शामगढ़आध्यात्ममंदसौर जिला

हमें एक दूसरे के प्रति आदर सम्मान का भाव रखना चाहिए, भगवान राम और शिव ने एक दूसरे को आदर सम्मान प्रदान किया- संत श्री दिवयेशरामजी 

हमें एक दूसरे के प्रति आदर सम्मान का भाव रखना चाहिए, भगवान राम और शिव ने एक दूसरे को आदर सम्मान प्रदान किया- संत श्री दिवयेशरामजी 

शामगढ़।भगवान श्री राम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले समुद्र के तट पर भगवान रामेश्वरम की स्वयं के हाथों से स्थापना करके जगत कल्याण आसुरी शक्तियों के विनाश तथा ऋषि मुनि की रक्षा के लिए रावण जैसे राक्षस को इस पृथ्वी से भार मुक्त करने के लिए संकल्प करके भगवान आशुतोष का आशीर्वाद प्राप्त कियाl उक्त उद्गार संत श्री दिवयेशरामजी ने पोरवाल मांगलिक भवन में आयोजित चातुर्मास के सत्संग में कथा महोत्सव पर ज्ञानामृत प्रवाहित करते हुए कहें।

संत श्री ने कथा के माध्यम से कहा कि मनुष्य के मन में एक दूसरे के प्रति आदर सम्मान का भाव होना चाहिए भगवान राम और शिव ने एक दूसरे को आदर सम्मान प्रदान किया।भगवान ने स्वयं कहा जो शिवद्रोही होगा वह कभी भी मेरा भक्त नहीं हो सकता और शिवजी कहते हैं जो रामद्रोही होगा उसे कभी भी मुक्ति के साथ-साथ ईश्वर के दर्शन नहीं हो सकते अर्थात शिव और राम एक दूसरे के आराध्य हैं l

संत श्री ने भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग है जिसकी कथा श्रवण कराते हुए कहा कि देवगिरि पर्वत के पास सुधर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। ब्राह्मण की पत्नी सुदेहा एक गांव में निवास करते थे। ब्राह्मण विद्वान धर्मिष्ट और भगवान भोलेनाथ के अनन्य भक्त थे किंतु उनके कोई संतान नहीं थी उनकी पत्नी ने बार-बार निवेदन करके उनकी शादी उनकी छोटी बहन घुशमी से करवा दिया।

घुशमी भी पति की तरह शिव भक्त थी रोज सो पथिक शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा अर्चना करके उनको सरोवर में रोज विसर्जित करती थीl

भोलेनाथ की कृपा से घुशमी के एक लड़का हुआ समय के साथ बड़ा हो गया उसका विवाह भी हो गयाl

अचानक बहन सुदेहा के मन में जलन होने लगी और जलन इतनी अधिक हो गई की एक दिन उसने छोटी बहन के पुत्र की हत्या करके उसकी लाश के टुकड़े करके सरोवर में प्रवाहित कर दिए सुबह घर में कोलाहल मच गया चारों तरफ खून ही खून बिखरा हुआ था लाश गायब थी l

फिर भी पंडित जी ने और उनकी पत्नी ने भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना स्तुति प्रतिदिन की तरह प्रारंभ की वही सो पार्थिव लिंग बनाकर प्रवाहित किया और भोलेनाथ से कहा भोलेनाथ मेरे बच्चे को मुझे लौटा दो ईश्वर भोलेनाथ की ऐसी कृपा हुई तालाब के अंदर से वह बालक लौट कर आ गया और उसको गले लगाया भगवान ने कहा बोल क्या वरदान चाहिए उसने कहा मेरी बहन ने जो अपराध किया उसके लिए इस क्षमा करो और इसके मन से सभी दुर्भावनाएं हरण करो और आज से आप ज्योतिर्लिंग स्वरूप में घुश्मेश्वर के नाम से विश्व में विख्यात होंगेl कथा के माध्यम से संत श्री ने कहा कि उदार मन और क्षमाशील  पर सदैव भगवान कि कृपा रहती है और जो दुसरे का बुरा सोचता वह पछतावे या सजा का भागीदार बनता है।

भगवान ने तथास्तु कहा और अंतर ध्यान हो गए इस प्रकार से इस ज्योतिर्लिंग की पूजा अर्चना करने से कोटि-कोटि जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैंl

संत श्री ने आज मनुष्य जीवन की कीमत के विषय में बहुत अच्छा दृष्टांत दियाl

संत श्री ने कहा एक राजा शिकार करने के लिए अपनी सेवा सहित वन में गए किंतु राजा का घोड़ा तेज दौड़ता था इसलिए वह आगे निकल गया और बाकी सब पीछे छूट गए राजा को पानी की प्यास लगी थी वह पानी ढूंढते ढूंढते एक गांव में पहुंच गए और प्यासके कारण वहां पर गिर गए पास खड़े व्यक्ति ने यह दशा देखी और पानी राजा को पिलाया और उसके ऊपर पानी भी डाला राजा होश में आ गया राजा ने उसे व्यक्ति का धन्यवाद देते हुए कहा तुम कोई भी चीज मांग लो तो उसे व्यक्ति ने कहा मुझे अभी कोई आवश्यकता नहीं है राजा ने उसे तांबे केपत्र पर यह लिखकर दे दिया कि तुम कभी भी दरबार में आकर कुछ भी मांग सकते हो राजा चला गया उस व्यक्ति ने उसे ताम्र पत्र को दीवाल पर लड़का दिया चार-पांच साल बाद देव योग से बारिश नहीं हुई अन्न का अकाल पड़ गया चारों ओर भूख भरी होने लगी उस व्यक्ति के पास भी सभी राशन खत्म हो गया था और पास में कुछ भी नहीं था अचानक उसकी नजर राजा ने जो पत्र दिया था उसपर नजरपड़ीl

वह उसे लेकर राजा के दरबार में गया राजा ने उसे खुश होकर बहुत बड़ा चंदन का बगीचा दे दिया उस व्यक्ति ने जिसका काम जंगल से लकड़ी काटकर कोयला बनाकर बेचना था उसने भी उस चंदन के बगीचे के एक-एक वृक्ष को काटकर उन्हें जलाकर कोयला बनाकर बेच दिया फिर वह राजा के दरबार में गया उसने कहा मेरे पास कुछ भी नहीं है राजा ने बड़े अच्छे से कहा मैंने तुझे जो बगीचा दिया था वह चंदन का था उसका तूने क्या किया उसने सारा वृत्तांत राजा को बताया राजा ने कहा जंगल चल मेरे साथ उसके बाद राजा नहीं उसे व्यक्ति से कहा कोई लकड़ी का टुकड़ा हो तो लो वह लकड़ी का टुकड़ा लाया राजा ने कहा इसे बाजार में ले जाकर कीमत करवाओ बाजार में कीमत करवाने गया तो उसकी कीमत हजारों रुपए में लगी वह वापस आया हसिर पीटने लगा की मैंने तुझे करोड़ों रुपए का बगीचा दिया था तूने ऐसे जलाकर कोयले के भाव बेच दिया l

यह कहानी हमारे जीवन की है हम भी इस चंदन रूपी सांसों को दुनिया के काम क्रोध मद लभ, मो ह मैं अपनी सांसों को खो रहे हैं l यह बचा हुआ जीवन ही अमूल्य है यही से जीवन को सुधार लो अपना मन राम में लगाओ कृष्ण में लगाओ महादेव में लगाओ ईश्वर के जितने भी स्वरूप है सिर्फ रूप अलग-अलग है ईश्वर एक है इसलिए जो बचा है इसका लाभ उठाओ पुण्य करो ईश्वर में आ सकती करोl

संत श्री ने हमारे भारतीय संस्कारों के विलुप्त होने के विषय में भी अपनी चिंता व्यक्त की संत श्री ने कहा कि मनुष्य के ऊपर तीन रन होते हैं पितृ, ऋषि, और गुरु इनका कर्ज जीव के ऊपर जब तक जीवित रहता है रहता हैl

पहले की परंपराओं के ऊपर आपने कहा माताएं बहने अन्नपूर्णा होती थी परिवार में 25 व्यक्ति भी होते तो दोबारा रोटी के लिए आता नहीं गलाना पड़ताl पहले आटा गलाने के बाद उसके ऊपर गणेश जी बिठाए जाते थेl

प्रथम रोटी गाय की अंतिम रोटी कुत्ते की और पांच निवाला रोटी बनते ही अग्नि देव को समर्पित की जाती थी जो हमारे पितरों को सीधे अग्नि देव के माध्यम से पहुंच जाती थी और भी कई परंपराएं चली आ रही थी l 40 50 वर्षों में हम धीरे-धीरे सब कुछ भूलते जा रहे हैं ना घर में चूल्हे रहे ना घर की माता बहने रही जो संस्कारों को जीवित रख सके आज तो स्थिति यह है चार जनों की रोटी बनाने में तीन बार आटा गलना पड़ता है अब अग्नि देव को पितरों को भी हम प्रतिदिन अग्नि में हवन नहीं कर पाते क्योंकि आधुनिक समय में गैस के चूल्हे हो गए हैं

हम अपनी परंपराओं से हमारी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं इसी कारण हम धर्म से भी दूर हो रहे हैंl

बड़ी सुंदर बात संत श्री ने कल बताई की एक बहन अपने लड़के को लेकर रामद्वारा आई उसके हाथ में बहुत पुरानी रामायण की पुस्तक थी जो कई जगह से फटी हुई थी संत श्री से कहा मैं आपको यह पुस्तक भेंट करना चाहती हूं क्योंकि अब इसका मेरे घर में कोई काम नहीं रहा मेरी सासू मां इसको पढ़ती थी अब वह इस दुनिया में नहीं हैl

संत श्री को बड़ा आश्चर्य हुआ की इस प्रकार की पुस्तक किसी संत को भेंट करना किसी भी दृष्टि से अनुचित नहीं है दूसरी बात इतने बड़े घर में छोटी सी पुस्तक रखने की जगह नहीं है 24 घंटे में 5 मिनट भी बहु को रामायण पढ़ने की पुस्तक फुर्सत नहीं है तो हम कैसे धर्म के नजदीक धर्म के विषय में समझ पाएंगेl

श्रीमद् भागवत गीता और रामायण हमारी आत्मा है एक हमें कर्मशील बनती है एक हमें जीवन जीने का तारिक समझता है मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का जीवन चरित्र आज हम सबके लिए प्रासंगिक है उनके त्याग बलिदान धैर्य के साथ-साथ उन्होंने हमें अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए धर्म के लिए लड़ने के लिए सिखाया।

आज 2,4 घंटे ब्यूटी पार्लर मोबाइल हम चलाते हैं किंतु हमें 10 मिनट प्रभु का नाम पूजन मंदिर जाने का समय नहीं है तो हम अपने बच्चों को क्या संस्कार दे रहे हैं आज के समय जो शांति है यह सब उसी का कारण हैl कई दृष्टांत उदाहरण अपने दिएl

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