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जीवन में बैर मत करो, रात्रि भोजन करने से बचो- योग रूचि विजयजी

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मन्दसौर। संसार में प्राणियों की चार गति मानी गई है। नरक गति, तिरयन्च गति, देवगति व मनुष्य गति। आगामी भव में हमें कैसी गति मिलेगी यह हमारा कर्म पर निर्भर करती है। यदि हम पापकर्म करेंगे तो हमें नरक व तिरयन्च गति मिलना तय है लेकिन हम अच्छ कर्म जैसे दान पुण्य, तप तपस्या, धर्म आराधना करेंगे तो हमें पुनः मनुष्य या देवगति मिल सकती है यह हमें तय करना है कि हम कौनसी गति में जाना है।
उक्त उद्गार प.पू. जैन संत श्री योगरूचि विजयजी म.सा. ने मंगलवार को नईआबादी आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में कहे। आपने धर्मसभा में कहा कि नरक गति में प्राणियो को कई प्रकार की वेदना सहन करनी पड़ती है। भीषण गर्मी व भीषण ठण्डी सहन करना पड़ती है। इसलिये जीवन में नरक गति में नहीं आना पड़े ऐसा सद्कर्म करो।
 जीवन मंे बैर कभी मत रखो- संतश्री ने कहा कि बैर की भावना के कारण हमारे कई भव बिगड़ सकते है। बैर भावना के कारण ही कमठ को नरक गति मिली। जीवन में जो भी बैर भावना रखते है उनकी गति बिगड़ जाती है।
पापकर्म मत करो- संतश्री ने कहा कि नरक व तिरयन्च गति में जाने से बचना है तो सर्वप्रथम पापकर्म करना बंद करो अर्थात सभी बुरे कार्य जैसे जीव हिंसा, चोरी करना, पर स्त्रीगमन आदि जो भी बुरे कर्म है उन्हें छोड़ दो। यदि पापकर्म करना बंद कर दोगे तो आपकी गति अर्थात अगला भव स्वतः ही सुधर जायेगा।
रात्रि भोजन छोड़ों– जैन धर्म ही नहीं बल्कि वैदिक व बौद्ध सात्यि में भी रात्रि भोजन के दुष्परिणाम बताये गये है। कई ग्रंथों में तो रात्रि भोजन को नरक का द्वार भी कहा गया है। हमें रात्रि में भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिये अर्थात सूर्यास्त के पूर्व ही भोजन करना चाहिये। वैदिक साहित्य में तीन चीजे रात्रि में निषेध बताई गई है। रात्रि भोजन, देव पूजा व स्नान अर्थात मनुष्य को ये तीनों नहीं करना चाहिये। जैन धर्म व दर्शन का जो मत रात्रि भोजन को लेकर है वही मत वैदिक व बौद्ध साहित्य में भी मिलता है। इसका सीधा अर्थ है भारत के जितने भी प्राचीन धर्म है वे सभी रात्रि भोजन को निषेध मानते है। धर्मसभा का संचालन दिलीप रांका ने किया।

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