रिछा लालमुहां उपस्वास्थ्य केंद्र में लगा रहता है ताला, निजी अस्पतालों के भरोसे है स्वास्थ्य सेवाएं
डॉक्टर और नर्स की स्थाई नियुक्ति नहीं होने से केंद्र बदहाल, वहीं सुविधा के बाद भी लाभ नहीं मरीज परेशान
विशाल दुबे उज्जैन/मंदसौर
देश की मोदी सरकार गरीबों के उत्थान और समुचित स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए तमाम योजनाएं संचालित कर रही है, ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने के लिए केंद्र सहित राज्य सरकार भी मुस्तेदी से काम कर रही है। लेकिन गांवों में स्थिति इसके ठीक उलट है।
मामला संभाग के मंदसौर जिले का है जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर रिछा लालमुहां में करीब 10 वर्ष पूर्व ग्रामीणों ने जनभागीदारी से जन सहयोग से तेरह लाख साठ हजार रुपए की राशि जुटा कर पुरानी और जर्जर सरकारी बिल्डिंग का नव निर्माण कर उपस्वास्थ्य केन्द्र बनाया गया था जिसको आसपास के मरीजों को ग्रामीण स्तर पर स्वास्थ्य सुविधाओं को दृष्टिगत रखते हुवे केंद्र में अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं से लैस बनाया गया था। वातानुकूलित भी था जिसका निर्माण तात्कालीन जिला कलेक्टर जी के सारस्वत के कार्यकाल में हुआ बताया जा रहा है। जिसमें गरीबों जरूरतमंद मरीजों का का मुफ्त में इलाज किया जाना था, लेकिन निर्माण के 10 वर्ष बाद भी हालात इसके विपरीत है केंद्र के निर्माण के एक वर्ष तक सब कुछ चलता रहा लेकिन उसके बाद केंद्र में डॉक्टर और नर्स की स्थाई नियुक्ति नहीं होने से केंद्र बदहाल हालत में पड़ा है आस पास बड़ी बड़ी घांस उग गई है मेन गेट के सामने फर्श भी उखड़ चुकी है लेकिन मजाल है कोई जिम्मेदार इस पर ध्यान दे ग्रामीणों ने बताया कि उपस्वास्थ्य केन्द्र पर आए दिन ताले लगे मिलते है जब भी इलाज के लिए जाए भटक कर ही आना पड़ता है कारण यह कि केंद्र पर ना तो डॉक्टर की नियुक्ति नहीं है नही स्थाई तौर पर नर्स है ग्रामीणों का कहना है कि वर्तमान में एक एनएम आशा पाटीदार सप्ताह में एक बार यहां बैठती है, एनएम के अंडर में 12 और भी गांव आते है ऐसे में ज्यादातर दिनों में केंद्र पर ताले ही मिलते है ग्रामीणों द्वारा केंद्र पर एक एमबीबीएस डॉक्टर और दो एएनएम को नियुक्त करने हेतु जिला स्तर से राज्य स्तर पर लिखा गया है लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की है यदि इस केंद्र को सुचारू रूप से संचालित किया जाए तो गांव रिछा लालमुहां सहित आसपास के गांव लालाखेड़ा, सेमलिया हीरा, पाड़लिया लालमुहा, मजेसरी, मजेसरा कुल सात गांव के लगभग 15 हजार के मरीजों को भी समुचित इलाज संभव होगा फिलहाल यहां सात गांवो पर एक नर्स और एक आशा कार्यकर्ता है उनके भरोसे ही सात गांवो के ग्रामीणों का जीवन है बताया जा रहा है प्रशासनिक अधिकारियों के ढीले रवेये और जनप्रतिनिधियों की उदासीनता बहुत बड़ा कारण है जिसके चलते यहां स्टाफ की नियुक्ति नहीं हुई है और आए दिन क्षेत्र के मरीजों को परेशान होकर इधर-उधर भटकना पड़ रहा है, ग्रामीणों को 13 लाख साठ हजार की जनभागीदारी के बावजूद निजी अस्पतालों में इलाज करवाना पड़ रहा है जहां एक तरफ देश की मोदी सरकार और प्रदेश की मोहन सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर प्रमुखता से काम कर रही है वहीं जमीनी स्तर पर जिम्मेदार लापरवाह नजर आ रहे है, सहित खंड विकास अधिकारी सहित मुख्य चिकित्सा अधिकारी की अनदेखी का खामियाजा बेबस मरीजों को भुगतना पड़ रहा है निजी अस्पतालों में महंगा इलाज करवाना उनकी जेबों पर भारी पड़ रहा है। जिला मुख्यालय से इसकी दूरी 40 किलोमीटर होकर प्रसव जैसे मामलों में ग्रामीण जिला मुख्यालय में जाना पड़ता है कईं बार गंभीर घटनाएं भी हो चुकी है।
इस मामले में लोकदेश रिपोर्टर ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी मंदसौर गोविंद चौहान से जानकारी लेनी चाही तो फोन रिसीव नहीं किया।
संयुक्त संचालक स्वास्थ्य सेवाएं उज्जैन संभाग डॉ दीपक पीपल ने कहा कि आपके द्वारा मामला संज्ञान में आया है मुख्य चिकित्सा अधिकारी मंदसौर से जानकारी लेकर उचित प्रयास किया जाएगा।