मंदसौरमंदसौर जिला

अहंकारी मनुष्य कभी धर्म मार्ग पर नहीं चल सकता,इस लिए हमेशा सहज सरल बनकर रहिए – आचार्य विभक्त सागर जी मुनिराज

अहंकारी मनुष्य कभी धर्म मार्ग पर नहीं चल सकता,इस लिए हमेशा सहज सरल बनकर रहिए – आचार्य विभक्त सागर जी मुनिराज

मंदसौर।  पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन उत्तम आर्जव धर्म का पालन हम सभी करते है। आर्जव धर्म  का मतलब होता है  सरल-सहज स्वभाव का होकर धर्म मार्ग पर चलना,  कुटिलता का त्याग करना। जो व्यक्ति छल कपट मायाचारी करता है, त्याग नहीं करता वह व्यक्ति कभी धर्म मार्ग पर नहीं चल सकता। यह बात धर्म सभा में  द्वितीय पट्टाचार्य, राष्ट्र संत एवं स्पष्ट प्रवक्ता दिगम्बर आचार्य 108 श्री विभक्त सागर जी मुनिराज ने कही। प्रवचन के दौरान क्षुल्लक श्री 105 क्षेमंकर नंदी जी महाराज उपस्थित थे। संत श्री नाकोडा नगर स्थित आचार्य 108 सम्मति कुंज संत निवास पर विराजित है। प्रवर्चन से पूर्व मंगलाचरण सुरेश पंड्या ने किया,संचालन मुकेश जैन के द्वारा किया गया।
मुनिश्री ने कहा कि रावण जनता था कि श्री राम उससे कही अधिक श्रेष्ठ है,वह भगवान है लेकिन फिर भी उसका अहंकार मायाचारी उसके अंत का कारण बना। वह सीता जी को मायाचारी करके धोखे से हरण कर के लाया,लेकिन वह कई बार विचार करता था कि उससे गलती हुई है और वह सीताजी को स सम्मान वापस श्री राम को लौटाना भी चाहता था लेकिन जब भी वह अपने सिंहासन पर बैठता ओर उसके अंदर का अहंकार जाग जाता। इसी अहंकार की वजह से उसके पाप कर्म का उदय हुआ और उसी के शस्त्र से अंत हुआ। मुनिश्री ने कहा का जो जिस पद पर है उसका उसी भाव के साथ सम्मान करना चाहिए। गुरु हो या माता पिता या फिर कोई ओर सभी का अलग अलग स्थान होता है।  जीवन में सरलता लाएँ। मन-वचन-काय की प्रवृत्ति जहाँ समान हो जाती है। वहाँ आर्जव धर्म का प्रवेश होता है। छल कपट के द्वारा तत्काल में कुछ लाभ दिखाई दे सकता है। लेकिन विश्वास मानिए आपने स्वयं ही अपने आपको छला है। जब उस छल का जगत को पता चलेगा, तो इस भव में तिरस्कार के साथ दुःख तो पायेगा ही तथा उस पाप का फल जब उदय में आयेगा, सो परभव में भी दुःख ही पायेगा। इसी लिए हमेशा सरल सहज बनकर रहिए यही आर्जव धर्म सिखाता है।

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