गरीबों के मसीहा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर की आज जयंती है। इस मौके पर बिहार के के साथ-साथ देश भर के नेता जन नायक को याद कर रहे हैं। कर्पूरी ठाकुर को गरीबों का मसीहा माना जाता है। कर्पूरी ठाकुर बेहद गरीब परिवार से आते थे। दो बार बिहार के मुख्यमंत्री और एक बार उप मुख्यमंत्री रहे। उनके बारे में कहा जाता है कि सत्ता मिलने के बावजूद उन्होंने कभी भी उसका दुरुपयोग नहीं किया। उनकी ईमानदारी के कई किस्से आज भी बिहार में आपको सुनने को मिलते हैं।
बिहार के नाई परिवार में जन्में ठाकुर अखिल भारतीय छात्र संघ में रहे। लोकनायक जयप्रकाश नारायण व समाजवादी चिंतक डॉ. राम मनोहर लोहिया इनके राजनीतिक गुरु थे। बिहार में पिछड़ा वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था कराने की पहल की थी। भारत छोड़ो आंदोलन के समय कर्पूरी ठाकुर ने करीब ढाई साल जेल में बिताया।
क्रर्पूरी ठाकुर से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जब राज्य के मुख्यमंत्री थे तो रिश्ते में उनके एक बहनोई उनके पास नौकरी के लिए गए। उन्होंने मुख्यमंत्री साले से नौकरी के लिए सिफारिश लगवाने कहा। बहनोई की बात सुनकर कर्पूरी ठाकुर गंभीर हो गए। उन्होंने अपनी जेब से पचास रुपये निकालकर उन्हें दिए और कहा कि जाइए और एक उस्तरा आदि खरीद लीजिए। अपना पुश्तैनी धंधा आरंभ कीजिए।
जयंत जिज्ञासु की किताब में कर्पूरी ठाकुर की खुद्दारी के एक और प्रसंग का जिक्र है। कर्पूरी ठाकुर के छोटे बेटे का डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए चयन हो गया था। इस बीच उसकी तबीयत खराब हो गयी। उसे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। डॉक्टरों ने बताया कि दिल की बीमारी है। ऑपरेशन के लिए मोटी रकम की जरूरत थी। ये बात जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पता चली तो उन्होंने अपने एक प्रतिनिधि को भेजा। इसके बाद कर्पूरी ठाकुर के बेटे को राम मनोहर लोहिया अस्पताल से निकाल कर एम्स में भर्ती कराया गया।इसके बाद इंदिरा गांधी खुद अस्पताल गई और कहा कि वह सरकारी खर्च पर कर्पूरी ठाकुर के बेटे का इलाज अमेरिका में करवाएंगी। कर्पूरी ठाकुर को जब इस बात की जानकारी मिली, तो उन्होंने साफ मना कर दिया। उन्होंने साफ कहा कि मर जाएंगे, लेकिन बेटे का इलाज सरकारी खर्च से नहीं करायेंगे। बाद में जयप्रकाश नारायण ने पैसे का बंदोबस्त कराया और न्यूजीलैंड भेज कर उनके बेटे का इलाज कराया।
सत्तर के दशक में बिहार सरकार विधायकों और पूर्व विधायकों के निजी आवास के लिए पटना में सस्ती दर पर जमीन दे रही थी। जब कर्पूरी ठाकुर को आवास के लिए जमीन लेने के लिए कहा गया तो उन्होंने साफ मना कर दिया। इसपर एक विधायक ने उनसे कहा था कि आपका बाल-बच्चा कहां रहेगा? कर्पूरी ठाकुर ने कहा कि अपने गांव में रहेगा। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा समस्तीपुर स्थित उनके गांव पितौंझिया गए तो पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे।
भारत सरकार ने बिहार के पूर्व नेता, कर्पूरी ठाकुर के लिए भारत रत्न पुरस्कार की घोषणा की, जिन्हें बिहार में ‘जननायक’ के रूप में सम्मानित किया जाता है। यह घोषणा उनकी 100वीं जयंती के एक दिन पहले की गई थी।
कर्पूरी ठाकुर बिहार की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने दिसंबर 1970 से जून 1971 तक और फिर जून 1977 से अप्रैल 1979 तक यह पद संभाला। उन्होंने गरीबों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की। उन्होंने सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल की सरकार में और बाद में जनता पार्टी की सरकार में मुख्यमंत्री का पद संभाला।
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 1924 में बिहार के समस्तीपुर में नाई समाज में हुआ था, और वे सामाजिक भेदभाव व असमानता के खिलाफ संघर्ष करते रहे। उनके प्रयासों से शिक्षा, रोजगार और किसान कल्याण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए।
कर्पूरी ठाकुर की सादगी और ईमानदारी के कई किस्से है। स्वतंत्रता सेनानी कर्पूरी ठाकुर 1952 से लगातार दशकों तक विधायक रहे पर अपने लिए उन्होंने कहीं एक मकान तक नहीं बनवाया। उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके पैतृक गांव में पुश्तैनी झोपड़ी देख कर रो पड़े थे।
केंद्र सरकार ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करके लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में उनकी भूमिका को मान्यता दी है। उनका जीवन और कार्य भारतीय संविधान की भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह पुरस्कार न केवल उनकी उपलब्धियों की मान्यता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा भी है।