कुमावत समाज के द्वारा आयोजित नो दिवसीय पशुपतिनाथ शिव महापुराण कथा की पूर्णाहुति
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संत श्री बालयोगी श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानदासजी महाराज उज्जैन व अन्य संतो ने आशीर्वचन दिये
मंदसौर। कुमावत समाज के द्वारा नरसिंहपुरा कुमावत धर्मशाला में 1 सितम्बर से आयोजित नो दिवसीय पशुपतिनाथ शिवपुराण कथा का समापन 09 सितम्बर को पूर्णाहुति के साथ हुआ। शिवपुराण के कथा वाचक पंडित मुरलीधर शास्त्री धारियाखेडी वाले के सानिध्य में संपन्न किया गया है जिसमें बड़ी संख्या में नगर की महिलाएं व पुरुष शामिल हुए। इस अवसर पर उज्जैन से पधारे संत श्री बालयोगी श्रीश्री 1008 महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानदासजी महाराज व तीन छत्री बालाजी मंदिर के संत श्री रामचरणदासजी ने शिव महारापुराण का पूजन कर भक्तों को आशीर्वचन दिये।
कथा वाचक पंडित ममुरलीधर शास्त्री ने अंतिम दिन की कथा सुनाते हुए भक्तों से कहा कि शिव के महात्मय से ओत-प्रोत यह पुराण शिव महापुराण के नाम से प्रसिद्ध है। भगवान शिव पापों का नाश करने वाले देव हैं तथा बड़े सरल स्वभाव के हैं। इनका एक नाम भोला भी है। अपने नाम के अनुसार ही बड़े भोले-भाले एवं शीघ्र ही प्रसन्न होकर भक्तों को मनवाँछित फल देने वाले हैं। कथावाचक पंडित शास्त्री ने श्रद्धालुओं से कहा कि धार्मिक आयोजनों में भावनाएं होनी जरूरी है। सगुण, साकार सूर्य, चंद्रमा, जल, पृथ्वी, वायु यह एक शिव पुराण का स्वरूप हैं। उन्होंने कहा कि अपने चारों ओर सदैव वातावरण शुद्ध रखें। जहां स्वच्छता और शांति होती है, वहां देवताओं का वास होता है। जल,वायु, पेड़ एक चेतन से लेकर जड़ चेतन में आकर एक-दूसरे के सहायक बनते हैं। जहां अधार्मिकता बढ़ जाती है और कर्म को भूल जाते हैं, वहां शिव और शक्ति दोनों नहीं होते। शिव की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि भगवान शिव ही मनुष्य को सांसारिक बन्धनों से मुक्त कर सकते हैं, शिव की भक्ति से सुख व समृद्धि प्राप्त की जा सकती है। कहा कि इस अलौकिक शिवपुराण की कथा सुनना अर्थात पाप से विमुक्त होना है। आयोजित शिव महापुराण में कथा को सुनने के लिए सैकड़ों की संख्या में भक्त पहंुचे। कथा सार सुनकर श्रोता झूम उठे। पूर्णाहुति के पूर्व शिवपुराण के कथा वाचक मुरलीधर शास्त्री ने शिव महापुराण कथा का सार बताया। उन्होंने कहा कि अपने अभिमान में चूर होकर दक्ष प्रजापति ने कनखल में यज्ञ किया। इसमें सभी देवों व ऋषि मुनियों को आमंत्रित कर उन्होंने भगवान शिव की उपेक्षा की। इसकी सूचना सती को अपनी सहेलियों से मिली, इसके बाद शिव के समझाने के बाद भी वे यज्ञ में पहुंच गई। वहां देखा कि भगवान शिव का अपमान हो रहा है। पूछने पर राजा दक्ष ने सती का भी अपमान किया। नाराज सती ने यज्ञ कुंड में ही अपना शरीर त्याग दिया। यह जानकारी जब शिव को हुई, तब वे रौद्र रूप में आ गए और उन्होंने अपने गणों की मदद से कनखल को तबाह कर दिया। कथा के इस प्रसंग को सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए।
इस नो दिवसीय आयोजन में कथा वाचक पंडित मुरलीधर शास्त्री, पंडित अंशुमान शर्मा धारियाखेडी, पं. आशिष शर्मा कुचडोद, राजु कुमावत, माणकलाल कुमावत, विनोद कुमावत, ओमप्रकाश कुमावत, रामचन्द्र कुमावत, गोवरधन कुमावत, राजु कुमावत रामटेकरी, गोपाल कुमावत, अंबालाल कुमावत आदि को उत्कृष्ट सेवा देने हेतु कुमावत समाज के अध्यक्ष राधेश्याम कुमावत, उपाध्यक्ष वर्दीचंद कुमावत व मंचासीन संतोगणों के हाथो से प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया है।
समापन के इस अवसर नपा अध्यक्ष रमादेवी गुर्जर, नपा उपाध्यक्ष नम्रता चावला, संतोष शर्मा, कांग्रेस पार्टी के जिलाध्यक्ष विपिन जैन, जिला पंचायत सदस्य दीपकसिंह चैहान, नपा पार्षद कमलेश सिसोदिया, दीपक गाजवा, राजेश सोनी ऐरा वाला, रेखा सोनी, सुनीता गुजरिया, जिला धार्मिक उत्सव समिति अध्यक्ष सुभाष गुप्ता, राजाराम तंवर, विनय दुबेला, विनोद मेहता, सिद्धार्थ सोनी, जीवन जोशी, कन्हैयालाल सोनगरा, अनिल कियावत, प्रदीप सोनी, दृष्टानंद नैनवानी, अनुप माहेश्वरी आदि ने कथा श्रवण कर आरती में भाग लिया।