शिक्षकों की कमी से जूझता सीमांत ग्राम का विद्यालय

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कोटडा बुजुर्ग गांव का हायर सेकंडरी स्कुल 1 उच्च माध्यमिक शिक्षक के भरोसे चल रहा है! न इस स्कूल में शिक्षक न बच्चों के बैठने के कमरे है न लेब हैl समस्याओं का तो अंबार भरा पडा है,कोटडा बुजुर्ग के और भी विद्यालय है ! इस समस्या ये जूझ रहे है!कई बार स्कूलों मे सांसद,विधायक आये पर इनका ध्यान समस्याओं कि आकर्षित नहीं हुआ है!कई बार इनको अवगत भी कराया पर ध्यान नही दिया गया है,
11 पद स्वीकृत 01 कार्यरत,,,
इस विद्यालय में उच्च माध्यमिक शिक्षक के 11 पद स्वीकृत है सिर्फ एक ही कार्यरत है वही गत वर्ष 5 अतिथि शिक्षकों से जैसे तैसे विद्यालय का संचालन किया 11वीं एवं 12वीं में आर्ट्स साइंस के 2-2 सेक्शन और 10वीं 11वीं का एक-एक सेक्शन कुल 6 सेक्शन विद्यालय में लगते हैं और हाई स्कूल के बने 3 कमरों में ही हायर सेकेंडरी स्कूल संचालित हो रहा है अगर तीन सेक्शन कमरों में लगाए जाते हैं 3 सेक्शन स्कूल के मैदान में लगाने पड़ते हैं, बरसात में बाहर विद्यालय लगा नहीं सकते पंचायत और ग्राम वासियों ने बार-बार स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी अवगत कराया नतीजा ढाक के तीन पात ही रहा सांसद विधायक मात्र आश्वासनों का लॉलीपॉप थमा रहे
सरकार के दावे केवल आकाश कुसुम,,,
शिक्षा को लेकर शिवराज सरकार बडे बडे दावे करती है, लैपटाप या स्कूटी दी जायेगी पर यहां तो शिक्षक ही नहीं है ! बच्चो की पढाई तो बस राम भरोसे चल रही है, तो शिक्षा की हालत क्या होगी महज सहज अंदाज लगाया जा सकता हैl गिरवी प्रभारी फिर भी प्रभारी प्राचार्य सुनील व्यास द्वारा मेहनत करके जैसे तैसे अतिथि शिक्षकों की व्यवस्था कर स्कूल संचालित किया और दसवीं बोर्ड का 12वीं बोर्ड का दोनों ही रिजल्ट ए प्लस में रहे l
वीआईपी के बच्चे नहीं पढ़ते,,,
अगर स्कूल मे नेता अफसर के बच्चे पढ़ते होते तो क्या ऐसे ही रहते हालात स्कुलो के ?
कदापि नहीं क्योंकि नेताओं और अधिकारियों को अपने बच्चों की पढ़ाई की चिंता होती है वह उनको प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाई करवा लेते हैं पर गांव के गरीब, मजदूर ,आदिवासी ,अनुसूचित जाति के बाहुल्य होने से यह अपने बच्चों को पढ़ने बाहर नहीं भेज सकते, संपन्न वर्ग ने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए अशासकीय विद्यालयों में बाहर भेज दिया है किंतु छात्राएं यही मन मसोसकर अध्ययन कर रही है l
आक्रोशित है छात्राएं,,,
विद्यालय की छात्राएं ने बताया कि उनके स्कूल तो खुल गए हैं पर शिक्षकों की व्यवस्था नहीं है और न हीं उनके बैठने की व्यवस्था है लेबोरेटरी भी नहीं है फिर भी वे जैसे-तैसे अपनी पढ़ाई को अंजाम दे रही हैं ,किंतु अब उनके सब्र का बांध टूट चुका है, सहन शक्ति की सीमा पार हो चुकी है छात्राओं का कथन है कि अगर 1 सप्ताह में शिक्षकों की ओर बैठने की व्यवस्था नहीं हुई तो वह शासन का ध्यान आकृष्ट करने के लिए स्कूल की तालाबंदी तक कर सकती हैं l और यह तालाबंदी कब तक जारी रहेगी जब तक उनके अध्यापन की समुचित व्यवस्था शासन द्वारा उपलब्ध नहीं कराई जाती l