अक्षय नवमी पर महिलाओं द्वारा आंवला के पेड़ की पूजा कर सुख समृद्धि की प्रार्थना की
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शामगढ़। महिलाओं द्वारा आंवला नवमी पर व्रत रखकर आंवला के पेड़ की पूजा की गई थाना परिसर श्री संकट मोचन हनुमान मंदिर परिसर में स्थित आंवला के पेड़ पर बड़ी संख्या में महिलाओं द्वारा आंवला के पेड़ की परिक्रमा कर पूजा की गई।पंडित दीपक पुरोहित द्वारा कथा का वाचन किया गया एवं पूजा सम्पन्न करवाई कथा का श्रवण सभी माता बहनों ने लिया व घर में सुख समृद्धि की प्रार्थना की।
धर्म शास्त्रों के अनुसार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा के साथ व्रत किया जाता है। इसे आंवला नवमी कहते हैं। ऐसा करने से पर मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता है।इसलिए इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं।धार्मिक मान्यता है कि आंवला नवमी स्वयं सिद्ध मुहूर्त भी है। इस दिन दान, जप व तप सभी अक्षय होकर मिलते हैं अर्थात इनका कभी क्षय नहीं होता हैं। भविष्य, स्कंद, पद्म और विष्णु पुराण के मुताबिक इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। पूजा के बाद इस पेड़ की छाया में बैठकर खाना खाया जाता है। ऐसा करने से हर तरह के पाप और बीमारियां दूर होती हैं। इस दिन किया गया तप, जप , दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है तथा सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है।
प्रचलित कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करने आईं। रास्ते में भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की उनकी इच्छा हुई। लक्ष्मी मां ने विचार किया कि एक साथ विष्णु और शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी और बेल के गुण एक साथ आंवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को। आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन कराया। इसके बाद स्वयं ने भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी थी तभी से यह परम्परा चली आ रही है।