रतलामजावरा

रियावन भूमि घोटाला : प्रशासनिक निष्क्रियता पर उठे गंभीर सवाल

निलंबित सचिव की पुनः बहाली ने बढ़ाई नाराजगी, फर्जी रजिस्ट्री में कई नाम उजागर

दिनांक 10 नवंबर 2025 |ग्राम पंचायत रियावन (जनपद पिपलौदा, जिला रतलाम) में सरकारी भूमि और शासकीय भवन पंजी से जुड़े गंभीर भ्रष्टाचार और कूटकरण के मामले ने अब एक बार फिर प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर कर दिया है। जांच रिपोर्ट में दोष सिद्ध होने के बावजूद 10 माह से कोई FIR दर्ज नहीं की गई, बल्कि दोषी पाए गए सचिव को पुनः बहाल कर दिया गया। यह घटना न केवल न्याय प्रणाली पर प्रश्नचिह्न है, बल्कि जनता के विश्वास को भी गहरा आघात पहुंचाती है।

जांच रिपोर्ट का खुलासा

जनपद पंचायत पिपलौदा द्वारा गठित त्रिसदस्यीय जांच समिति — जिसमें मदन सिंह सिसोदिया (सहायक लेखाधिकारी), शराफत अली (पंचायत समन्वय अधिकारी) और राधेश्याम परिहार (पंचायत निरीक्षक) शामिल थे — ने दिनांक 05 फरवरी 2025 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में निम्न गंभीर अनियमितताएँ दर्ज की गईं:

ग्राम पंचायत रियावन की भवन पंजी गायब पाई गई।

मकान क्रमांक 377 को अवैध रूप से विभाजित कर 377/1, 377/2 और 377/3 के रूप में कूटकरित अभिलेख तैयार किए गए।

वर्ष 2011-12 एवं 2012-13 की मांग-वसूली पंजी को “नवीन रूप से तैयार” कर उसमें फर्जी प्रविष्टियाँ जोड़ी गईं।

इन जाली प्रविष्टियों के आधार पर फर्जी नामांतरण और रजिस्ट्री दस्तावेज़ तैयार किए गए।

तत्कालीन सचिव अशोक परमार (सेन) और वर्तमान सचिव घनश्याम सूर्यवंशी की प्रत्यक्ष संलिप्तता सिद्ध हुई।

जांच रिपोर्ट के अनुसार, यह पूरा कृत्य एक सुनियोजित आपराधिक षड्यंत्र था, जिसमें न केवल सरकारी अभिलेखों के साथ छेड़छाड़ की गई बल्कि अवैध लाभ के लिए सरकारी भूमि को निजी स्वामित्व में दर्शाया गया।

फर्जी रजिस्ट्री करवाने वालों के नाम उजागर

जांच रिपोर्ट और अभिलेखों से यह भी स्पष्ट हुआ कि निम्न व्यक्तियों ने कूटकरित दस्तावेजों के आधार पर अवैध रजिस्ट्री करवाई:

1️⃣ सरल क्रमांक 377/1: चमनलाल बंशीलाल द्वारा विक्रय उपरांत राजेश अशोक धाकड़ के नाम दर्ज।

2️⃣ सरल क्रमांक 377/2: राजेश अशोक धाकड़ द्वारा विक्रय उपरांत चमनलाल बंशीलाल के नाम दर्ज।

3️⃣ सरल क्रमांक 377/3: टीना राहुल धाकड़ द्वारा विक्रय उपरांत उमा अशोक धाकड़ के नाम दर्ज।

इन रजिस्ट्रीयों का आधार ही कूटकरित और फर्जी अभिलेख थे, जो “भवन पंजी” की गुमशुदगी और “नामांतरण पंजी” के अवैध संधारण के माध्यम से किए गए।

जांच समिति ने इसे “संपूर्णतः जालसाजी और भ्रष्टाचार का संगठित उदाहरण” बताया है।

अनशन और जनता का संघर्ष

ग्राम पंचायत रियावन के पंच गौरव जैन और भाजपा नेता सुरेश धाकड़ ने 04 अगस्त 2025 को इस भ्रष्टाचार और प्रशासनिक चुप्पी के विरोध में आमरण अनशन (जनसत्याग्रह) प्रारंभ किया। यह अनशन लगातार 72 घंटे तक चला। अनशन के दौरान प्रशासनिक अधिकारी कई बार स्थल पर पहुँचे लेकिन ठोस कार्रवाई नहीं की।

अनशन के तीसरे दिन दोनों नेताओं की तबीयत बिगड़ने पर उन्हें स्वास्थ्य केंद्र और फिर अस्पताल में भर्ती कराया गया। जनता के दबाव और मीडिया कवरेज के बाद 07 अगस्त 2025 को जिला पंचायत सीईओ द्वारा सचिव घनश्याम सूर्यवंशी को निलंबित करने का आदेश जारी किया गया।

यह निर्णय जनता की जीत और सत्य की आंशिक विजय के रूप में देखा गया।

न्याय अधूरा — दोषी की पुनः बहाली ने बढ़ाया जनआक्रोश

अनशन की समाप्ति के कुछ सप्ताह बाद, बिना किसी विभागीय जांच के पूर्ण हुए, उसी दोषी सचिव घनश्याम सूर्यवंशी को ग्राम पंचायत मावता (जनपद पिपलौदा) का प्रभार देकर बहाल कर दिया गया।

यह बहाली उस निलंबन आदेश के पूर्ण विरोध में है जिसमें लिखा गया था कि “सचिव की प्रथम दृष्टया संलिप्तता पाई गई है।”

जनता में यह सवाल उठ रहा है कि — क्या यह निलंबन केवल औपचारिक कार्रवाई थी? क्या दोषियों को जानबूझकर संरक्षण दिया जा रहा है?

कानूनी स्थिति और सुप्रीम कोर्ट का दृष्टांत

भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धाराओं 316, 338, 339, 340 और 61 के तहत यह अपराध संज्ञेय श्रेणी का है। ऐसी स्थिति में FIR दर्ज करना CrPC की धारा 154 के तहत अनिवार्य है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय “ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2013)” के अनुसार — जब किसी संज्ञेय अपराध की जानकारी पुलिस अथवा प्रशासन को मिलती है, तो FIR दर्ज करना उसका कानूनी दायित्व है।

न्याय में देरी का सामाजिक प्रभाव

रियावन प्रकरण केवल एक पंचायत का नहीं, बल्कि पूरे शासन-प्रशासन में व्याप्त संवेदनहीनता और भ्रष्टाचार के विरुद्ध प्रतीकात्मक लड़ाई है। जब सत्य को दबाया जाता है और दोषी सुरक्षित रहते हैं, तो समाज में कानून पर भरोसा कमजोर होता है।

गौरव जैन ने कहा — “हमारा संघर्ष जनहित का है, व्यक्तिगत नहीं। जब शासन चुप रहता है, तो जनता बोलती है — और रियावन की जनता अब न्याय मांग रही है।”

जनता की अपेक्षा

रियावन के ग्रामीणों की अपेक्षा है कि जिला प्रशासन इस बार ठोस कदम उठाए — ताकि यह संदेश जाए कि न्याय में देरी, अन्याय के समान है। जनता यह उम्मीद कर रही है कि दोषियों के विरुद्ध FIR दर्ज की जाए, सचिव की बहाली निरस्त की जाए और पंचायत विभाग के भीतर पारदर्शिता की नई मिसाल स्थापित की जाए।

 हमारी प्रमुख माँगें

1️⃣ 05 फरवरी 2025 की जांच रिपोर्ट के आधार पर तत्काल FIR दर्ज की जाए।

2️⃣ सचिव घनश्याम सूर्यवंशी की बहाली आदेश को निरस्त किया जाए और उन्हें पुनः निलंबित कर जांच के दायरे में लाया जाए।

3️⃣ फर्जी रजिस्ट्री कराने वाले सभी व्यक्तियों पर भी आपराधिक मुकदमे दर्ज किए जाएं।

4️⃣ जनपद पंचायत पिपलौदा और जिला पंचायत रतलाम के संबंधित अधिकारियों की भूमिका की स्वतंत्र जांच की जाए।

5️⃣ भवन पंजी और संबंधित अभिलेखों को सीलबंद कर अभिलेख संरक्षण आदेश जारी किया जाए।

6️⃣ जनता को जांच की प्रगति रिपोर्ट 15 दिनों के भीतर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाए।

7️⃣ रियावन पंचायत में स्थायी रूप से पारदर्शिता और शिकायत निवारण प्रणाली लागू की जाए।

सुरेश धाकड़ का बयान:-“यह निर्णय प्रशासन की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न है। जिस सचिव को स्वयं विभाग ने दोषी पाया था, उसे बिना जांच निष्कर्ष के पुनः बहाल करना न्याय के साथ मज़ाक है। हमारा संघर्ष केवल व्यक्तिगत नहीं बल्कि जनहित का है। जब जांच रिपोर्ट में दोष सिद्ध हो चुका है, तब भी कार्रवाई न होना न्याय की प्रक्रिया पर प्रश्नचिह्न है। सचिव को निलंबित करना मात्र औपचारिक कदम था। अगर दोषियों पर FIR दर्ज नहीं होती, तो यह संदेश जाएगा कि पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार को संरक्षण प्राप्त है।” 

गौरव जैन का बयान:“हमने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर शिकायत, RTI आवेदन, तथा जिला प्रशासन को कई बार अवगत कराया, लेकिन कार्रवाई केवल कागजों तक सीमित रही। हमने न्याय की मांग के लिए अहिंसक मार्ग चुना है, लेकिन 10 माह की चुप्पी शासन की संवेदनहीनता दर्शाती है। अब समय है कि जिला प्रशासन इस मामले में FIR दर्ज कराकर जांच को कानूनी दिशा दे और दोषियों की पुनः बहाली को तत्काल निरस्त करे।”

 अपील-रियावन पंचायत का यह प्रकरण पंचायत व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही का उदाहरण बन चुका है। जनता प्रशासन से अपेक्षा रखती है कि दोषियों पर कठोर कार्रवाई हो, फर्जी अभिलेखों के आधार पर की गई रजिस्ट्री को निरस्त किया जाए, और सरकारी भूमि को पुनः राजस्व अभिलेखों में दर्ज कर पारदर्शी जांच प्रक्रिया सुनिश्चित की जाए।

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