आध्यात्ममंदसौरमध्यप्रदेश
श्रीमद् भागवत हमें सांसारिक मोह बंधनों से मुक्ति का मार्ग बताती है- पं.दशरथभाईजी

मंदसौर। माहेश्वरी धर्मशाला नयापुरा रोड़ पर परम पूज्य श्री दशरथभाईजी के मुखारविन्द से श्रीमद् भागवत कथा का रसपान प्रतिदिन दोप. 1 से सायं 5 बजे तक कराया जा रहा है। पं. दशरथभाईजी के मुखारविन्द से श्रीमद् भागवत कथा में प्रतिदिन ज्ञान की गंगा प्रवाहित हो रही है। श्री शांतिलालजी श्री नानालालजी एकलिंग सोनी (कुलथिया) परिवार के द्वारा अपने पितृजनों की पावन स्मृति में यह भागवत कथा कराई जा रही है। प्रतिदिन इस कथा को श्रवण करने बड़ी संख्या में धर्मालुजन माहेश्वरी धर्मशाला पहुंच रहे है।
भागवत कथा के द्वितीय दिवस मंगलवार को पं. दशरथभाईजी ने राजा परिक्षित व सुखदेवजी महाराज संवाद एवं भगवान कपिलजी के ज्ञानवर्धक उपदेश की कथा श्रवण कराई। पं. दशरथभाईजी ने भगवान श्री कृष्ण के साथ अर्जुन की मित्रता एवं महाभारत के युद्ध में अर्जुन को दिये गये भगवत गीता के उपदेश का सार भी बताया। पं. दशरथभाईजी ने कहा कि राजा परीक्षित अर्जुन के पात्र व अभिमन्यु के पुत्र थे। महाभारत युद्ध की समाप्ति के समय अश्वत्थामा ने जब उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र का प्रहार किया उस दौरान श्रीकृष्ण की कृपा से राजा परीक्षित अपने माता के गर्भ में भी सुरक्षित रहे। वे राजा परीक्षित जब साधु संतों का अपमान करते है तो उन्हें ऋषि पुत्र से 7 दिवस में मृत्यु होने का श्राप मिलता है। राजा परीक्षित अपने मृत्यु के भय से भयभीत होकर सुखदेवजी के चरणों में पहुंचते है वहां सुखदेवजी उन्हें भगवान श्री कृष्ण की महिमा बताने वाली भागवतजी का उन्हें श्रवण कराते है। वे सात दिवस तक पूरे मनोरथ से कथा श्रवण करते है तो वे सभी सांसारिक मोह बंधनों व मृत्यु के भय से मुक्त हो जाते है। भागवत कथा हमें मुक्ति का मार्ग बताती है।
प्रभुजी की महिमा का श्रवण, किर्तन व स्मरण करे- कथा में पं. दशरथभाईजी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रभु श्री कृष्ण या जिस भी प्रभु के प्रति वह आस्था रखता हो उनकी महिमा को श्रवण करना चाहिये और भजन किर्तन में भी भागीदारी करना चाहिये और यदि इतना भी नही कर सको तो प्रभु की महिमा का स्मरण जरूर करना चाहिये। यदि प्रभु की महिमा को स्मरण करते समय आप एकान्त में रहोगे तो उत्तम साधना की स्थिति को प्राप्त कर लोगे।
आत्मसंतोष की जीवन जीये- दशरथभाईजी ने कथा में कहा कि वर्तमान में हमारी जीवन शैली भागदौड़ की है जब तक हम आत्मसंतोष का जीवन नहीं जीयेंगे तब तक आत्मसुख नहीं पा सकेंगे। हमें आत्मसुख को पाना है तो आत्मसंतोष के गुण केा अपनाना पड़ेगा।
गंगा के दर्शन से भी पूण्य मिलता है- अपने धर्मसभा में कहा कि पृथ्वी पर गंगा लाने के लिये सगर के 60 हजार परिवारजनों ने खूब परिश्रम किया लेकिन वे गंगा को नहीं ला सके। भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने का पुण्य अर्जित किया उसी प्रकार कुलथिया सोनी परिवार के शांतिलाल सोनी ने भागवत ज्ञान गंगा महोत्सव (कथा) कराने का जो धर्मलाभ लिया वह अद्भूत है।
जन्म व मरण दोनों के दुखों से मुक्त रहो- पं. दशरथभाईजी ने कहा कि जन्म व मृत्यु दोनों में मनुष्य ही नहीं अपितु सभी प्राणियों को दुख होता है। लेकिन भागवत का जो पूरे मनोभाव से श्रवण कर लेता है वह जन्म व मृत्यु दोनों के भय से मुक्त हो जाता है। जन्म के पूर्व 9 माह तक जब गर्भ में होता है तो उसे कई कष्ट होते है। जब मृत्यु निकट आती है तो व्यक्ति शोक में डूब जाता है। हमें इस स्थिति में क्या करना यही भागवत हमें ज्ञान प्रदान करती है
प्रेम करो तो गोपियों जैसा करो- आपने कहा कि श्री कृष्ण से गोकुल की गोपियों ने सबसे ज्यादा प्रेम किया। निस्वार्थ भाव से गोपियां जितना कृष्णजी को याद करती थी उतना हम नहीं करते है। इसी कारण हम कृष्णजी को नहीं पा सके। जबकि गोपियों ने सालोंसाल इंतजार किया लेकिन दर्शन नहीं पा सकी लेकिन उन्हें श्री कृष्ण की परम कृपा प्राप्त कर ली।
भागवत कथा के द्वितीय दिवस मंगलवार को पं. दशरथभाईजी ने राजा परिक्षित व सुखदेवजी महाराज संवाद एवं भगवान कपिलजी के ज्ञानवर्धक उपदेश की कथा श्रवण कराई। पं. दशरथभाईजी ने भगवान श्री कृष्ण के साथ अर्जुन की मित्रता एवं महाभारत के युद्ध में अर्जुन को दिये गये भगवत गीता के उपदेश का सार भी बताया। पं. दशरथभाईजी ने कहा कि राजा परीक्षित अर्जुन के पात्र व अभिमन्यु के पुत्र थे। महाभारत युद्ध की समाप्ति के समय अश्वत्थामा ने जब उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र का प्रहार किया उस दौरान श्रीकृष्ण की कृपा से राजा परीक्षित अपने माता के गर्भ में भी सुरक्षित रहे। वे राजा परीक्षित जब साधु संतों का अपमान करते है तो उन्हें ऋषि पुत्र से 7 दिवस में मृत्यु होने का श्राप मिलता है। राजा परीक्षित अपने मृत्यु के भय से भयभीत होकर सुखदेवजी के चरणों में पहुंचते है वहां सुखदेवजी उन्हें भगवान श्री कृष्ण की महिमा बताने वाली भागवतजी का उन्हें श्रवण कराते है। वे सात दिवस तक पूरे मनोरथ से कथा श्रवण करते है तो वे सभी सांसारिक मोह बंधनों व मृत्यु के भय से मुक्त हो जाते है। भागवत कथा हमें मुक्ति का मार्ग बताती है।
प्रभुजी की महिमा का श्रवण, किर्तन व स्मरण करे- कथा में पं. दशरथभाईजी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रभु श्री कृष्ण या जिस भी प्रभु के प्रति वह आस्था रखता हो उनकी महिमा को श्रवण करना चाहिये और भजन किर्तन में भी भागीदारी करना चाहिये और यदि इतना भी नही कर सको तो प्रभु की महिमा का स्मरण जरूर करना चाहिये। यदि प्रभु की महिमा को स्मरण करते समय आप एकान्त में रहोगे तो उत्तम साधना की स्थिति को प्राप्त कर लोगे।
आत्मसंतोष की जीवन जीये- दशरथभाईजी ने कथा में कहा कि वर्तमान में हमारी जीवन शैली भागदौड़ की है जब तक हम आत्मसंतोष का जीवन नहीं जीयेंगे तब तक आत्मसुख नहीं पा सकेंगे। हमें आत्मसुख को पाना है तो आत्मसंतोष के गुण केा अपनाना पड़ेगा।
गंगा के दर्शन से भी पूण्य मिलता है- अपने धर्मसभा में कहा कि पृथ्वी पर गंगा लाने के लिये सगर के 60 हजार परिवारजनों ने खूब परिश्रम किया लेकिन वे गंगा को नहीं ला सके। भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने का पुण्य अर्जित किया उसी प्रकार कुलथिया सोनी परिवार के शांतिलाल सोनी ने भागवत ज्ञान गंगा महोत्सव (कथा) कराने का जो धर्मलाभ लिया वह अद्भूत है।
जन्म व मरण दोनों के दुखों से मुक्त रहो- पं. दशरथभाईजी ने कहा कि जन्म व मृत्यु दोनों में मनुष्य ही नहीं अपितु सभी प्राणियों को दुख होता है। लेकिन भागवत का जो पूरे मनोभाव से श्रवण कर लेता है वह जन्म व मृत्यु दोनों के भय से मुक्त हो जाता है। जन्म के पूर्व 9 माह तक जब गर्भ में होता है तो उसे कई कष्ट होते है। जब मृत्यु निकट आती है तो व्यक्ति शोक में डूब जाता है। हमें इस स्थिति में क्या करना यही भागवत हमें ज्ञान प्रदान करती है
प्रेम करो तो गोपियों जैसा करो- आपने कहा कि श्री कृष्ण से गोकुल की गोपियों ने सबसे ज्यादा प्रेम किया। निस्वार्थ भाव से गोपियां जितना कृष्णजी को याद करती थी उतना हम नहीं करते है। इसी कारण हम कृष्णजी को नहीं पा सके। जबकि गोपियों ने सालोंसाल इंतजार किया लेकिन दर्शन नहीं पा सकी लेकिन उन्हें श्री कृष्ण की परम कृपा प्राप्त कर ली।
इन्होनंे किया पौथी पूजन- भागवत कथा में कवि मुन्ना बेटरी, शिक्षाविद रमेशचनछ्र परवाल, सुवासरा के कमल सोनी, राजेन्द्र पाण्डेय, राजेश गुप्ता, वल्लभप्रसाद देवड़ा, मनीष सोनी ने पौथीपूजन किया। संचालन अशोक सोनी मेलखेड़ा ने किया।