रामकथा सुनने से अशांत चित्त भी हो जाता है शांत- साध्वी ऋतम्भरा
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श्री रामकथा का तीसरे दिन –
-रामायण की चौपाईयों से गूंजा पांडाल,
नीमच। सारी साधना का एक ही सार है। व्यक्ति स्वयं को जान जाए। प्रकृति ने इंसान को छोड़कर सभी को सहज बनाया है। काम , क्रोध और मोह-माया इंसान को सहज ही नहीं होने देती है। हम जो भी कर रहे हैं वह हमें थका रहा हैऔर हम थक रहे हैं तो समझले जीवन ठीक नहीं चल रहा है। रामकथा ऐसी कथा है, जिसके सुनने से अशांत चित्त भी शांत हो जाता है।
यह अमृतमयी विचार दीदी माँ साध्वी ऋतंभराजी ने स्व. कांतादेवी-प्रेमसुखजी गोयल व स्व. रोशनदेवी-मदनलालजी चौपड़ा की स्मृति में गोयल एवं चौपड़ा परिवार द्वारा वात्सल्य सेवा समिति, अग्रवाल गु्रप नीमच व मंडी व्यापारी संघ के तत्वावधान में दशहरा मैदान नीमच में आयोजित श्रीराम कथा के तीसरे दिन मंगलवार को व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जहां श्रद्धा और विश्वास होता हैवहां भगवान के प्रति श्रद्धा प्रगाढ़ हो जाती है। सबका मन जीत लेने की विधा ही समर्पण भाव है। आत्मीयता का सूत्र है समर्पण। दीदी माँ ने कहा कि जीव में सभी मोह-माया की ओर भागते हैंऔर मिलकियत छोड़ने की बात करते हैं, लेकिन जीवन में एक बात को ध्यान रखना चाहिए कि मिलकियत छोड़ने का कोई अर्थ नहीं। मिलकियत छोड़ोगे तो घर ही आश्रम बन जाएगा। उन्होंने कहा कि तुम जिसके बिना जी नहीं सकते, उसकी गलती को माफ क्यों नहीं करते। अगर गलती करने वाले को महसूस हो जाए कि उससे गलती हो गई हैतो क्षमा मांगने में कोई हर्ज नहीं। क्षमा मांगने और क्षमा करने पर अपनापन नजर आता हैऔर दोनों के बीच प्रीत की धार बहेगी। साध्वी दीदी माँ ने कहा कि रामकथा का श्रवण करने का अधिकारी वो होता है। उन्होंने कहा कि वो नशा है जो आप को बेहोश कर देता है और वो दवा है जो होश में लाए। ज्ञान का नशा ऐसा होता है, जो लक्ष्य तक पहुंचाता है। दीदी माँ ने कहा कि हमारा मन नारद की तरह है जो एक स्थान पर नहीं ठहरता हैऔर ठहर जाए वह मन शांत है।
दीदी माँ ने कहा कि पति-पत्नी का रिश्ता भरोसे का रिश्ता होता है, लेकिन जो अपने साथी पर भरोसा नहीं करता है। वह संसार का सबसे बड़ा दरिद्र है। चाहे उसके पास बहुत संपत्ति हो। उन्होंने घूंघट प्रथा को लेकर बताया कि आज की नारी चाहती है कि वह घूंघट से मुक्त हो जाए। यह अच्छी बात है, लेकिन कभी किसी ने यह जानने का प्रयास किया कि घूंघट प्रथा, बाल विवाह, जोहर क्यों शुरू हुए थे। इन प्रथाओं को शुरू करने का कारण दुश्मनों से महिलाओं को बचना था। अत्याचार काल के दौरान ये प्रथाएं शुरू हुई और आज धीरे-धीरे खत्म हो रही है। भारत देश की महिलाओं का सबसे बड़ा गौरव है, उसका माता बनना न की कामिनी बनना। इस अवसर पर श्री रामकथा में पूर्व मंत्री कैलाश चावला, उद्योगपति कैलाश धानुका, शशिकांत गोयल, कार्यक्रम संयोजक पवन पाटीदार, वात्सल्य सेवा समिति के अध्यक्ष संतोष चौपड़ा, महामंत्री अनिल गोयल, तहसील अध्यक्ष सत्यनारायण गोयल, धानुका, गोयल और चौपड़ा परिवार के सदस्यों समेत गणमान्य नागरिक और धर्मप्रेमी श्रद्धालु मौजूद थे।
रामलला के जयकारों से गूंजा पांडाल-
कथा में जैसे ही श्री राम के जन्म का प्रसंग आया पूरा पांडाल रामलला के जयकारों से गूंज उठा। वात्सल्य धाम अयोध्या नगरी बन गया और सभी रामलला का दुलार करने को आतुर नजर आए। पूरा माहौल रामलला का जन्मोत्सव मनाने में जुट गया। रामलला के जन्म के बाद राजा दशरथ बने चौपड़ा परिवार के संतोष चौपड़ा कौशल्या बनी अपनी पत्नी के साथ व्यासपीठ पर पहुंचे। जहां रामलला रूपी बालक को दीदी माँ ऋतम्भरा ने दुलार किया। राम जन्म के अवसर पर पूरा पांडाल श्री राम के भजनों से गूंजायमान हो गया।