अफीम की फसल पर आए फुल, जनवरी अंत और फरवरी के पहले सप्ताह में लगेगा चीरा
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काला सोना पर सफेद फूल की बहार
जंगली जानवरों से बचाव के लिए लोहे की जाल एवं पक्षियों से बचाव के लिए किसानों ने फसल के ऊपर ऊपर नेट की जाल बिछाई।
किसान बोले; पहले गर्मी के कारण अब कोहरे के कारण बीमारियां आएगी। काली मस्सी का प्रकोप दिखा। खाद बीज दवाई सहित खर्चा दस आरी में डेढ़ लाख के करीब।
गांव में 175 लाइसेंस धारी किसान। 64 में लगेगा। चीरा बाकी सीपीएस पद्धति के
कुचड़ौद । (दिनेश हाबरिया) गांव में अफीम की फसल पर फूल आने लगे। यह डोडे का आकार लेंगे। इसके बाद इसमें चीरा लगाया जाएगा। जो जनवरी अंत या फरवरी के पहले सप्ताह में चीरा लगाने की शुरुआत होगी। किसान फसल को नवजात शिशु की तरह पाल पोस कर बड़ा कर रहे है। अफीम की फसल की सुरक्षा किसान इस तरह से कर रहे की जंगली जानवर पशु पक्षियों से पूरी तरह से बचाव हो सक। वही पाले से सुरक्षा के लिए फसल के चारों ओर मक्का की फसल लगाकर सुरक्षा के इंतजाम कर रहे। किसानों ने अफीम के चारों ओर लोहे की जाल भी लगाई, ताकि जंगली जानवर एवं पशु अंदर नहीं जा सके और फसल में नुकसान नहीं कर सके। वही डोड़े आने के बाद पक्षी तोते काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इनसे बचाव के लिए किसानों ने अफीम फसल के ऊपर नेट की जाल बांधी। किसानों के अनुसार फसल बुवाई से लगाकर चीरा लगाकर फसल उपज घर आने तक, दस आरी क्षेत्रफल में हकाई जुताई, निंदाई गुड़ाई, रासायनिक खाद, बीज, स्प्रिंकलर, आसपास लोहे की जाल, ऊपर नेट की जाल, अंदर फसल आड़ी ना हो जिसके लिए फसल के अंदर भी डोरियां एवं लुनाई चिराई तक कुल खर्च डेढ़ लाख के करीब हो जाता है।
कुचड़ोद के जागरूक किसान बद्री लाल ओझा कुमावत ने बताया, अफीम की फसल में फूल आ गए अब डोड़े बनेंगे। जनवरी अंत या फरवरी के पहले सप्ताह में चिरा लगेगा। अफीम की फसल में काफी खर्च आता है। वर्तमान में फसल 2 फीट के करीब हो गई। 2 फीट और बढ़ेगी। अफीम की फसल में करीब 10 बार सिंचाई करना पड़ती है। वही इतनी ही बार दवाई का छिड़काव करना पड़ता है। अच्छी फसल के लिए प्रकृति का साथ देना जरूरी है। इस बार पहले काफी गर्मी पड़ी जिसके कारण फसल में बीमारी का प्रकोप देखा गया। वहीं अब कोहरे के कारण काली मस्सी का प्रकोप दिखने लगा है। फसल को नवजात शिशु से बढ़कर पाल पोस कर बड़ा करते हैं। फसल बुवाई से अंत तक निगरानी रखना पड़ती है। वहीं अब जंगली जानवर रोजड़े काफी तादात में हो गए। इनसे बचाव के लिए फसल के चारों ओर मजबूत लोहे की जाल लगाना पड़ती है। वही डोड़े आने पर पक्षियों तोते से सुरक्षा के लिए फसल के ऊपर नेट की जाल लगाई गई। इससे पक्षी नुकसान नहीं कर पाएंगे। वही चीरा लगने के दौरान पश्चिम से तेज हवाएं चलती है। इसलिए फसल के अंदर भी दो बाय दो फिट की डोरिया लोहे के तार लगाकर बांधे गए। ताकि फसल आड़ी ना पड़े। वही फसल के चारों ओर मक्का की फसल लगाई। ताकि शीतलहर के कारण फसलों पर ओस की बूंदे नहीं जम पाए। पाला गिरे तो फसल में नुकसान ना हो। अफीम की फसल में काफी खर्च आने लगा। बुवाई से लगाकर अंत तक सभी खर्च जोड़े तो सवा लाख से डेढ़ लाख तक का खर्च बैठता है। चीरा लगाने के ही मजदूरों को 500 से ₹600 दिन के देना पड़ते हैं। जिसका खर्च ही 25 से 30 हजार हो जाता है। पोस्ता के भाव अच्छे मिल जाए, तो मजदूरी मिल जाती है। अन्यथा अफीम के भाव तो काफी काम है। 975 से 18 सो रुपए प्रति किलो के भाव से मिलते हैं। जो ऊंट के मुंह में जीरा के समान है। सरकार को अफीम में लागत को देखते हुए भाव में वृद्धि करना चाहिए। ताकि किसान को मुनाफा मिल सके।
गांव में 175 लाइसेंस। जिसमें 64 में लगेगा चीरा। बाकी सीपीएस पद्धति के लाइसेंस है।
अफीम लंबरदार मुखिया प्रेम सिंह पंवार ने बताया, गांव में 175 लाइसेंस अफीम के पट्टे हैं। जिसमें 64 पट्टो में ही चीरा लगेगा। बाकी सीपीएस पद्धति के हैं। ऐसे पट्टो में चीरा नहीं लगाया जाता है। इन किसानों को नारकोटिक्स विभाग को 8 इंच डंटल सहित डोडे तुलवाना जरूरी है।