सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कॉर्पोरेट हितों के हवाले करना देशहित के विपरीत – किशोर जेवरिया
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक कॉर्पोरेट हितों के हवाले करना देशहित के विपरीत – किशोर जेवरिया
देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनामिक्स में दिये अपने भाषण में कहा कि बैंकों के निजीकरण से आम जनता को नुकसान नहीं होगा। वित्तमंत्री का यह कहना जनता को भ्रमित करने वाला और राष्ट्रहित के विपरीत है।
उक्त आशय का बयान जारी करते हुए युनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियन्स के नीमच जिला अध्यक्ष किशोर जेवरिया ने कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ही वह स्तंभ हैं जिन्होंने देश में समावेशन, सामाजिक न्याय आधारित ऋण प्रणाली और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दी। महामारी, आर्थिक मंदी और वैश्विक संकट के दौरान जब निजी बैंक जोखिम से पीछे हटे तब सार्वजनिक बैंक मजबूती से देश के साथ खडे रहे।
जेवरिया ने कहा कि अगर पूरी व्यवस्था निजी हाथों में होगी तो ऐसे समय में जनता की जमा राशि की सुरक्षा कौन करेगा। जब निजी क्षेत्र के बैंक जैसे यस बैक, लक्ष्मी विलास बैंक, ग्लोबल ट्रस्ट बैंक वित्तीय संकट में डूबे तब अंततः स्वयं सरकार ने संसद में एक जानकारी मं बताया कि पिछले दस वर्षो में बैंकों का 16.35 लाख करोड डूबा हुआ लोन राइट ऑफ कर दिया। इनमें से 12 लाख करोड का लोन माफ किया गया है। एक जानकारी के अनुसार इसमें से 80 प्रतिशत केवल कॉर्पोरेट घरानों का लोन है जबकि बदनाम छोटे ऋण धारकों को किय जाता है। बैंक केवल व्यवसायिक संस्थान नहीं हैं बल्कि ये कल्याणकारी संस्थान हैं, जो देश के आर्थिक ताने बाने को एकजुट रखते हैं।
जेवरिया ने कहा कि यह नहीं भूलना चाहिए कि बैंक राष्ट्रीयकरण के बाद ही किसानों, मजदूरों, महिलाओं, लघु व्यवसायों, कमजोर वर्गों और ग्रामीण नागरिकों तक पहुंची। प्राथमिकता क्षेत्र ऋण, कृषि ऋण, स्व सहायता समूह, छात्र ऋण, एमएसएमई जैसी कई योजनाएं सार्वजनिक बैंकों की वजह से ही सफल हो पाई हैं। इसलिए सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण नहीं बल्कि निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाना चाहिए।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को निजीकरण नहीं पारदर्शी प्रशासनिक प्रणाली, बेहतर संचालन, पूंजी निवेश, तकनीकी सुधार और मानव संसाधन विकास के जरिए पेशेवर क्षेत्र में सशक्त बनाया जा सकता है। जनता का पैसा जनता के कन्ट्रोल में होना चाहिए न कि कॉर्पोरेट घरानां के। हम किसानों, मजदूरों, पेंशनरों, छोटे व्यापारियों और आम आदमी के साथ हैं। बैंक जनता की सम्पत्ति है इन्हें निजी मुनाफे के लिये नहीं बेचा जा सकता। सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की जवाबदेही संसद, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (केग), और जनता के प्रति है, जबकि निजी बैंक केवल शेयरधारकों के प्रति जवाबदेह होते हैं। कई बार ये शेयरधारक भी अपने को ठगा महसूस करते हैं। जेवरिया ने कहा कि केन्द्र सरकार यह स्पश्ट रूप से कहे कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण नहीं किया जाएगा।



