खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी…
आलेख-रानी लक्ष्मीबाई जंयती विशेष
-संकलनकर्ताः राधेश्याम मारू
पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता मंदसौर
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी, यह कविता सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखी थी। इस कविता में रानी लक्ष्मीबाई को मर्दानी बताया गया है। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेज़ों के खिलाफ वीरता से लड़ाई लड़ी थी और झांसी की रक्षा करने की कोशिश की थी, इसी वजह से कवयित्री ने उन्हें मर्दानी कहा है। आज रानी लक्ष्मीबाई की जयंती पर्व है। देश मे रानी लक्ष्मीबाई की जयंती 19 नवंबर को मनाई जाती है।
हर साल इस दिन झांसी की रानी की वीरता को नमन किया जाता है और अंग्रेजों के खिलाफ उनकी शौर्य गाथा को याद किया जाता है। कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान सिंहासन की कविता की चंद पक्तियों का हम यहा उल्लेख कर रहे है जिसमे रानी लक्ष्मीबाई की वीरगाथा को लेकर लिख गया की………………
हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी,
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी,
रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी कुछ और खास बातें- रानी लक्ष्मीबाई एक देशभक्त, बहादुर और अपने परिवार से बहुत प्रेम करने वाली योद्धा थीं। रानी लक्ष्मीबाई ने आजादी के पहले युद्ध में देशवासियों में बलिदान और त्याग की भावना जगाई थी। रानी लक्ष्मीबाई की आखिरी लड़ाई के दौरान उन्होंने अपने दांतों में घोड़े की लगाम दबाए और दोनों हाथों में तलवार लिए वार किया था।
रानी लक्ष्मीबाई को महाराष्ट्र-कुल-देवी की आराध्य भवानी माना जाता है। रानी लक्ष्मीबाई (जन्म 19 नवम्बर 1828- मृत्यु 18 जून 1858) मराठा शासित झाँसी राज्य की रानी और 1857 की राज्यक्रान्ति की द्वितीय शहीद वीरांगना थीं। उन्होंने सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं।