तुलसीदास जी मात्र 6 वर्ष की आयु में अयोध्या में अपने गुरु के पास शिक्षा प्राप्त करने चले गए थे

तुलसी जयंती-
तुलसीदास जी मात्र 6 वर्ष की आयु में अयोध्या में अपने गुरु के पास शिक्षा प्राप्त करने चले गए थे
-रमेशचन्द्र चन्द्रे
शिक्षाविद् समाजसेवी मंदसौर
गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म सम्वत 1557 में श्रावण मास में शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में हुआ।इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले बालक का पिता बालक का मुंह नहीं देखता। ऐसा कहा जाता है कि इसमें बालक का चेहरा देखने से परिवार में अनिष्ट की संभावनाएं बनती है।उस कल में ज्योतिषियों द्वारा तुलसीदास जी के पिता को कुछ ज्यादा ही भ्रमित कर दिया गया, इस कारण केवल 6 वर्ष की आयु में ही तुलसीदास जी को घर से बाहर निकाल दिया, इस उम्र में तुलसीदास को जिन्हें उस समय भोला कहा जाता था, इतना ज्ञान था कि, एक वयस्क को जितना होना चाहिए इसलिए उनके बारे में गांव में यह चर्चा होती थी कि, इस उम्र में इसे इतना ज्ञान प्राप्त है जैसे किसी 32 दांत वाले मनुष्य को होता है।घर से निकाल देने के बाद तुलसीदास सीधे अयोध्या की ओर चल पड़े जहां वह एक आश्रम में रहे और वहां उन्होंने अपने गुरु से शिक्षा प्राप्त करने के बाद वाराणसी की ओर प्रस्थान किया।गोस्वामी तुलसीदास जी के लिए आमतौर पर यह प्रचारित किया गया है कि वह पत्नी के प्रेम में इतने आसक्त हो गए थे कि भर बारिश में नदी में बहते हुए मुर्दे को नाव समझ बैठे और सांप को रस्सी समझ उसे पकड़ कर ससुराल के भवन में पहुंच गए।उक्त बात कोरी बकवास के सिवा कुछ नहीं है क्योंकि तुलसीदास जी इतने विद्वान व्यक्ति थे कि वे मात्र 6 वर्ष की आयु में अयोध्या में अपने गुरु के पास रहकर और उसके बाद लगातार 29 वर्ष की आयु तक बनारस में उन्होंने वेद और पुराणों का अध्ययन करते हुए संस्कृत, हिंदी तथा कुछ कुछ उर्दू भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया क्योंकि उस समय सामान्य बोलचाल में उर्दू का प्रयोग भी होता था।29 वर्ष की आयु में तुलसीदास जी का विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ अधिक उम्र में विवाह होने के कारण पत्नी के प्रति आकर्षण स्वाभाविक था वर्षा काल का समय था और तुलसीदास जी की पत्नी मायके में थी। उसकी अधिक याद आने के कारण वह भर बारिश में ससुराल की और चल दिए तथा उन्होंने तैरकर नदी पार की एवं पिछले रास्ते से वट वृक्ष की जड़ को पकड़कर रत्नावली के कक्ष में पहुंच गए किंतु रत्नावली को इस ढंग से उनका आना अच्छा नहीं लगा उसने बहुत समझाया किंतु तुलसीदास जी अपनी पत्नी को अपने साथ चलने के लिए राज़ी करते रहे पर वह नहीं मानी और उसने तुलसीदास जी को कहा कि
जितना प्रेम मेरे हाड़ मांस के पिंजर शरीर से कर रहे हो उतना ही प्रेम कभी आप प्रभु श्रीराम से करते तो तुम्हारा यह जीवन बहुत सफल हो जाता ,पत्नी का उक्त कथन सुनकर तुलसीदास जी को आत्मज्ञान की प्राप्ति हो गई क्योंकि वह बहुत ज्ञानी तथा विद्वान तो थे ही इसलिए पत्नी की बात उनके हृदय में उतर गई और वह तुरंत अपने पिता के गांव की ओर चल पड़े वहां जाने पर उन्हें पता लगा कि उनके पिता जी नहीं रहे तो उनका श्राद्ध और पिंडदान करके वह वापस काशी चल गए एवं वहां कई वर्षों तक उन्होंने अध्ययन किया उसके बाद प्रभु श्री राम की कृपा से अयोध्या में श्री रामचरितमानस की रचना की इसके साथ ही अनेक ग्रंथ उनके द्वारा लिखे गए उसे काल में भी उनकी सफलता से अन्य विद्वानों को ईर्षा होने लगी और वाल्मीकि रामायण की तुलना में तुलसी रामायण को स्वीकार नहीं करना इस प्रकार का अभियान चलाया गया किंतु अंततः वे सब हार गए और जनसाधारण में रामचरितमानस लोकप्रिय हो गई।आज गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्मदिवस पर श्रद्धा सुमन समर्पित करते हैं।