मंदसौरमंदसौर जिला

 पू. सन्त स्वामी मणि महेश चैतन्यजी महाराज और अन्य संतों ने गौमाता को लाप्सी का लगाया भोग

 

श्री सांवलिया गौशाला कुंचड़ौद में गौमाता को बताया सनातन धर्म का मुख्य आधार स्तम्भ

मन्दसौर। भगवती जगदम्बा मॉ भगवती दुर्गा की उपासना-आराधना के महान हिन्दू सनातन नवरात्र पर्व शुभारंभ के अवसर पर श्री सांवलिया गौशाला कुंचड़ौद में 450 से अधिक गौमाता को श्री चैतन्य आश्रम मेनपुरिया के पूज्य युवाचार्य संत स्वामी मणि महेश चैतन्यजी महाराज एवं अन्य संतांें के साथ गौ सेवकों ने गौमाता को लापसी का भोग लगाया। लापसी का भोग एडवोकेट रामप्रताप कुमावत परिवार के सौजन्य से लगाया गया। पतंजलि योग संगठन जिलाध्यक्ष योगगुरू बंशीलाल टांक, कार्यकारी अध्यक्ष दशरथ कुण्डेल, गौशाला सचिव कारूराम करा, कोषाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण कुण्डेल, पवन कुमार दीक्षित, छगन बागड़िया आदि ग्रामवासी उपस्थित थे।
स्वामी मणि महेश चैतन्यजी महाराज ने भारत की देशी गौमाता को हिन्दू सनातन धर्म का मुख्य आधार स्तम्भ बताते हुए कहा कि गौमाता जिसमें हिन्दूओं के 34 करोड़ देवी देवताओं का निवास बताया गया हैं धरा पर जब भी अत्याचार, पापाचार, दुराचार बढ़ता है उसे मिटाने के लिये भगवान के अवतीर्ण होने के जो चार कारण रामचरित मानस में बताये है ‘‘विप्र धोनु सुर संत हित लन्हि मनुज अवतार’’ उनमें दूसरा कारण गौमाता पर अत्याचार संकट को बताया गया है।
द्वापर युग में कंस के अत्याचार को मिटाने जब भगवान कृष्ण ने अवतार लिया तब ब्रज के राजा नन्द के राजकुमार होने के बावजूद मथुरा जाकर कंस का वध करने से पहले किशोर अवस्था में भगवान कृष्ण ने एक साधारण ग्वाला बनकर वृंदावन में गाये चराई। स्वयं कृष्ण ने अपने हाथों से गौमाता की सेवा की। सतयुग में स्वयं राजा दिलीप ने गाय की सेवा की।
राजा दिलीप ने गौ माता की रक्षा के लिये भूखे शेर के सामने अपने को खाने के लिये सौंप दिया। ऐसे कई उदाहरण शास्त्रों में वर्णित है।
गौमाता को पशु नहीं हमारी जन्मदात्री मॉ से बढ़कर सम्मान दिया गया है। समुद्र से निकले अमृत को किसी ने देखा चखा नहीं है परन्तु गौमाता का दूध को ही अमृत माना गया हैं। यदि किसी शिशु की जन्म लेते ही कारणवश उसकी माता की मृत्यु हो जाये तो तब गौमाता का  दूध ही उसे बढ़ा करता हैं। दूध ही नहीं गौमूत्र से कई बीमारियों को दूर किया जा रहा है। गौमाता से बढ़कर दयालु ममतामर्यी मॉ और कोई नहीं हैं विदेशी भी अब गौमाता के दूध की महिमा समझकर गौमांस के लिये कत्ल करने के बदले गौ पालन करने लगे है। परन्तु इससे बढ़कर हमारा दुर्भाग्य ओर क्या होगा कि जिस गौमाता की पूजा विदेशों में होने लगी है पर हमारे देश में गोपाल की उन्हीं गायों को आधुनिक बुचड़खानों में प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में कत्ल किया जाकर जहाजो में भरकर टनों में उनका मांस विदेशों में बेचा जा रहा है।
इससे बढ़कर विडम्बना और क्या होगी कि गोपाष्टमी दिवाली आदि पर्वों पर हम जिस गौमाता की पूजा करते हैं, दीपावली के दूसरे दिन जिस गाय के गोमय (गौबर) से गोवर्धन बनाकर  पूजते है उसी गाय को एक तरफ गोपालकों ने सड़कों चौराहों पर आवारा पशु बनाकर पेट भरने को नगर व गांव में झूंठा, गंदा, कुड़ा कचरा प्लास्टिक खाने को छोड़ दिया और दूसरी तरफ सरकार गौमाता को राष्ट्रीय पशु घोषित कर उनकी हत्या के कलंक दूर नहीं कर पा रही है। स्वतंत्र आजाद भारत से यह घोर कलंक कब मिटेगा जिसके लिये स्वयं गांधीजी ने अंग्रेजों की गुलामी से देश आजाद होने के बाद कहा था कि जब तक भारत में गौ हत्या का घोर कलंक नहीं मिटेगा तब तक आजादी अधूरी रहेगी।

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