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27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की संवैधानिक वैधता के मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई

27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की संवैधानिक वैधता के मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई

जबलपुर✍️

मध्य प्रदेश लोक सेवा (एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2019 के तहत 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण की संवैधानिक वैधता के मामले में मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा व न्यायमूर्ति एएस चंदूरकर की युगलपीठ के समक्ष मध्य प्रदेश शासन की ओर से 13 प्रतिशत होल्ड पदों के कारण नई भर्तियों में आ रही परेशानी बताई गई साथ ही स्थगन हटाए जाने की मांग की गई। सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण की अंतिम सुनवाई 23 सितंबर से टाप आफ द बोर्ड व्यवस्था अंतर्गत प्रतिदिन किए जाने की महत्वपूर्ण व्यवस्था दे दी।

मध्य प्रदेश शासन की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता, अतिरिक्त सालिसिटर जनरल केएम नटराज और महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने पक्ष रखा। उन्होंने जोर देकर कहा कि हाई कोर्ट द्वारा 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण पर स्थगन के कारण नई भर्तियों में परेशानी हो रही है। लिहाजा, अपेक्षाकृत शीघ्रता से सुनवाई पूरी किए जाने की मांग स्वीकार की जाए।

बता दें, अभी केवल 87 प्रतिशत पदों पर भर्ती के लिए चयन सूची जारी होती है। 13 प्रतिशत पदों पर परिणाम ओबीसी आरक्षण 14 रहने या 27 प्रतिशत तय होने की प्रत्याशा में होल्ड कर लिया जाता है। इस बीच, राज्य सरकार ने कहा कि अंतिम सुनवाई तय होने से ओबीसी के व्यापक हित में सरकार के गंभीर प्रयासों को सफलता मिली है। ओबीसी के लिए बहुप्रतीक्षित फैसले की घड़ी नजदीक आ गई है।

कोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी

ओबीसी पक्ष की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश शासन की जमकर फजीहत हुई। सुप्रीम कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण पर लगी रोक हटाए जाने की मांग संबंधी मध्य प्रदेश शासन के अंतरिम आवेदन पर बहस नहीं सुनी। राज्य सरकार को आड़े हाथों लेते हुए तल्ख शब्दों में फटकार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वर्षों से नींद में सो रहे हैं, अब स्थगन हटवाने के लिए नींद खुली है। सवाल यह भी उठता है कि आखिर क्यों मध्य प्रदेश शासन ने हाई कोर्ट में निर्णय करवाने के स्थान पर सुप्रीम कोर्ट में प्रकरण ट्रांसफर करवाए गए। ओबीसी वर्ग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी, अनूप जार्ज चौधरी, रामेश्वर सिंह ठाकुर, वरुण ठाकुर व विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा।

पांच साल से उलझा हुआ है ओबीसी आरक्षण का मामला

मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण का मुद्दा लंबे समय से चला आ रहा है। कमल नाथ सरकार में ओबीसी आरक्षण 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत किया गया था लेकिन मार्च 2020 में ही हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी। दरअसल, 13 प्रतिशत आरक्षण बढ़ाए जाने से कुल आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक हो रही थी।

इसे लेकर मामला अटका हुआ था। महाधिवक्ता के अभिमत पर वर्ष 2021 में ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने की सामान्य प्रशासन विभाग ने अनुमति दी। बाद में हाई कोर्ट जबलपुर ने 87:13 का फार्मूला लागू किया यानी 87 प्रतिशत पदों पर भर्ती के लिए चयन सूची जारी होती है और 13 प्रतिशत पदों के परिणाम होल्ड कर लिए जाते हैं।

बड़ा राजनीतिक मुद्दा रहा है

भाजपा और कांग्रेस, ओबीसी आरक्षण के लाभ को लेकर एक-दूसरे पर आरोप लगाती हैं। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव से लेकर भाजपा के तमाम नेता कहते हैं कि कांग्रेस केवल दिखावा करती है। ओबीसी आरक्षण बढ़ाने के नाम पर केवल इस वर्ग को छला गया है। कमजोर पैरवी के कारण न्यायालय से राहत नहीं मिली। जब हमारी सरकार आई तब इसे गंभीरता से लिया और सुप्रीम कोर्ट तक में दमदारी से ओबीसी आरक्षण के पक्ष में तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं।

भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी आशीष अग्रवाल ने कहा कि मुख्यमंत्री के दृढ़ संकल्प और सतत प्रयासों से मंगलवार को ओबीसी आरक्षण के मुद्दे पर अंतिम सुनवाई की तिथि नियत हुई। भाजपा सरकार ने एक बार फिर सिद्ध किया है कि वह सामाजिक न्याय, समान अवसर और पिछड़े वर्गों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए हर मोर्चे पर डटकर खड़ी है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार और पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव का कहना है कि भाजपा सरकार केवल ओबीसी हितैषी होने का दिखावा करती है। हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट ने 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ देने पर रोक नहीं लगाई। सुप्रीम कोर्ट में 13 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण रोककर रखने पर सरकार का कोई ठोस पक्ष नहीं आया, जिसके कारण यह मामला अभी तक लंबित है।

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