आलेख/ विचारनागदामध्यप्रदेश

नागदा जिला.. ना नौ मन तेल होगा ना राधा नाचेगी

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0 सत्ता के सूरमाओं को सच का आइना. 0 कांग्रेस नींद में भर रही खर्राटे

      त्वरित टिप्पणी ✍️

कैलाश सनोलिया

नागदा। बड़े -बड़े राजनेताओं के इस शहर के वाशिंदों को नागदा को जिला बनाने का सपना पूरा नहीं हुआ, लेकिन रीवा जिले के एक शहर मऊगंज के लोगों को यह मुराद पूरी होने जा रही है। इस बारे में प्रशासन की सारी तैयारियां लगभग पूरी हो चुकी है। संभावन हैकि 4 मार्च को सीएम शिवराज एक कार्यक्रम में मऊगंज को जिला बनाने की घोषणा कर दें। लेकिन विडंबना हैकि नागदा शहर को जिला बनाने की मांग वर्ष 2008 से चली आ रही है। इस मामले में बाहर से जो तथ्य उभर कर सामने आए है, उसके तहत तो बाहरी रूप से तो आंडम्बर चल रहा है लेकिन अंतारिंक रूप से सताधारियों की इच्छाशक्ति नहीं है। मतलब ना नो मन तेल होगा ना राधा नाचेगी। उधर ,कांग्रेेस इस मसले को लेकर किसी समय तो आक्रामक शेली में नजर आई और कमलनाथ सरकार में मंत्रिमंडल में प्रस्ताव को पारित भी कर दिया। लेकिन अब कांग्रेस इस मामले पर गहरी नींद में खर्राटे भर रही है। उसको इस मसले पर बार- बार झंझोडा जा रहा है ,लेकिन नींद नहीं टूट रही है। यह बात गौर करने लायक हैकि कमलनाथ की 15 महीनों की सरकार की इच्छा शक्ति के आगे यह मंत्रिमंडल से इस प्रस्ताव की मंजूरी हो गई। लेकिन बीच में सरकार गिर गई। मामला पैड से गिरा खजूर पर अटका कहावत को चरितार्थ कर गया। लेकिन अब शिवराज सरकार के स्थानीय सुरमा क्यों खामोश.

मजेदार बात यह हैकि हाल में एक सूचना अधिकार में यह बात सामने आई कि भाजपा सरकार के चार मंत्रियों की एक कमेटी ने इस प्रस्ताव को आगे बढाने के बजाय लटकाने की नीयत से पुन परीक्षण की बात कर दी। लेकिन प्रशासन के अधिकारी समझदार थे उन्होंने ऐसा इसलिए नहीं होने दिया कि उनके लिए इस प्रकार की कार्यवाही गले की फांस नहीं बन जाए. इसलिए शिवराज सरकार का पुनः परीक्षण का प्रस्ताव निरस्त कर दिया।सरकार ने पुनः परीक्षण की बात आखिर क्यों रखी इस बात का जवाब अब जनता को स्थानीय सत्ता के सुरमाओं से पूछना होगा।

मतलब कमलनाथ सरकार का जिला बनाने का निर्णय अभी जिंदा है मतलब अस्तित्व में। मात्र अधिसूचना जारी करना शेष है। इस बात के लिए स्थानीय सत्ता के सूरमा चूप है। स्थानीय कांग्रेस भी नींद में है। सता के एक सूरमा की वह घोषणा 53 हजार पोस्टकार्ड लिखने की बात नौटकी साबित हो गई। फिर इस प्रकार की घोषणा तो विपक्ष करता है। सत्ता के लोग सीधे कोई बात को मंजूर करवाने की कुबत रखते है।

दोनों के अंतर को समझे-

मऊगंज जो जिला बनने जा रहा हैकि उसके आगे तो नागदा हर मापदंड में आगे हैै। मऊगंज के प्रस्तावित जिले में तीन तहसीलों को शामिल किया जा रहा है। इधर प्रस्तावित जिले में चार तहसीले शामिल है। इस समाचार में प्रकाशित प्रस्तावित मऊगंज की तस्वीर से अधिक कहीं नागदा की तस्वीर उभरी हुई है। लेकिन शायद यह बात यहां चरितार्थ साबित हो रही हैकि ग्रेसिम उद्योग की मंशा के आगे सारे सुरमा नतमस्तक है।

प्रस्तावित नागदा जिले की तस्वीर-

इस पोस्ट के साथ संलग्न मऊगंज से जुड़ी खबर की तस्वीरे से तुलना करें नागदा कमजोर नहीं है। कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में नागदा को जिला बनाने का परीक्षण प्रस्ताव कलेक्टर उज्जैन ने वर्ष 2019 में भेजा उसमें प्रस्तावित जिले में कुल 561 गांवों को तथा 301 ग्राम पंचायतों को शामिल किया गया। इस नवीन जिले में नागदा क्षेत्र के 114 गांव, खाचरौद के 110, महिदपुर के 114, झारडा 113 एवं रतलाम जिले की आलोट तहसील के 110 गांव शामिल करने का प्रस्ताव बनाया। उन्हेल कस्बे के 28 गांवों को भी शामिल किया गया। नवीन जिले की जनसंख्या का आंकलन किया गया तो यह बात सामने आई कि प्रस्तावित नागदा जिले में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार आबादी 9 लाख 77 हजार 201 आंकी गई। यह आबादी 12 बरस पुरानी है अब तो ओर बढोतरी हो गई। कमलनाथ सरकार के मंत्रिमंडल ने 18 मार्च 2020 को नागदा को जिला बनाने का प्रस्ताव पारित कर दिया। लेकिन अधिसूचना जारी होने के पहले सरकार गिर गई।

भुगतना पड़ सकता खामियाजा-

विधानसभा चुनाव में महज आठ माह शेष है। डेढ माह पहले आचार संहिता लग जाएगी। ऐसी स्थिति में महज 6 माह का समय इस मुराद के लिए शेष है। अभी तक के तथ्यों से यह साबित हो गया हैकि अब सताधारियों के पाले में गैंद है। यदि जिला नहीं बना तो जनता में यह संदेश तो जाएगा पार्षद से लेकर राष्ट्रपति भवन तक सब कुछ इनका होने के बाद भी जिला का ओहदा क्यों नसीब नहीं हुआ। जबकि वर्ष 2013 का चुनाव भाजपा उम्मीदवार ने इसी मसले का आश्वासन देकर लड़ा था और जीत हासिल हुई , प्रदेश में सरकार भी बनी लेकिन आश्वासन जनता को धोखा दे गया। जब अब कमलनाथ सरकार का प्रस्ताव जिंदा है, आगे की कार्यवाही पर स्थानीय सत्ता के सूरमाओं क्यों खामोश है। जनता को कांग्रेस से भी सवाल पूछना होगा अब आंदोलन की राह क्यों नहीं। मतलब जाहिर सत्ता धारियों की इच्छा शक्ति नहीं है । या फिर सरकार में बोलने की ताकत भी नहीं .ये बड़ा सुलगता सवाल है। जनाब इस शहर में तो उद्योग के इशारे पर ही तो कार्य होता है और सारे राजनेता मस्तक झुका कर खड़े रहते है। चाहेे कांग्रेस हो या भाजपा। फिर जनता को कैसे मिले इंसाफ-

कैलाश सनोलिया

राज्य स्तरीय अधिमान्य पत्रकार मप्र शासन

 संवाददाता हिंदुस्थान समाचार एजेंसी

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