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लोकसभा स्पीकर पद के लिए ओम बिरला के सामने कांग्रेस सांसद के सुरेश को उम्मीदवार

 

नई दिल्ली: 18वीं लोकसभा के स्पीकर (Lok Sabha Speaker) को लेकर सत्तापक्ष NDA और विपक्ष INDIA के बीच टकराव बढ़ गया है. स्पीकर के चयन को लेकर सरकार और विपक्ष के बीच आम सहमति नहीं बन पाई. लिहाजा अब स्पीकर का चयन चुनाव के जरिए होना है. 48 साल के बाद ऐसा होने जा रहा है. चुनाव बुधवार को है. NDA की तरफ से ओम बिरला दूसरी बार स्पीकर पद के लिए दावेदारी कर रहे हैं. INDIA की ओर से कांग्रेस ने के. सुरेश को उम्मीदवार बनाया है. हालांकि, TMC का आरोप है कि कांग्रेस ने फैसला लेते वक्त उनसे सलाह-मशवरा नहीं किया.

लोकसभा स्पीकर को लेकर राजनीतिक गलियारों में सस्पेंस और ड्रामे के बीच एनडीए ने साफ कर दिया है कि ओम बिरला लोकसभा के नए अध्यक्ष बनेंगे. वहीं विपक्ष की ओर से राहुल गांधी ने भी साफ किया है कि हम लोकसभा स्पीकर पर तभी बीजेपी का समर्थन करेंगे जब डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाएगा. ऐसे में माना जा रहा है कि विपक्ष अध्यक्ष पद के लिए भी अपना उम्मीदवार उतारेगा, क्योंकि दोनों के बीच स्पीकर और डेप्युटी स्पीकर को लेकर सहमति नहीं बन पाई. विपक्ष की ओर से इसके लिए कांग्रेस के नेता के सुरेश का नाम बढ़ाया गया है. इस चुनाव को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ी गहमागहमी अब चरम पर है और इससे जुड़ा हर अपडेट इस स्टोरी में दिया जा रहा है.

लोकसभा उपाध्यक्ष पद की मांग पूरी न होने पर विपक्ष ने कांग्रेस सांसद के सुरेश को उम्मीदवार बनाया है, 12.00 PM ओम बिरला और के सुरेश आमने सामने एनडीए की ओर से ओम बिरला और विपक्ष की ओर से कांग्रेस के के सुरेश ने नामांकन भर दिया है। कल सुबह 11 बजे स्पीकर पद के लिए मतदान होगा.

यह पहली बार नहीं है जब लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव हो रहा हो. पहली लोकसभा में 1952 में भी लोकसभा अध्यक्ष के लिए चुनाव हुआ था, हालांकि यह एक औपचारिकता भर था, क्योंकि तब कांग्रेस को बहुमत था. कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने जी वी मावलंकर का नाम स्पीकर पद के उम्मीदवार के तौर पर रखा था. वे 1946 से सैंट्रल लेजेस्लेटिव एंसेबली के स्पीकर थे. संसदीय कार्य मंत्री सत्यनारायण सिन्हा ने इसका समर्थन किया. वहीं एके गोपालन ने शंकर शांताराम मोरे का नाम स्पीकर पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रस्तावित किया. टीके चौधरी ने इसका अनुमोदन किया था. बाद में मत विभाजन कराया गया. मावलंकर के पक्ष में 394 वोट आए जबकि विरोध में 55 वोट आए. दिलचस्प बात यह है कि शंकर शांताराम मोरे ने भी मावलंकर के पक्ष में वोट डाला. उन्होंने कहा कि यह संसद की परंपरा के अनुकूल होगा कि दो उम्मीदवार जो एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं वो एक-दूसरे को ही वोट दे रहे हैं. मैं इस परंपरा के अनुरूप आपको वोट देता हूं. दूसरी बार 1976 में आपातकाल के समय भी स्पीकर के लिए चुनाव हुआ था, तब बलीराम भगत और जगन्नाथ राव के बीच मुकाबला हुआ था. इसमें बलीराम भगत की जीत हुई थी. इस तरह स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह तीसरी बार है जब स्पीकर पद के लिए मुकाबला होगा.

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