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झबलों में भी जेब नहीं, नहीं कफन में जेब, हमने जेबों में क्यूं भर लिये, इतने सारे एब’’

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अ.भा. साहित्य परिषद की काव्य गोष्ठी सम्पन्न

मन्दसौर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् मंदसौर इकाई की काव्य गोष्ठी देवेश्वर जोशी, गोपाल बैरागी, नंदकिशोर राठौर, अजय डांगी, चंदा डांगी तथा उदिता मेहता के सानिध्य में सम्पन्न हुई।

कवि गोष्ठी का आरंभ किशोर दीप की सरस्वती वंदना से हुआ। उदिता मेहता ने कांच की मानसिकता का वर्णन करते हुए कविता ‘‘ कोई चेहरे का नूर खोजता है कोई अपना गुरूर खोजता है’’ सुनाई तो अजय डांगी ने मनुष्यों की संग्रह प्रवृत्ति पर प्रहार करते हुए कविता ‘‘झबलों में भी जेब नहीं, नहीं कफन में जेब, हमने जेबों में क्यंू भर लिये इतने सारे एब’’ सुनाई वहीं श्रीमती चंदा डांगी ने ‘‘यादों के झरोखों में जाने के लिये चुप्पियों से गुजरना होता है’’ कविता सुनाकर चुप रहने की महत्ता को प्रतिपादित किया। हरिओम बड़सोलिया ने ‘‘राजनीति जन सेवा रही हो कभी, आज तो ये नेताओं का धंधा होगी’’ कविता सुनाकर राजनीति की स्थिति पर प्रकाश डाला। नरेन्द्रसिंह राणावत ने ‘‘मैं तो हारी रे गिरधारी, कैसे आंऊ कृष्ण मुरारी‘‘ भजन सुनाकर वातावरण कृष्ण भक्तिमय कर दिया।

वरिष्ठ कवि गोपाल बैरागी ने ‘‘दो घण्टे दो साल कविता के माध्यम से जीवन दर्शन समझाया कि, ‘‘जिसने खाया उसने खोया, जिसने दिया उसने पाया’’ नंदकिशोर राठौर ने जीवन में संघर्ष की कविता ‘‘जीवन कुरूक्षेत्र मैदान यहां मची है खीचातान’’ सुनाई। वरिष्ठ कवि देवेश्वर जोशी ने अपनी व्यंग की छोटी-छोटी क्षणिकाएं सुनाकर व्यवस्था पर करारा प्रहार किया तो कवि नरेन्द्र भावसार ने संचालन के साथ अपनी कविता ‘‘शहर चुपचाप जंगल हो जाता है’’ सुनाकर शहरी लोगों की मानसिकता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया तो स्कीन प्लेराइटर संजय भारती ने फिल्मों में साहित्य की उपादेयता को कैसे फिल्माया जाता है इस बात पर प्रकाश डाला।

गोष्ठी का संचालन नरेन्द्र भावसार ने किया तो आभार नन्दकिशोर राठौर ने माना।

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