बिहारदेशनिर्वाचनराजनीति

आसान नहीं होगा नगर निकाय चुनाव कराना: सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई की याचिका दायर होगी, सरकार के खेल की जानकारी दी जायेगी

आसान नहीं होगा नगर निकाय चुनाव कराना: सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई की याचिका दायर होगी, सरकार के खेल की जानकारी दी जायेगी

 

 

बताते चलें कि  बुधवार की शाम राज्य निर्वाचन आयोग ने बिहार में नगर निकाय चुनाव की नयी तारीखों का एलान कर दिया. आयोग ने अपनी अधिसूचना में कहा कि उसे 30 नवंबर को ही राज्य सरकार के नगर विकास विभाग ने निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण को लेकर रिपोर्ट सौंपी थी. उसी दिन राज्य निर्वाचन आयोग ने 18 दिसंबर औऱ 28 दिसंबर को दो फेज में नगर निकाय चुनाव कराने का एलान कर दिया. राज्य निर्वाचन आय़ोग के मुताबिक आऱक्षण की व्यवस्था वैसी ही रहेगी जैसे अक्टूबर में घोषित चुनाव में थी. उम्मीदवारों को फिर नामांकन भी नहीं करना होगा. उनका चुनाव चिह्न भी वही रहेगा. सिर्फ तारीख नयी होगी. जो चुनाव पहले 10 अक्टूबर को होने वाला था वह अब 18 दिसंबर को होगा. जो चुनाव पहले 20 अक्टूबर को होने वाला था वह 28 दिसंबर को होगा.

 

दरअसल राज्य सरकार से लेकर निर्वाचन आय़ोग ने आनन फानन एक ही दिन में आरक्षण को लेकर रिपोर्ट भेजने से लेकर चुनाव का डेट घोषित करने की कवायद तक की जब 30 नवंबर को ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला सार्वजनिक हुआ था. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार में अति पिछड़ों को आरक्षण को लेकर बड़ी टिप्पणी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिहार राज्य अति पिछडा वर्ग आयोग को डेडिकेटेड कमीशन नहीं माना जा सकता.

 

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में सुनील कुमार ने याचिका दायर कर ये आऱोप लगाया है कि नगर निकाय चुनाव में बिहार सरकार सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का पालन नहीं कर रही है. सुप्रीम कोर्ट बार बार ये कह चुका है कि किसी राज्य में ट्रिपल टेस्ट कराये बगैर निकाय चुनाव में पिछड़े वर्ग को आऱक्षण नहीं दिया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट वाले आदेश में साफ तौर पर कहा गया है कि निकाय चुनाव में आरक्षण के लिए राजनीतिक तौर पर पिछड़े वर्ग की पड़ताल के लिए एक डेडिकेटेड कमीशन यानि समर्पित आयोग का गठन किया जाना अनिवार्य है. इस आयोग की सिफारिश के मुताबिक ही आरक्षण का अनुपात तय हो सकेगा. याचिका दायर करने वाले ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि बिहार सरकार जिस अति पिछड़ा आय़ोग से आरक्षण के लिए रिपोर्ट तैयार करा रही है वह डेडिकेटेड कमीशन यानि समर्पित आयोग नहीं है.

 

 

इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए 28 नवंबर को ही सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि बिहार राज्य अति पिछड़ा वर्ग आयोग को एक डेडिकेटेड कमीशन नहीं माना जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर पक्ष रखने के लिए बिहार सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी करने का निर्देश दिया. उन्हें चार सप्ताह में अपना पक्ष रखना था. राज्य सरकार औऱ निर्वाचन आयोग को सुप्रीम कोर्ट का आदेश पहुंचने में कुछ दिनों का वक्त लगता. इसी बीच 30 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला सार्वजनिक हो गा औऱ राज्य निर्वाचन आयोग ने उसी दिन आनन फानन में निकाय चुनाव का डेट जारी कर दिया.

 

दिलचस्प बात ये है कि राज्य निर्वाचन आयोग ने नगर निकाय चुनाव को लेकर जो अधिसूचना जारी की है उसमें अति पिछड़ा वर्ग आयोग को डेडिकेटेड कमीशन यानि समर्पित आय़ोग करार दिया गया है. चुनाव की अधिसूचना में ये कहा गया है कि डेडिकेटेड कमीशन यानि समर्पित आय़ोग की रिपोर्ट पर चुनाव की घोषणा की जा रही है. ये तब हुआ है जब 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ये कह चुका है कि अति पिछड़ा आय़ोग को डेडिकेटेड कमीशन नहीं माना जा सकता.

 

इस बाबत जब कुछ पत्रकार  ने सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता राजेश अग्रवाल से बात की तो उन्होंने कहा कि बिहार सरकार औऱ राज्य निर्वाचन आयोग कानूनी हथकंडे अपना रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 28 अक्टूबर को बिहार सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी करने और अति पिछड़ा आयोग को डेडिकेटेड कमीशन नहीं मानने का आदेश दिया है. कागजी तौर पर इस आदेश की प्रति राज्य सरकार या निर्वाचन आयोग तक पहुंचने में चार-पांच दिनों का वक्त लगेगा. उससे पहले ही ये सारी घोषणा कर दी गयी. एडवोकेट राजेश अग्रवाल के मुताबिक जब मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी तो बिहार सरकार औऱ राज्य निर्वाचन आय़ोग ये कहेगी कि हमें तो सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जानकारी ही नहीं थी. हमें कोई कॉपी नहीं मिली थी.

 

एडवोकेट राजेश अग्रवाल के मुताबिक निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर अपने ट्रिपल टेस्ट में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक तौर पर पिछडे वर्ग की पहचान के लिए डेडिकेटेड आयोग बनाने को कहा था. बिहार सरकार ने अति पिछड़ा वर्ग आय़ोग को ये काम सौंप दिया. अब सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है कि अति पिछड़ा वर्ग आयोग डेडिकेटेड आयोग नहीं है. इसका मतलब यही निकलता है कि अति पिछड़ा वर्ग आय़ोग की रिपोर्ट पर आरक्षण कैसे तय हो सकता है. लेकिन राज्य सरकार ने आनन फानन में चुनाव कराने का फैसला लिया है तो याचिका करने वाले सुप्रीम कोर्ट में तत्काल सुनवाई की गुहार लगा सकते हैं.

 

 

अरजेंट हियरिंग के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर होगी अर्जी

 

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले सुनील कुमार अब कोर्ट में अरजेंट हियरिंग यानि तत्काल सुनवाई की गुहार लगाने जा रहे हैं. सुनील कुमार के करीबियों ने बताया कि शुक्रवार तक सुप्रीम कोर्ट में फिर से अर्जी लगायी जा सकती है कि बिहार सरकार किस तरह से बाजीगरी करने में लगी है. अगर कोर्ट ने उस अर्जी का संज्ञान लिया तो बिहार में नगर निकाय चुनाव पर फिर से ग्रहण लगेगा

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WhatsApp Icon
Whatsapp
ज्वॉइन करें
site-below-footer-wrap[data-section="section-below-footer-builder"] { margin-bottom: 40px;}