मंदसौरमंदसौर जिला
अ.भा. साहित्य परिषद की बसंत काव्य गोष्ठी में साहित्यकारों ने की सरस्वती आराधना
‘‘हे वीणापाणि, कमलआसना, शब्द मेरे संवार दे करता हूं वंदना मॉ मुझे प्यार दे- राठौर
मन्दसौर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद की बसंत काव्य गोष्ठी पूर्व प्राचार्य शा.क.महाविद्यालय मंदसौर बी.एल. नलवाया के मुख्य आतिथ्य, वरिष्ठ पत्रकार डॉ. घनश्याम बटवाल की अध्यक्षता, जनभागीदारी समिति शा. लता मंगेशकर संगीत महाविद्यालय अध्यक्ष नरेन्द्र त्रिवेदी, एवं वरिष्ठ भजन गायक नरेन्द्रसिंह राणावत, दशपुर गौरव गायन गायक एवं गीतकार नंदकिशोर राठौर, डॉ. दिनेश तिवारी, समाजसेवी प्रकाश कल्याणी, राजेन्द्र तिवारी, अजय डांगी, श्रीमती चंदा डांगी, हरिश दवे, विजय अग्निहोत्री, राहुल राठौर, ईश्वर डांगी, स्वाति रिछावरा, अजीजुल्लाह खान के सानिध्य में सम्पन्न हुई।
इस अवसर पर श्री नलवाया ने बसंत के आगम पर प्रकृति के प्रफुल्लित होने की बात कहते हुए नर्मदा जयंती की जानकारी प्रदान की। श्री बटवाल ने बसंत को ऋतुओं का राजा निरूपित करते हुए महाकवि निराला एवं सरस्वती प्राकट्टय की बात कहते हुए बसंत में प्रकृति के निखार का चित्रण किया ‘‘प्रकृति है मॉ का आंचल कभी धू कभी छॉव बन जाती, कभी पहाड़ कभी ढाल कभी आसमां बन जाती’’। नन्दकिशोर राठौर ने बसंत पंचमी पर सरस्वती को मॉ के स्वरूप में मानकर वंदना की ‘‘हे वीणापाणि, कमलआसना, शब्द मेरे संवाद दे, करता हॅू वंदना, माँ मुझे प्यार दें’’।
हरिश दवे ने ‘‘बाग बगीचों में जब फूल खिले तो बसंत है, फूलों सी मुस्कान चेहरे पर आए तो बसंत है’’ सुनाई। विजय अग्निहोत्री ने ‘‘तेरे आंचल में चमके कभी चंदा, कभी तारे, तुझे पाने के लिये हम कभी जीते कभी हारे’’ सुनाया। अजय डांगी ने ‘‘सभ्यता में शिलालेख साहित्यकारों की कलम से लिखे जाते’’ कविता सुनाई। चंदा डांगी ने ‘‘वीणा वादिनी आई धरा पर, बसंती बयान चली धरा पर’’, राजेन्द्र तिवारी ने ‘‘आय बसंत देखो फूल रही फूलवारी यहां वहां सब जगह चहक रही हरियाली’’, दीपिका मावर ने ‘‘आ गया बसंत झूमों गाओं, बड़ा पर्व है, खुशियां मनाओ’’, डॉ. दिनेश तिवारी ने ‘‘ब्रह्मा के कमण्डल से निकला जल, मॉ भगवति प्रकट हुइ्र उस पल’’ सुनाई, प्रकाश कल्याणी ने ‘‘ने रजो, तमो एवं सतो गुणो की’’ जानकारी दी।
नरेन्द्र राणावत ने बसंत में प्रिय का विरहगीत ‘‘केसूड़ा राती कोरा पल पल सतावे रे’’ सुनाया।नरेन्द्र त्रिवेदी ने ‘‘मन दे दिया ना समझी, कैसे मन बसिया से बात कहू’’, स्वाति रिछावरा ने ‘‘आई बसंती बहार, लेके खुशिया हजार’’ गीत सुनाया। राहुल राठौर ने ‘‘बसंत का मौसम आया पत्ते सब हरे हो’’ कविता सुनाई।
कार्यक्रम का शुभारंभ मॉ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण, दीप प्रज्जवलन एवं ईश्वर डांगी के मधुर सरस्वति वंदना ‘‘मॉ करो कृपा, हंस वाहिनी ज्ञान दायिनी’’ से हुआ। संचालन राजेन्द्र तिवारी ने किया व आभार नंदकिशोर राठौर ने माना।
इस अवसर पर श्री नलवाया ने बसंत के आगम पर प्रकृति के प्रफुल्लित होने की बात कहते हुए नर्मदा जयंती की जानकारी प्रदान की। श्री बटवाल ने बसंत को ऋतुओं का राजा निरूपित करते हुए महाकवि निराला एवं सरस्वती प्राकट्टय की बात कहते हुए बसंत में प्रकृति के निखार का चित्रण किया ‘‘प्रकृति है मॉ का आंचल कभी धू कभी छॉव बन जाती, कभी पहाड़ कभी ढाल कभी आसमां बन जाती’’। नन्दकिशोर राठौर ने बसंत पंचमी पर सरस्वती को मॉ के स्वरूप में मानकर वंदना की ‘‘हे वीणापाणि, कमलआसना, शब्द मेरे संवाद दे, करता हॅू वंदना, माँ मुझे प्यार दें’’।
हरिश दवे ने ‘‘बाग बगीचों में जब फूल खिले तो बसंत है, फूलों सी मुस्कान चेहरे पर आए तो बसंत है’’ सुनाई। विजय अग्निहोत्री ने ‘‘तेरे आंचल में चमके कभी चंदा, कभी तारे, तुझे पाने के लिये हम कभी जीते कभी हारे’’ सुनाया। अजय डांगी ने ‘‘सभ्यता में शिलालेख साहित्यकारों की कलम से लिखे जाते’’ कविता सुनाई। चंदा डांगी ने ‘‘वीणा वादिनी आई धरा पर, बसंती बयान चली धरा पर’’, राजेन्द्र तिवारी ने ‘‘आय बसंत देखो फूल रही फूलवारी यहां वहां सब जगह चहक रही हरियाली’’, दीपिका मावर ने ‘‘आ गया बसंत झूमों गाओं, बड़ा पर्व है, खुशियां मनाओ’’, डॉ. दिनेश तिवारी ने ‘‘ब्रह्मा के कमण्डल से निकला जल, मॉ भगवति प्रकट हुइ्र उस पल’’ सुनाई, प्रकाश कल्याणी ने ‘‘ने रजो, तमो एवं सतो गुणो की’’ जानकारी दी।
नरेन्द्र राणावत ने बसंत में प्रिय का विरहगीत ‘‘केसूड़ा राती कोरा पल पल सतावे रे’’ सुनाया।नरेन्द्र त्रिवेदी ने ‘‘मन दे दिया ना समझी, कैसे मन बसिया से बात कहू’’, स्वाति रिछावरा ने ‘‘आई बसंती बहार, लेके खुशिया हजार’’ गीत सुनाया। राहुल राठौर ने ‘‘बसंत का मौसम आया पत्ते सब हरे हो’’ कविता सुनाई।
कार्यक्रम का शुभारंभ मॉ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण, दीप प्रज्जवलन एवं ईश्वर डांगी के मधुर सरस्वति वंदना ‘‘मॉ करो कृपा, हंस वाहिनी ज्ञान दायिनी’’ से हुआ। संचालन राजेन्द्र तिवारी ने किया व आभार नंदकिशोर राठौर ने माना।