नीमचमध्यप्रदेश

30 से अधिक कांग्रेस पदाधिकारियों ने स्थिफे सौंपे

नीमच

जावद विधानसभा में कांग्रेस पहले ही पिछले 22 वर्षों से सत्ता से बाहर है, लेकिन अब संगठनात्मक फैसलों ने पार्टी को भीतर से झकझोर कर रख दिया है। ब्लॉक अध्यक्षों की हालिया नियुक्तियों के विरोध में 30 से अधिक ब्लॉक, नगर और बूथ स्तर के पदाधिकारियों ने इस्तीफे सौंप दिए हैं, जिससे कांग्रेस में खुली बगावत की स्थिति बन गई है। यह विवाद अब केवल नियुक्तियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि स्थानीय कार्यकर्ता बनाम इंदौरी नेतृत्व की सीधी टकराहट में बदल चुका है।

नियुक्ति नहीं, थोपे गए नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह

कांग्रेस ने रतनगढ़ में शंभू चारण और सिंगोली में सत्तूलाल धाकड़ सहित जिले में 11 ब्लॉक अध्यक्ष नियुक्त किए। लेकिन रतनगढ़ और सिंगोली में इन नियुक्तियों का तीखा विरोध सामने आया। नगर अध्यक्ष, किसान कांग्रेस पदाधिकारी, बीएलए-2, बूथ प्रभारी जैसे संगठन की रीढ़ माने जाने वाले पदों से जुड़े नेताओं ने एक साथ त्याग-पत्र देकर साफ संदेश दे दिया कि ‘हमें नियुक्तियों से विरोध नहीं है, लेकिन जावद पर बाहर से नेतृत्व थोपना मंजूर नहीं।’

22 साल की हार, फिर भी आत्ममंथन नहीं

कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब कांग्रेस दो दशक से ज्यादा समय से जावद में चुनाव हारती आ रही है, तब जरूरत थी जमीनी संगठन को मजबूत करने की। लेकिन इसके उलट इंदौर से बैठकर फैसले लेने की राजनीति ने पुराने और संघर्षशील कार्यकर्ताओं को हाशिये पर धकेल दिया। यही वजह है कि आज पार्टी के भीतर असंतोष खुलकर सड़कों और सोशल मीडिया पर नजर आ रहा है।

समंदर पटेल बने आक्रोश का केंद्र

इस पूरे घटनाक्रम में विरोध कर रहे नेताओं के निशाने पर एक ही नाम है समंदर पटेल का। आरोप लगाए जा रहे हैं कि, जावद की राजनीति इंदौर से नियंत्रित की जा रही है। जिन लोगों पर विधानसभा चुनाव में भाजपा के लिए काम करने के आरोप लगे, उन्हें ब्लॉक अध्यक्ष बनाया गया। संगठन में निष्ठा और संघर्ष की जगह पैसा और सिफारिश को तरजीह दी जा रही है।

रतनगढ़ में जिस शंभू चारण को ब्लॉक अध्यक्ष बनाया गया, उस पर कांग्रेस के वोट तोड़ने और भाजपा विधायक के समर्थन में काम करने के आरोप लगे थे। विडंबना यह है कि कभी इसी व्यक्ति के खिलाफ समंदर पटेल ने प्रदेश कांग्रेस में शिकायत की थी, लेकिन आज वही उनकी सिफारिश से ब्लॉक अध्यक्ष बना-यही विरोधाभास कार्यकर्ताओं के गुस्से की सबसे बड़ी वजह बताया जा रहा है।

‘झंडा उठाने का मतलब गुलामी नहीं’

नाराज पदाधिकारियों का कहना है- ‘हमारे बाप-दादा आजादी के समय से कांग्रेस का झंडा उठा रहे हैं। इसका यह मतलब नहीं कि कोई बाहर से आकर जिसे चाहे थोप दे और हम चुपचाप माला पहनाते रहें।’

सामाजिक संतुलन पर भी सवाल

नियुक्तियों को लेकर यह आरोप भी लगे हैं कि संगठन में सामाजिक संतुलन पूरी तरह बिगाड़ दिया गया। कार्यकर्ताओं का कहना है कि पूरे जिले में एक भी मुस्लिम ब्लॉक अध्यक्ष नहीं, ब्राह्मण बहुल नीमच में एक भी ब्राह्मण को संगठन में स्थान नहीं, दलित और आदिवासी समाज की भी अनदेखी की गई। यह सवाल उठ रहा है कि क्या कांग्रेस अपने धर्मनिरपेक्ष और समावेशी चरित्र से पीछे हटती जा रही है?

वरिष्ठ नेता की दो टूक

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता सत्यनारायण पाटीदार ने स्पष्ट कहा, ‘हमें नियुक्तियों से विरोध नहीं है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के बल पर ही बनती है। संगठन सृजन की बात करने वालों को कार्यकर्ताओं की भावनाओं को समझना ही होगा।’

समंदर पटेल का जवाब

इस पूरे मामले में कांग्रेसी नेता समंदर पटेल से चर्चा करने पर उन्होंने सभी आरोपों को खारिज किया। समंदर पटेल ने कहा, ‘इस प्रकार की कोई बड़ी नाराजगी नहीं है। जिन लोगों को पद नहीं मिला, वही लोग इस्तीफा दे रहे हैं। संगठन में उत्साह है। राजनीति में पद सीमित होते हैं, लेकिन चाह सभी की होती है। इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।’

जिला नेतृत्व का दावा बनाम जमीनी सच्चाई
वहीं जिला कांग्रेस अध्यक्ष तरुण बाहेती भी इसे ‘मामूली नाराजगी’ बता रहे हैं और बैठक के जरिए समाधान की बात कर रहे हैं। हालांकि 30 पदाधिकारियों के इस्तीफे जिला नेतृत्व के इन दावों पर सवाल खड़े कर रहे हैं और जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयान कर रही है।

साफ राजनीतिक संकेत

जावद में कांग्रेस की यह लड़ाई अब सिर्फ पदों की नहीं रही। यह स्थानीय कार्यकर्ता बनाम इंदौरी नेतृत्व, संघर्ष बनाम सिफारिश और संगठन बनाम मनमानी की लड़ाई बन चुकी है। अगर शीर्ष नेतृत्व ने समय रहते इस आक्रोश को गंभीरता से नहीं लिया, तो जावद में कांग्रेस के सामने सवाल यह नहीं रहेगा कि चुनाव कैसे जीते जाएं, बल्कि यह होगा, क्या कांग्रेस यहां संगठन के रूप में बच भी पाएगी?

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