीत किए। माघ की विक्राल शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश करके तप किया। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में तुमने पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न-जल ग्रहण किए समय व्यतीत किया।
तुम्हारे पिता तुम्हारी कष्ट साध्य तपस्या को देखकर बड़े दुखी होते थे। उन्हें बड़ा क्लेश होता था। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या तथा पिता के क्लेश को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे। तुम्हारे पिता ने हृदय से अतिथि सत्कार करके उनके आने का कारण पूछा।
नारदजी ने कहा- गिरिराज! मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां उपस्थित हुआ हूं। आपकी कन्या ने बड़ा कठोर तप किया है। इससे प्रसन्न होकर वे आपकी सुपुत्री से विवाह करना चाहते हैं। इस संदर्भ में आपकी राय जानना चाहता हूं।
नारदजी की बात सुनकर गिरिराज गद्गद हो उठे। उनके तो जैसे सारे क्लेश ही दूर हो गए। प्रसन्नचित होकर वे बोले- श्रीमान्! यदि स्वयं विष्णु मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो भला मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। हे महर्षि! यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने। पिता की सार्थकता इसी में है कि पति के घर जाकर उसकी पुत्री पिता के घर से अधिक सुखी रहे।
तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी विष्णु के पास गए और उनसे तुम्हारे ब्याह के निश्चित होने का समाचार सुनाया। मगर इस विवाह संबंध की बात जब तुम्हारे कान में पड़ी तो तुम्हारे दुख का ठिकाना न रहा।
तुम्हारी एक सखी ने तुम्हारी इस मानसिक दशा को समझ लिया और उसने तुमसे उस विक्षिप्तता का कारण जानना चाहा। तब तुमने बताया – मैंने सच्चे हृदय से भगवान शिवशंकर का वरण किया है, किंतु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी से निश्चित कर दिया। मैं विचित्र धर्म-संकट में हूं। अब क्या करूं? प्राण छोड़ देने के अतिरिक्त अब कोई भी उपाय शेष नहीं बचा है। तुम्हारी सखी बड़ी ही समझदार और सूझबूझ वाली थी।
उसने कहा- सखी! प्राण त्यागने का इसमें कारण ही क्या है? संकट के मौके पर धैर्य से काम लेना चाहिए। नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि पति-रूप में हृदय से जिसे एक बार स्वीकार कर लिया, जीवनपर्यंत उसी से निर्वाह करें। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो ईश्वर को भी समर्पण करना पड़ता है। मैं तुम्हें घनघोर जंगल में ले चलती हूं, जो साधना स्थली भी हो और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी न पाएं। वहां तुम साधना में लीन हो जाना। मुझे विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।
तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर पर न पाकर बड़े दुखी तथा चिंतित हुए। वे सोचने लगे कि तुम जाने कहां चली गई। मैं विष्णुजी से उसका विवाह करने का प्रण कर चुका हूं। यदि भगवान विष्णु बारात लेकर आ गए और कन्या घर पर न हुई तो बड़ा अपमान होगा। मैं तो कहीं मुंह दिखाने के योग्य भी नहीं रहूंगा। यही सब सोचकर गिरिराज ने जोर-शोर से तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।
इधर तुम्हारी खोज होती रही और उधर तुम अपनी सखी के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन थीं। भाद्रपद शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण करके व्रत किया। रात भर मेरी स्तुति के गीत गाकर जागीं। तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन डोलने लगा। मेरी समाधि टूट गई। मैं तुरंत तुम्हारे समक्ष जा पहुंचा और तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न होकर तुमसे वर मांगने के लिए कहा।
तब अपनी तपस्या के फलस्वरूप मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा – मैं हृदय से आपको पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर आप यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।
तब मैं ‘तथास्तु’ कह कर कैलाश पर्वत पर लौट आया। प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री को नदी में प्रवाहित करके अपनी सहेली सहित व्रत का पारणा किया। उसी समय अपने मित्र-बंधु व दरबारियों सहित गिरिराज तुम्हें खोजते-खोजते वहां आ पहुंचे और तुम्हारी इस कष्ट साध्य तपस्या का कारण तथा उद्देश्य पूछा। उस समय तुम्हारी दशा को देखकर गिरिराज अत्यधिक दुखी हुए और पीड़ा के कारण उनकी आंखों में आंसू उमड़ आए थे।
तुमने उनके आंसू पोंछते हुए विनम्र स्वर में कहा- पिताजी! मैंने अपने जीवन का अधिकांश समय कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या का उद्देश्य केवल यही था कि मैं महादेव को पति के रूप में पाना चाहती थी। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूं। आप क्योंकि विष्णुजी से मेरा विवाह करने का निर्णय ले चुके थे, इसलिए मैं अपने आराध्य की खोज में घर छोड़कर चली आई। अब मैं आपके साथ इसी शर्त पर घर जाऊंगी कि आप मेरा विवाह विष्णुजी से न करके महादेवजी से करेंगे।
गिरिराज मान गए और तुम्हें घर ले गए। कुछ समय के पश्चात शास्त्रोक्त विधि-विधानपूर्वक उन्होंने हम दोनों को विवाह सूत्र में बांध दिया।
हे पार्वती! भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के फलस्वरूप मेरा तुमसे विवाह हो सका। इसका महत्व यह है कि मैं इस व्रत को करने वाली कुंआरियों को मनोवांछित फल देता हूं। इसलिए सौभाग्य की इच्छा करने वाली प्रत्येक युवती को यह व्रत पूरी एकनिष्ठा तथा आस्था से करना चाहिए।
(समाप्त)
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आगामी लेख:-
1. 2 सितंबर के पंचांग मे “हरतालिका तीज” विषय पर लेख।
2. 3 सितंबर के पंचांग मे “ऋषि पंचमी” विषय पर लेख।
3. 4 सितंबर के पंचांग से “गणेश चतुर्थी/पत्थर चौथ/कलंक चतुर्थी” विषय पर धारावाहिक लेख
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कल 03/09/2024 का पंचांग,दिल्ली
सोमवार, 2/09/2024
श्री संवत 2081 ,शक संवत् 1946*
सूर्य अयन- दक्षिणायण, उत्तर गोल
ऋतुः- वर्षा-शरद् ऋतुः
मास:- भाद्रपद मास।
पक्ष- कृष्णपक्ष।
तिथि- अमावस्या तिथि 3 सित० 7:24 am तक
नक्षत्र- मघा नक्षत्र 3 सित० 12:20 am तक
योग- शिव योग 6:20 pm तक (शुभ है)
करण- चतुष्पाद करण 6:20 pm तक
सूर्योदय- 6 am, सूर्यास्त 6:41 pm
चंद्रराशि- चंद्र सिंह राशि मे।
अभिजित् नक्षत्र- 11:55 am से 12:46 am तक
राहुकाल- 7:35 am से 9:10 am तक (शुभ कार्य वर्जित,दिल्ली)
दिशाशूल- पूर्व दिशा।
सितंबर शुभ दिन-: 4, 5, 6, 7, 8 (दोपहर 3 तक), 10, 11, 12, 13, 14 (सवेरे 10 तक), 15, 16, 17 (दोपहर 12 तक), 19, 20 (सवेरे 11 तक), 21, 23 (दोपहर 2 तक), 25, 26, 27 (दोपहर 1 उपरांत), 28, 29 (सायंकाल 5 तक)
अशुभ दिन-: 2, 3, 9, 18, 22, 24, 30.
गण्डमूल आरम्भ:– 31 अगस्त अश्लेषा ऩक्षत्र 7:40 pm से लेकर 2/3 सितंबर मध्यरात्रि मघा नक्षत्र 00:20 am तक गंडमूल रहेगें।* गंडमूल नक्षत्रों मे जन्म लेने वाले बच्चो का मूलशांति पूजन आवश्यक है।
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आगामी व्रत तथा त्यौहार:-
1 सितं०- मासिक शिवरात्रि। 2 सितं०- भाद्रपद अमावस्या/पिठोरी अमावस्या/सोमवती अमावस्या।6 सितं०- वराह जयन्ती/हरतालिका तीज। 7 सितं०- गणेश चतुर्थी। 8 सितं०- ऋषि पञ्चमी। 9 सितं०- स्कन्द षष्ठी। 10 सितं०- ललिता सप्तमी। 11 सितं०- राधा अष्टमी/महालक्ष्मी व्रत आरम्भ/दूर्वा अष्टमी/गौरी पूजा।
12 सितं०- गौरी विसर्जन। 14 सितं०- परिवर्तिनी एकादशी। 15 सितं०- वामन जयन्ती/भुवनेश्वरी जयन्ती, प्रदोष व्रत/ओणम। 16 सितं०- कन्या संक्रान्ति/विश्वकर्मा पूजा, मिलाद उन-नबी/ईद-ए-मिलाद। 17 सितं०- अनन्त चतुर्दशी/गणेश विसर्जन, पूर्णिमा उपवास/पूर्णिमा श्राद्ध।
18 सितं०- भाद्रपद पूर्णिमा/चन्द्र ग्रहण/प्रतिपदा श्राद्ध। 21 सितं०- संकष्टी चतुर्थी। 24 सितं०- कालाष्टमी/महालक्ष्मी व्रत पूर्ण। 25 सितं०- जीवितपुत्रिका व्रत। 28 सितं०- इन्दिरा एकादशी
29 सितं०- प्रदोष व्रत। 30 सितं०-मासिक शिवरात्रि।
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आपका दिन मंगलमय हो. 💐💐💐