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भगवान पशुपतिनाथ की प्रतिष्ठा करके स्वामी प्रत्यक्षानंदजी महाराज ने मंदसौर को पावन तीर्थ बना दिया- पूज्य युवाचार्य महेश चैतन्यजी महाराज


भगवान श्री पशुपतिनाथ प्रतिष्ठाता ब्रह्मलीन  श्री प्रत्यक्षानंदजी महाराज का मनाया 43वां  महानिर्वाण महोत्सव

मन्दसौर। 24 सितम्बर को श्री चैतन्य आश्रम मेनपुरिया में विश्व प्रसिद्ध अष्टमूर्ति भगवान श्री पशुपतिनाथ के प्रतिष्ठाता ब्रह्मलीन स्वामी श्री  प्रत्यक्षानंदजी महाराज का 43वां महानिर्वाण दिवस महोत्सव आश्रम के परम पूज्य युवाचार्य संत श्री मणीमहेश चैतन्यजी महाराज, स्वामी कृष्णप्रेमानंदजी महाराज, स्वामी आनन्दस्वरूपानंदजी महाराज, स्वामी शिव चैतन्यजी महाराज, स्वामी प्रभातमुनिजी महाराज, स्वामी मोहनानन्दजी महाराज आदि के सानिध्य में मनाया गयां
आश्रम स्वामी प्रत्यक्षानंदजी महाराज के समाधि मंदिर में प्रतिष्ठित स्वामीजी की प्रतिमा पूजन अभिषेक आरती की गई। पूजन विधि पं. विष्णुलाल व्यास पं. दिनेश व्यास ने सम्पन्न कराई
स्वामी कृष्णप्रेमानंदजी ने कहा कि जिस प्रकार पात्र बिना जल नहीं ठहरता उसी प्रकार बिना ज्ञान के मोक्ष नहीं होता। स्वामी प्रत्यक्षानंदजी ने भागवत कथा प्रवचन सत्संग के माध्यम से सबको मोक्ष का मार्ग प्रशस्ती का ज्ञान कराया।
स्वामी मणि महेश चैतन्यजी महाराज ने कहा कि स्वामी श्री प्रत्यक्षानंदजी ने मालवा क्षेत्र में जन्म लेकर मालवा मेवाड़ा आदि क्षेत्रों में भ्रमण करते हुए धर्म का प्रचार प्रसार किया। आपके प्रवचन की शैली बहुत ही सरल थी। बिना पढ़े अशिक्षित भी उनके प्रवचनों को सहज ही समझ लेता था। प्रवचन के प्रारंभ मध्य और समाप्ती पर आपके श्री मुख से जो उच्चारण नारायण देव की जय-उद्घोष सबके मन को मोह लेता था। चैतन्य आश्रम में भगवान कठिन साधना करके  भगवान पशुपतिनाथ प्रतिष्ठापन कर मंदसौर को तीर्थ रूप को विश्व मानचित्र पर पहचान दिलाई।  प्रत्येक माह खोली जाने वाली दानपेटी से विदेशी मुद्राओं का निकलना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। स्वामीजी के तपस्या के प्रभाव से जो भी आश्रम में आत्मा उसे अपार सुख शांति आनन्द का अनुभव होता है।
स्वामी आनन्दस्वरूपानदंजी महाराज ने कहा कि महापुरूषों का अवतीर्ण संसार के लोगों के कल्याण के लिये होता है। महापुरूषों का महानिर्वाण उनकी जन्म मृत्यु की गति की समाप्त होकर स्वयं भगवद्कार हो जाते है। सबको प्रत्यक्ष आनन्द की अनुभूति कराके स्वामीजी ने अपने प्रत्यक्षानंद नाम को साकार कर दिया। हमारे तन की बीमारियों का उपचार तो डॉक्टर कर सकता है परन्तु शारीरिक बीमरियों से भयंकर बीमारी है वह है मानसिक रोग और इसका उपचार एक सदगुरू ही कर सकता है।
स्वागत उद्बोधन भागवत प्रवक्ता पं. कृष्णवल्लभ शास्त्री ने दिया। डॉ. रविन्द्र पाण्डे ने भी संबोधित किया।  संचालन ट्रस्टी योग गुरू बंशीलाल टांक ने किया। आभार लोक न्यास सचिव रूपनारायण जोशी ने माना।
संतों का सम्मान किया- ट्रस्टी रूपनारायण जोशी, सहसचिव एडवोकेट अजय सिखवाल, कोषाध्यक्ष महेश गर्ग, पूर्व कोषाध्यक्ष जगदीशचन्द्र सेठिया, न्यासीगण बंशीलाल टांक, ओंकारलाल माली, प्रद्युम्न शर्मा, रमेशचन्द्र शर्मा।
उपस्थित रहे- शिवनारायण शर्मा, राजेन्द्र चाष्टा, रमेशचन्द्र चन्द्रे, इंजि. बी.एस. सिसौदिया, अनिल संगवानी, गोपाल पारवानी, ब्रजमोहन बिजवाड़, बालूराम, कालूराम कालमा, सुरेश खत्री उज्जैन, अमृतलाल चौधरी उज्जैन आदि।
अंत में प्रसादी भण्डारा हुआ।

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