ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा कि 60 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें पुष्पाजलि अर्पित की

ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की प्रथम मुख्य प्रशासिका मातेश्वरी जगदम्बा कि 60 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें पुष्पाजलि अर्पित की
सीतामऊ। प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय प्रभु उपहार भवन सीतामऊ में ब्रह्मा कुमारी की प्रथम मुख्य प्रशशिका मातेश्वरी जगदम्बा मम्मा, कि 60वीं पुण्यतिथि पर उन्हें पुष्पाजलि अर्पित कर मनाईं गई।इस अवसर पर ब्रह्मा कुमारी कृष्णा दीदी ने अपने उद्बोधन में कहा गया जैसे प्रजापिता ब्रह्मा है ऐसे ही प्रजा माता है मम्मा, जगदम्बा है बहुत छोटी सी आयु में ही सब मम्मा कहने लगे, छोटी सी आयु में जब स्कूल जाते हैं उस समय प्रकाशमणि दादी के साथ ही शिक्षा ग्रहण कि, जब राधा स्कूल से प्रकाश मणी दादी के आश्रम पहुंची जहां जहां बाबा योग साधना कर रहे हैं थें ॐ कि ध्वनि सुनाई दी। ओम् कि ध्वनि में राधा मुग्ध हो गई और कृष्ण के दर्शन हुए। और बालिका राधा मम्मा आध्यात्म कि ओर बढ़ने लगी। कृष्णा दीदी ने आगे कहा कि बाबा ने राधा को मुरली सुनाने के लिए प्रदान की राधा ने आश्रम में सबको मुरली भाव विभोर होकर सुनाने लगी। इतनी भाव विभोर हो गई तो सबको राधा का देवी स्वरूप में दिखने लगी। जब राधा कि जन्मदाता मां आश्रम पर आई तो उनकी मां ने मुरली आध्यात्म सुना तो उनकी मां ने भी बेटी को मां कह कर पुकारा तो वहां से राधा मम्मा जगदम्बा हो गई।
एक बार शिव बाबा को भोग लगाना और भोजन सामान उपलब्ध नहीं था तो सब विचार में पड़ गए कि बाबा को भोग कैसे लगाएं पर बाबा कि कृपा से सब व्यवस्था हो गई। मम्मा जगदम्बा को बिमार हूई तो मधुबन से बाम्बे हास्पिटल ले गए वहां डाक्टरों ने जांच कर कैंसर बताया। मम्मा को उनकी बिमारी के बारे में बताया तो मम्मा ने मधुबन माउंट आबू ले जाने को कहा। मम्मा को माउंट आबू लाया गया जहां 45 वर्ष कि आयु में सभी को अंगुर खिलाए तथा अपना भौतिक देह त्याग कर संपूर्णता को प्राप्त किया
कृष्णा दीदी ने कहा कि सभी माताएं बहनें अपने परिवार बढ़े कि बात मानें भगवान पर भरोसा रखना चाहिए और जो बिटिया पढ़ रही वें मम्मा कि तरह पढ़ाई एकाग्र होकर पढ़ाई कर अपने माता-पिता कि आज्ञा का पालन करना चाहिए।
बहिन प्रिती दीदी मम्मा कि आज 60वीं पुण्यतिथि है। मात्र 13 वर्ष कि आयु में ही ममा यज्ञ में आयें थे मम्मा हाजी के पाठ में पक्की थें । एक बिमार कन्या को बाबा ने मम्मा को खाना खिलाने को कहा मम्मा ने कन्या को खाना खिलाया और कन्या ठीक हो गई।पर बाबा ने नहीं कहा तब तक कन्या को खाना खिलाया।ऐसी हाजी पाठ कि पक्की रही मम्मा।
इस अवसर पर दशरथ पाटीदार, गौरव जैन, मोहनलाल भोई, बहिन उर्मिला गौड़ लदुना, श्रीमती गुणवती कोठारी, लक्ष्मीनारायण मांदलिया आदि ने भी संबोधित किया।
उल्लेखनीय है कि जगदम्बा सरस्वती ने 24 जून 1965 को अपना भौतिक शरीर छोड़ा था। 46 वर्ष की अल्प आयु में अपना जीवन संस्थान के संस्थापक प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के साथ जन कल्याण व विश्व नव निर्माण की सेवा में समर्पित कर दिया। हजारों भाई-बहनों को ईश्वरीय सेवा में लगाया। जिसके फलस्वरूप आज संस्थान के हजारों सेवा केंद्र मानव के कल्याण एवं जीवन में चरित्र निर्माण का काम कर रहे हैं। प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने हमें जो शांति का मार्ग दिखाया उस पर हमें चलने का प्रयास करना चाहिए। बाबा ने हमेशा कहा है कि वह हमेशा अपने मन, वचन व कर्म को पवित्र रखें व लोग अपने गृहस्थ जीवन को सादगी से बिताएं। बाबा कहते थे जैसा काम करोगे वैसा ही आप को मिलेगा।मम्मा का लौकिक जन्म 1920 में एक मध्यम वर्गी परिवार में माता रोचा व पिता पोकरदास के घर, अमृतसर, पंजाब में हुआ था।
इस अवसर पर दिनेश सेठिया रामेश्वर पाटीदार, नरेंद्र जैन सहित मातृशक्ति पुरुष उपस्थित रहें।