आध्यात्ममंदसौर जिलाशामगढ़

जो जिस उम्र में है वहीं से परमात्मा की ओर अपने आप को जोड़े वहीं से कल्याण संभव हैl-संत श्री राम महाराज 

जो जिस उम्र में है वहीं से परमात्मा की ओर अपने आप को जोड़े वहीं से कल्याण संभव हैl-संत श्री दिव्येश राम जी राम महाराज 

चातुर्मास का आयोजन शामगढ़ में पोरवाल मांगलिक भवन माकड़ी रोड पर चल रहा हैl

संत श्री की दिव्य वाणी तथा समाज सुधार आज की परिस्थितियों पर बे बाकतरीके से प्रवचन के माध्यम से प्रतिदिन फटकार लगाई जा रही हैl

संत श्री ने प्रतिदिन सत्संग में परमात्मा के भजन के साथ-साथ सांसारिक विषयों पर परिस्थितियों पर अपने विचार रखकर उपस्थित माता बहनों भाइयों बुजुर्गों को बार-बार परिवार में संस्कारों का होना बच्चों पर अपना कंट्रोल होना तथा जो परिस्थितियों आज समाज को धर्म को धर्म ग्रंथ को तथा संतो को हम भूला रहे हैं इस विषय पर लगातार अपनी वाणी द्वारा चिंता के साथ-साथ चेतावनी भी दे रहे हैं l

आज के सत्संग में भगवान अर्धनारीश्वर एवं पशुपतिनाथ के अष्ट मुख की कथा का विस्तृत वर्णन कियाl

पुरुष और नारी दोनों को समान अधिकार है किंतु हमारी संस्कृति में नारी को विशेष अधिकार भी हैl

शादी के लिएनारी की पसंद कीस्वतंत्रता का इतिहास हमारी संस्कृति में बहुत पुराना हैl

राजा पुत्री के लिए स्वयंवर रखता था जिसमें तमाम देश के राजा जो सामान जाति के होते थे जाते थेl

उन सब में से राजा की पुत्री को अपनी पसंद का वर चुनने का अवसर होता था किंतु जाति मर्यादा का सम्मान होता थाl

इतिहास में हजारों बार स्वयंवर हुए हैं और योग्य समझ कर राजकुमारी ने इसके गले में माला डाली मतलब सब कुछ समर्पित कर देती थीl

आज की परिस्थितियों और संस्कारों में कितना परिवर्तन आप और हम देख रहे हैंl

जब तक हम संस्कार वानऔर धर्मनिष्ठ नहीं बनेंगे तब तक सभ्य समाज का निर्माण नहीं हो सकता हैl

संत श्री ने दुख सुख के विषय में बड़ा ही सटीक और शिक्षाप्रद दृष्टांत दियाl

कौन सी योनि में दुख रही है या सुख नहीं है इस ब्रह्मांड की जितनी भी जीव मात्र हैं दुख सुख आता ही है कभी भी किसी के भी एक समान दिन नहीं रहतेl

भगवान होते हुए भी राम जी को कृष्ण जी को कितने कष्ट देखना पड़े पूर्व जन्म के अवतारपाप पुण्य के कारण या फिर किसी को दिया गया वरदान हो उसके लिए यहां पर लीला करना पड़ती हैl

संत श्री का जो चातुर्मास सत्प्रेरणा जिसका नाम है इसमें भगवान के प्रसंग दृष्टांत और ऋषि मुनियों की अनुभव वाणी हमारे वेद ग्रंथ पुराण में वर्णित संस्कारों से आज के समाज के संस्कारों से तुलना करके यह संदेश दे रहे हैं कि हम धीरे-धीरे कहां से कहां पहुंच गए हैंl

युवा पीढ़ी को भी आप दृष्टांतों के माध्यम से सचेत करते हैं जीवन में कहां-कहां युवा भ्रमित हो सकता है उन विषयों पर भी पर्याप्त बात करते हैंl

आज का समाज जहां पर वर्ण व्यवस्था के अनुसार सांसारिक मर्यादा पूर्ण जीवन चक्र सभी का चलता था l

अपनी जाति के अनुसार वैवाहिक कार्यक्रम होते थे ब्राह्मण का ब्राह्मण में वैश्य का वेश्य में, क्षत्रिय का क्षत्रिय में और शूद्र का समान जाती में संबंध विवाह होते थे l

और आज की परिस्थितियों आप सब देख रहे हैंl

संत श्री का हर उम्र के व्यक्ति के लिए माता बहनों के लिए जीवन जीने का संदेश अलग-अलग होता है जो जिस उम्र में है वहां से भगवान की ओर राम नाम की ओर धर्मनिष्ठ ताकि और आगे बढ़े l

कोई यह न सोचे अब उम्र ठीक हो गई है अब क्या कर है सत्संग से क्या होगा शारीरिक कमजोरी के कारण चलना फिरना बा मुश्किल होता है उनको भी संदेश है जितने दिन शेष बचे हैं जितने नाम ले सको भगवान के लोग जो जिस उम्र में है वहीं से परमात्मा की ओर अपने आप को जोड़े वहीं से कल्याण संभव हैl

संत श्री के मुखारविंद से और भी कई बातें दृष्टांत कहे गए जो सब सत्यता के काफी नजदीक है इसलिए यह पांच तत्व से निर्मित हार्ड मांस का पुतला जिसमें 206 हड्डियां हैं किंतु हमारी जुबान जिसमें हड्डी नहीं है फिर भी ऐसा वार करती है कि सामने वाले की मान प्रतिष्ठा पर आंच आना स्वाभाविक हैl

संतो द्वारा कहे गए वचनों को उनके दोहों को बड़ी गंभीर बातें सहज स्वाभाविक तरीके से हम सबको बताते हैंl

मां सरस्वती के साथ-साथ संत श्री के परम पूज्य गुरुदेव प्रातः स्मरणीय श्री शंभू राम जी महाराज साहब की कृपा तथा रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य और सभी संतो के आशीर्वाद से आप सुशोभित हैं l

धर्म और समाज के प्रति आपकी जागरूकता के साथ-साथ जब तक समझ नहीं सुधरेगा तब तक समाज के लोगों के मन में धर्म का अंकुरण नहीं फूट सकताl

पहले समाज में रहने वाले व्यक्तियों के मन में जो विकार हैं जब तक वह नष्ट नहीं होंगे समाज में व्यक्तित्व का निर्माण नहीं हो सकताl

सभी को सत प्रेरणा लेकर किसी के अंदर कोई इस प्रकार का विकार हो तो उसे मन से दूर करें ताकि प्रभु भक्ति में आपका तन और मन लग रहेl

एक व्यक्ति ने भगवान की तपस्या करके वरदान में ऐसा शंख प्राप्त किया l उसकी पूजा अर्चना करके उससे जो मांगो वह मिल जाता थोड़े ही दिनों में उसव्यक्ति की आर्थिक स्थिति, शारीरिक स्थिति और पारिवारिक स्थिति एकदम बदल गई आस पड़ोस के रहने वाले लोग बड़ा आश्चर्य करने लगे l

एक बात जो हमारी माताएं बहने हैं उनके मन में किसी प्रकार की बात रह नहीं सकती जब तक दूसरों को बातें नहीं बता दे तब तक इनका हाजमा खराब रहता है l

उस व्यक्ति के पड़ोस में रहने वाले की पत्नी ने जब उस व्यक्ति की पत्नी से उसके सुख का कारण पूछा तो उसने सारी कथा उसको बता दी

अब तो पड़ोस वाले की पत्नी बेचैन रहने लगी अपने पति को सारी बात बताई उसके पति ने उस शख को प्राप्त करने के लिए वैसा ही शंख खरीद कर लाया और असली शंख के स्थान पर नकली शंख रख दिया l

अब तो पड़ोसी के भी आनंद हो गया l

दूसरे दिन सुबह पूजा करके उसने जैसे ही वस्तुएं मांगी तो उस उसे कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ अब तो वह चिंता में पड़ गया तो चार दिन में हताश निराश होकर वापस भक्ति करने के लिए चला गया भगवान प्रसन्न भी हो गए और उसने वरदान मांगा कि मुझे वैसा ही शक चाहिए जो आपने पहले दिया था और इच्छित हर वस्तु को प्रदान करता था

भगवान ने कहा मैं तुझे वैसा शंख तो नहीं दे सकता किंतु तुझे ऐसाशंख तू एक वस्तु मांगेगा वह 10 की हां भरेगा वह खुश हो गया घर ले आया l

दूसरे दिन पड़ोसी की पत्नी ने फिर पूछा कि अब क्या हाल है उसने कहा मेरे पति ऐसा शंखलाए हैं जिससे एक वस्तु मांगो 10 देता है 1000 मांगो 10000 देता है 10000 मांगो एक लाख देता है फिर पड़ोसी की पत्नी के मन में लालच आया और पति से कहा अब हमको वह शंख उनके यहां से लाना हैl

पति ने युक्ति लगाकर पुराना शंकर वहां रखकर वह दूसरा शंख लेकर आ गयाl

पूजा करके उसने उसे शंख से अपने मन की बात कहते हुए 1000 मांगे उसने कहा 10000 दूंगा किंतु खाली हां भरता है देता कुछ नहीं हैl

इसी प्रकार के लोग आज समाज में घोषणा करके माला पहनकर सम्मान प्राप्त करके देते कुछ नहीं हैl

हर जगह लाखों की घोषणा करेंगे ट्रस्ट बनाएंगे मंदिर कोजमीन दान करेंगे किंतु सिर्फ घोषणा करेंगेl

आज तो और विषम परिस्थितियों नजर आ रही है लोग समाज के पैसे धर्म के पैसे चंदा के पैसे इकट्ठे करते हैं किंतु उनके हिसाब किताब कुछ नहीं होता है कुछ लोग जब हिसाब मांगते हैं तो हिसाब देने के बजाय लड़ाई झगड़ा करने के लिए तैयार हो जाते हैंl संत श्री ने कहा जब तक ऐसे लोग समाज में हैं समाज का उद्धार नहीं हो सकताl

 

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