आलेख/ विचारमंदसौरमंदसौर जिला

हमारे साहित्य को मज़दूरों,किसानों और सम्पूर्ण जनता का पक्षधर होना चाहिए

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मंदसौर। 9 अप्रेल 1936 को प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना के समय लखनऊ अधिवेशन में प्रेमचंद के अध्यक्षीय उद्बोधन पश्चात महत्वपूर्ण वक्तव्य हसरत मोहानी का भी था जिन्होंने कहा था कि “हमारे साहित्य को स्वाधीनता आंदोलन की आभिव्यक्ति करना और साम्राज्यवादी,अत्याचारी पूंजीपतियों का विरोध करना चाहिए, उसे मज़दूरों,किसानों और सम्पूर्ण जनता का पक्षधर होना चाहिए।

ये विचार व्यक्त किए म. प्र. प्रगतिशील लेखक संघ प्रांतीय सचिव मण्डल सदस्य असअद अन्सारी ने। वे संगठन के स्थापना दिवस तथा संगठन के पुरोधा हरिशंकर परसाई शताब्दी अवसर पर प्र .ले .सं . मंदसौर इकाई द्वारा आयोजित गोष्ठी में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि लखनऊ अधिवेशन में कई लेखकों ने अपने आलेख पढ़े जिनमे गुजरात, महाराष्ट्र, मद्रास के साथ उत्तर प्रदेश के रघुपति सहाय ( जिन्हें फ़िराक़ गोरखपुरी के नाम से जाना जाता है ) का नाम उल्लेखनीय है। श्री अन्सारी ने कहा कि वर्तमान हालात कुछ इस तरह के है कि पूंजीवादी प्रचार माध्यमो ने,शोषक वर्ग के पक्ष में माहौल बनाने के लिए जनता के विवेक और तर्क बुद्धि का अपहरण कर लिया है। झूठे प्रचार के माध्यम से जनता को अंधभक्त बनाया जा रहा हैं। इस हालात में लेखकों और प्रबुद्ध जनों को चाहिए कि वे जनता की तर्क बुद्धि को जागृत कर उन्हे देश के वास्तविक हालत से अवगत करवाए।

गोष्ठि के अध्यक्षता करते हुवे इकाई अध्यक्ष कैलाश जोशी ने कहा कि प्रगतिशील लेखक संघ का गठन हुवे एक लंबा अरसा गुज़र चुका है, लेकिन देश के सामने चुनोतियाँ उसी तरह की हैं।फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि अब फासीवाद और साम्राज्यवाद नये रूप में हमारे सामने है।उन्होंने हरिशंकर परसाई की रचना ” संस्कृति ” का पाठ किया।

संगठन के वरिष्ठ साथी प्रकाश गुप्ता ने कहा कि परसाई जी ने कभी भी अपनी रचनाओं को व्यंग्य के रूप में नहीं लिखा। उन्होने अपने लेखन को समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। श्री गुप्ता ने परसाई जी की रचना ” समझौता ” का वाचन किया।

इस अवसर पर इकाई सचिव दिनेश बसेर ने प्रगतिशील लेखक संघ के इतिहास का ज़िक्र करते हुवे कहा कि प्रेमचन्द ने कहा था कि साहित्य की सर्वोत्तम परिभाषा जीवन की आलोचना है,साहित्यकार का लक्ष्य स्पष्ट करते हुवे उन्होंने साफ़ तौर पर कहा था कि केवल महफ़िल सजाना और मनोरंजन का सामान जुटाना ही साहित्य नहीं है।

गोष्ठी में प्रवीण बड़गोतिया ने केदारनाथ अग्रवाल की रचना के साथ स्वरचित कविता का पाठ किया। ब्रजेश आर्य,रोहित बड़गोतिया हेमन्त कछावा ने भी अपने विचार व्यक्त किये,आभार हूरबानो सैफ़ी ने माना।

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