मंदसौर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस नही जीती विपीन जैन जीते

मंदसौर विधानसभा क्षेत्र वैसे तो भाजपा के गढ़ के रूप में देखा जाने लगा है। लेकिन विस और नपा चुनावों में बहुत कम मतों से हुई हार-जीत को देखकर यह कहना गलत होगा। कहीं न कहीं कांग्रेस की गुटबाजी तो कहीं निर्दलीय कांग्रेस की में रोड़ा बने। लेकिन कांग्रेस जिलाध्यक्ष और कांग्रेस प्रत्याशी की रणनीति कारगर साबित हुई। विपीन जैन ने न सिर्फ जीत हासिल की, बल्कि कांग्रेस के लिए बीस से लगातार हार को जीत में बदलने का काम किया।
मंदसौर विधानसभा क्षेत्र को एक नजर देखा जाए तो 1998 में भाजपा नेता कैलाश चावला कांग्रेस के नवकृष्ण पाटिल से पराजित हुए। इसके बाद 2003 में भाजपा के ओमप्रकाश पुरोहित ने नवकृष्ण पाटिल को हराया। इसके बाद लगातार पद्रह सालों से यशपाल सिंह सिसौदिया का इस सीट पर प्रभाव रहा।अब तक कांग्रेस के लिए बीस साल का वनवास के बाद पुनः राज योग विपीन जैन के माध्यम से प्राप्त हुए।
मंदसौर विधानसभा क्षेत्र में अभी तक हुए 14 चुनाव में-भाजपा ने आठ बार तो कांग्रेस ने छह बार इस सीट पर फतेह हासिल की है। 1990 के बाद हुए सात चुनावों में के बदले परिदृश्य ने इस सीट पर भाजपा को ही स्थापित कर दिया है। यहां केवल 1998 में भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। उसके अलावा छह चुनावों 1990, 1993, 2003, 2008, 2013 व 2018 में भाजपा ने लगातार कांग्रेस प्रत्याशियों को शिकस्त दी है।
कांग्रेस की ओर से अभी तक सात बार श्यामसुंदर पाटीदार चुनाव मैदान में उतरे। दो बार 1957, 1962 व 1980, 1985 में ऐसा मौका भी आया कि लगातार दो चुनाव भी जीते। इसके बाद तीसरे चुनाव में उन्हें हार ही मिली। इनके अलावा कांग्रेस की तरफ से तीन चुनाव लड़ ? का मौका नवकृष्ण पाटिल (1993, 1998, 2003) को ही मिला था, पर वे भी केवल एक बार 1998 में ही चुनाव जीत पाए।
अब इस बार मतदाता ने बदलाव करते हुए भाजपा के तीन बार के विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया को कांग्रेस के प्रत्याशी और पहली बार विधानसभा चुनाव लड़े विपिन जैन ने हरा दिया, विपिन जैन दलोदा के सरपंच रहे और उसके बाद सीधे कांग्रेस जिलाध्यक्ष के पद पर काबिज हुए करीब 6 माह कांग्रेस जिला अध्यक्ष पद पर रहते हुए सीधे विधानसभा के चुनावी मैदान में उतरे और भाजपा प्रत्याशी को हराने में कामयाबी हासिल की, हालांकि वोट का मार्जिन काफी कम रहा (2049वोट) लेकिन हार तो भला हार है।