आज के समय में लोग प्रेम को आसक्ति वासना से जोड़कर देखते, जबकि प्रेम का स्वरूप संकीर्ण नहीं विराट है – पं. श्री जोशी जी
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रुक्मणी श्री कृष्ण विवाह में यजमान श्री शर्मा ने महाआरती कर सुख समृद्धि कि कामना कि, वही भक्तों ने महादेव मंदिर के लिए सहयोग के लिए बढ़ाए अपने हाथ
माऊखेड़ा। गांव में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छठे दिवस उपस्थित श्रोताओं को गोवर्धन पूजा के प्रसंग पर कथा का ज्ञान अमृत कराते हुए पंडित श्री कुलदीप जी जोशी कहा कि हमारी संस्कृति और सनातन धर्म हमें अच्छे आचरण रहन-सहन एक दूसरे का सम्मान करना ही केवल नहीं सिखाती बल्कि स्वालंबन भी बनाती हैं। भगवान श्री कृष्ण ने गोपालन कर तथा गोवर्धन पूजा के माध्यम से किसानों को अपनी खेती को अधिक उपजाऊ बनाने का संदेश दिया है। एक बार कि बात है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं और गोप-ग्वालों के साथ गाय चराते हुए गोवर्धन पर्वत पर पहुँचे तो देखा कि वहाँ गोपियाँ 56 प्रकार के भोजन रखकर बड़े उत्साह से नाच-गाकर उत्सव मना रही हैं। श्रीकृष्ण के पूछने पर उन्होंने बताया कि आज के दिन वृत्रासुर को मारने वाले तथा मेघों व देवों के स्वामी इन्द्र का पूजन होता है। इसे ‘इन्द्रोज यज्ञ’ कहते हैं। इससे प्रसन्न होकर इन्द्र ब्रज में वर्षा करते हैं और जिससे प्रचुर अन्न पैदा होता है।श्रीकृष्ण ने कहा कि इन्द्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसके कारण वर्षा होती है। सभी ने श्री कृष्ण कि बात मानकर ब्रजवासी गोवर्धन पर्वत कि पूजा करने लगें नारद मुनि भी यहाँ ‘इन्द्रोज यज्ञ’ देखने पहुँच गए थे। इन्द्रोज बंद करके बलवान गोवर्धन की पूजा ब्रजवासी कर रहे हैं, यह बात इन्द्र तक नारद मुनि द्वारा पहुँच गई। इन्द्र नाराज हुए उन्होंने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर प्रलय पैदा कर दें। ब्रजभूमि में मूसलाधार बरसात होने लगी। बाल-ग्वाल भयभीत हो उठे। श्रीकृष्ण की शरण में पहुँचते ही उन्होंने सभी को गोवर्धन पर्वत की शरण में चलने को कहा। वही सबकी रक्षा करेंगे।
श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी कनिष्ठा अंगुली पर उठाकर छाता-सा तान दिया और सभी को मूसलाधार हो रही वृष्टि से बचाया। बरसात का सभी जल अगस्त ऋषि ने ग्रहण कर अपनी प्यास बुझाई सभी ब्रजवासियों पर एक बूँद भी जल नहीं गिरा। यह चमत्कार देखकर इन्द्रदेव को अपनी की हुई गलती पर पश्चाताप हुआ और वे श्रीकृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। सात दिन बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत नीचे रखा और ब्रजवासियों को प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा और अन्नकूट का पर्व मनाने को कहा। तभी से दीपावली पर गिरधर और गोवर्धन कि पूजा कि जानें लगी।
पं श्री जोशी जी ने कथा के मध्य प्रसंग में कहा कि जीवन में व्यक्ति को कभी घमंड नहीं करना चाहिए घमंडी व्यक्ति भगवान को भी पसंद नहीं है अहंकार की सब जगह हार होती है उन्होंने कहा कि एक बार माता सीता को भोजन बनाकर खिलाने का घमंड हो गया राम से कहा कि ऐसे संत पंडित को जो बहुत खाता हो भगवान राम ने अगस्त ऋषि को अपने घर भोजन के लिए आमंत्रित किया अगस्त ऋषि ने अपने इष्ट का ध्यान करते हुए मंत्र सिद्धि से इतना भोजन ग्रहण किया कि माता सीता भोजन कराते कराते थक गई आखिर में हार मान कर भगवान श्री राम से कहा कि आप ही महर्षि को भोजन करवाएं तभी राम ने तुलसी का पत्र भोजन की थाली में रहकर अगस्त ऋषि को भोजन ग्रहण करने का निवेदन किया जैसे ही तुलसी पत्र ग्रहण किया भोजन की तृप्ति हो गई। कथा में श्रवण कराते हुए पंडित श्री जोशी जी ने कहा कि ग्वाल बाल को गोवर्धन पर्वत उठाने का घमंड हो गया था उन्होंने कहा कि गोवर्धन पर्वत तो हम उठा रहे हैं कृष्ण ने तो केवल उंगली लगा रखी है। जब भगवान ने उंगली दुर कि तो पर्वत नीचे आने लगा सभी ने अपनी गलती मानते हुए श्री कृष्ण से गोवर्धन पर्वत धारण करने को कहा। ऐसे ही कुछ लोग भगवान के कार्यों को भी चुनौती दे देते हैं पर उनको यह सोचना चाहिए कि जो भगवान कर सकता है वह हम नहीं कर सकते हैं।
कथा के माध्यम से पंडित श्री जोशी जी ने कहा कि जिस घर में गौ माता और तुलसी नहीं है वह घर श्मशान के बराबर हैं वही जिस घर में ब्राह्मण (किसी भी संप्रदाय का हो पर वह पूजनीय होना चाहिए) और गौ माता तुलसी का सम्मान नहीं होता वहां लक्ष्मी वह भगवान नारायण नहीं रुकते हैं।
पंडित श्री जोशी जी ने कहा कि परिवार में सामंजस्य बनाकर रहना चाहिए जिस प्रकार से भगवान शिव सिर पर गंगा मस्तिष्क व तीसरे नेत्र में अग्नि सिर पर चंद्रमा अमृत प्रकोष्ठ में जहर शिव का वाहन वृषभ वेल तो माता का वाहन शेयर कार्तिक स्वामी का वाहन मयूर को गले में बाबा सांप धारण किए हुए और गणपति जी का वाहन मूषक सब एक दूसरे के दुश्मन फिर भी एक साथ परिवार में रहते हैं।तो हम क्यों नहीं खुशियों के साथ रह सकते हैं। महादेव के परिवार जैसा संबंधित हमारे परिवार में भी हो हमें महादेव की नित्य प्रार्थना करना चाहिए।
पंडित श्री जोशी ने कहा कि दुर्विकार और दूर्विचार हमारी सोच का परिणाम है जैसा सोचेंगे वैसा हम बन जाते हैं अच्छा सोचेंगे अच्छा बनेंगे रामकृष्ण परमहंस के प्रसंग सुनाते हुए कहा कि एक बार लाहौर गए और एक गली में चले गए उस गली में वेश्या रहती थी राम कृष्ण जी की नजर वेश्या पर गई क्योंकि वह इतनी खूबसूरत थी कि वहां देखने वालों की भीड़ लगती थी राम कृष्ण जी कि नजर वेश्या से नई हर के देख वैश्या ने रामकृष्ण जी से संत का लिबाद बदलने कि कहा तो रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि मैं तुझसे नहीं तेरे रूप को देख रहा हूं और सोच रहा हूं कि जिसने तुझे बनाया वह मेरा प्रभु कितना सुंदर होगा यह कल्पना कर रहा हूं।
कथा के इस अवसर पर पंडित जी जोशी जी ने भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए गोपी और भगवान एक प्रेम प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि आज के समय में लोग प्रेम को आसक्ति वासना से जोड़कर देखते हैं और उसे ही प्रेम मान लेते हैं जबकि प्रेम का असली स्वरूप माता-पिता का बेटा बेटी से गुरु का शिष्य शिष्य का गुरु के प्रति भाई बहन का प्रेम प्रेम कई रिश्तो को जोड़ता है। प्रेम का अभिप्राय संकीर्ण नहीं विराट है।
कथा प्रसंग को आगे सुनाते हुए भगवान कृष्ण के कालिया देह में कुद कर कालिया नाग के संहार करने तथा कंस ने अक्रूर जी को गोकुल जाकर भांजे कृष्ण को मथुरा लाने के लिए कहने भगवान कृष्ण गोकुल से मथुरा अक्रूर जी के साथ जाते हैं और वहां मामा कंस से श्री कृष्ण का युद्ध की कथा का श्रवण कराते हुए कंस वध कर कंस के पिता नाना को भगवान कृष्ण ने कारागार से मुक्त कर मथुरा का राजा बना दिया कथा के आगे गोपी उद्धव प्रसंग भगवान जरासंध की सेना को 17 बार हराने कालयवन को राजा मुचकन्द से संहार कराने तथा शिशुपाल के द्वारा जबरन रुक्मणी से विवाह करने के लिए लग्न पत्रिका लिखाने और रुक्मणी के द्वारा विरोध कर भगवान श्री कृष्ण से विवाह रुक्मणी कृष्ण का विवाह के प्रसंग पर सभी भक्तजन खुशी के साथ झूम उठे और भगवान रुक्मणी श्री कृष्ण के जयकारे लगाए।
पंडित श्री जोशी ने रामचरितमानस के श्लोक को श्रवण कराते हुए कहा कि मंत्री डॉक्टर गुरु तीनों धन या दबाव में बोलते हैं तो नाश हो जाता हैं। मंत्री से राज का डॉक्टर से मरीज का गुरु से शिष्य के जीवन का नाश हो जाता है इसलिए तीनों को कभी झूठ और दवा में नहीं बोलना चाहिए। पंडित जोशी जी ने व्यासपीठ से सभी उपस्थित बेटे बेटियों से आह्वान करते हुए कहा कि कोई भी लड़की लड़का माता-पिता की बिना अनुमति की शादी मत करना उन्होंने कहा कि शास्त्रों में कहा गया कि मां-बाप का जिसने तिरस्कार किया उनका कभी उद्धार नहीं होता है।
कथा के अवसर पर श्री कृष्ण रुकमणी विवाह तथा कथा के मुख्य यजमान पंडित श्याम लाल शर्मा (पाठक) द्वारा श्रीमद् भागवत पोथी भगवान पशुपतिनाथ तुलसी ठाकुर की महाआरती कार अपने माता-पिता को अपना आशीर्वाद प्रदान कर अपने धाम में स्थान प्रदान करने और परिवार के सुख समृद्धि की प्रार्थना की इस अवसर पर उपस्थित भक्त जनों ने महा आरती का लाभ प्राप्त किया तथा देवाधिदेव महादेव के भव्य मंदिर में आप की ओर से सहयोग राशि को समर्पित किया। कथा में बड़ी संख्या माऊखेड़ा गांव और आसपास क्षेत्र के भक्त जन उपस्थित रहे।