एक की भूल सबसे भारी, इसलिये भी कांग्रेस हारी – किषोर जेवरिया

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आपने एक कहावत तो सुनी होगी ‘‘फूटे करम फकीर के भरी चिलम ढुल जाए।‘‘ कुछ ऐसा ही कांग्रेस के साथ हुआ
हम मध्यप्रदेष की बात करेंगे। मध्यप्रदेष में यह साफ लग रहा था कि इस बार यहां से षिवराज सरकार की विदाई तय है। इस कारण केन्द्रीय नेतृत्व ने म.प्र., राजस्थान, छत्तीसगढ में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा घोषित नहीं किया। कई केन्द्रीय मंत्री व सांसद विधानसभा चुनाव में उतारे गए। चुनाव की कमान भाजपा केन्द्रीय नेतृत्व ने अपने हाथ में ले ली।
कांग्रेस बडे उत्साह में थी। फिर क्या हुआ कि म.प्र. में कांग्रेस इतनी बूरी तरह हारी। कारण कई हैं पर एक बडा कारण जो दिखाई देता है वह है प्रदेष कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ।
कमलनाथ वो षख्सियत हैं जो पूर्व प्रधानमंत्री स्व.इंदिरा गांधी के छोटे बेटे स्व.संजय गांधी के साथ दून स्कूल में पढे, उनके खास दोस्तों में थे। वे ही इन्हें राजनीति में लाए थे, तबसे ये सत्ता के केन्द्र में रहे। इनके स्व.राजीव गांधी से भी मधुर सम्बंध रहे। गांधी परिवार में इनका बडा मान रहा है। अपने पिता व चाचा के मित्र कमलनाथ को राहुल गांधी भी पूरा सम्मान देते रहे हैं।
अब आते हैं इनके मिजाज पर। 2018 में बनी कांग्रेस की सरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया के भाजपा के साथ जाने से गिरी। उनकी बगावत में श्री कमलनाथजी भी एक बडा कारण रहे। यह जगजाहिर किस्सा है, उसे यहां दोहराने का कोई मतलब नहीं।
विधानसभा तैयारी के मद्देनजर कांग्रेस हाईकमान ने म.प्र. में श्री मुकुल वासनिक को प्रदेष प्रभारी बनाकर भेजा जो कमलनाथ से राजनीति में काफी जुनियर थे। कमलनाथजी के सामने उनकी नहीं चली वे यहां से विदा हो गए फिर आए जे.पी.अग्रवाल जो वरिष्ठ नेता थे पर कमलनाथजी के साथ इनकी भी पटरी नहीं बैठी, ये भी बेक टू पेवेलियन हो गए। फिर आए रणदीपसिंह सूरजेवाला जो चुनाव तक यहां रहे।
एक षख्स और आए थे श्री सुनील कानूगोलू, ये चुनावी रणनीतिकार हैं, जिन्होंने कांग्रेस को कर्नाटक में जीत दिलाने में बडी भूमिका निभाई थी।
इन्होंने कांग्रेस की जीत के लिये म.प्र. में रणनीति बनाई थी जिसमें 500 रू. में गैस सिलेण्डर, 23 से 60 साल तक की महिलाओं के खाते में प्रतिमाह 1500 रूपये देने बात की थी।
यह रणनीति 2023 के जनवरी माह में बन गई थी। माननीय कमलनाथजी ने इसका कई जगह जिक्र उसी समय करना षुरू कर दिया कि हम यह करने जा रहे हैं। बस यहीं चूक हो गई। इसे श्री षिवराजसिंह ने तुरन्त झपट लिया और अपने अधिकारियों को निर्देष दिये कि वे लाडली बहना के नाम से स्कीम लाएं, उनके खाते में सीधे रूपये डाले जाएंगे। स्कीम बनी ताबडतोड फार्म भरवाए गए और जून माह से महिलाओं के खाते में हजार रूपये डाले गए। यह भी कहा गया कि यह बढकर 1250, 1500 और 3000 तक हो जाएंगे। चुनाव से एक सप्ताह पहले धनतेरस को महिलाओं के खाते में 1250 रूपये डाले गए, यह षिवराज का बडा मास्टर स्ट्रोक था। गैस सिलेण्डर 450 रूपये में देने की बात कही गई, यह अलग बात है कि इसका फायदा सभी महिलाओं को नहीं मिला पर जिनको मिला उन्होंने भाजपा के पक्ष में जमकर मतदान किया। कांग्रेस अपनी योजनाओं को षिवराज की योजना से उपर इसलिये नहीं ले जा पाई कि महिलाओं को नकद फायदा मिलने लगा था और कांग्रेस का फायदा भविष्य में जीत के गर्भ में छुपा हुआ था। हाथ में आए पैसे ने कमाल कर दिया। समाजवादी पार्टी जिसका प्रभाव उत्तरप्रदेष से लगे कुछ जिलों में है, वहां गठजोड नहीं करके कमलनाथजी ने कौन अखिलेष वखिलेष बोलकर भी अपना नुकसान कर लिया। यही कारण है कि कांग्रेस की तुलना में भाजपा का मतदान प्रतिषत लगभग 9 प्रतिषत अधिक हुआ।
षिवराज चौहान ने मोदीजी द्वारा सभाओं में उनका व उनकी योजनाओं का नाम तक नहीं लिया, मगर षिवराज चौहान निरूत्साहित नहीं हुए, उन्होंने स्वयं भी लगभग 150 सभाएं कीं और हर सभा में लाडली बहनों को लुभाने का काम किया जिसमें वे सफल रहे। लाडली बहनों ने भाजपा को मध्यप्रदेष में भारी बहुमत से जीतवा दिया जिसकी कांग्रेस, पत्रकार, चुनाव विष्लेषक और स्वयं भाजपा को भी उम्मीद नहीं थी, क्योंकि यह वोट सडक पर कहीं नजर नही ंआ रहा था यह घरों से निकला और भाजपा के पक्ष में बटन दबाकर चला आया। मध्यप्रदेष में 31 में से 12 मंत्री हारे, जिनको लाडली बहना ने भी नकार दिया।
राजस्थान में अषोक गेहलोत और सचिन पायलेट व छत्तीसगढ में भूपेष बघेल व टीएस सिंहदेव की खिंचतान व विधायकों व मंत्रियों के प्रति नाराजगी भी प्रमुख कारण रही। राजस्थान में 25 में से 17 मंत्री व छत्तीसगढ में 11 में से 8 मंत्री चुनाव हारे। और भी कारण रहे उनके विस्तार में इस लेख में नहीं जाना चाहता।