आलेख/ विचारनीमचमध्यप्रदेश

आजकल बीमार उस बाजार का हिस्सा बन गया

आजकल बीमार उस बाजार का हिस्सा बन गया

डॉक्टर, अस्पताल और दवा बाजार न केवल बडा मुनाफा कमाते हैं बल्कि मरीज को आर्थिक रूप से खोखला कर देते

– किशोर जेवरिया

आजकल बीमार उस बाजार का हिस्सा बन गया है जिस बाजार से डॉक्टर, अस्पताल और दवा बाजार न केवल बडा मुनाफा कमाते हैं बल्कि कई बीमारियों में मरीज को आर्थिक रूप से खोखला कर देते हैं। बीमार आप होते हैं, इलाज भी आपका होता है मगर इलाज मरीज की बीमारी के साथ उसकी जेब देखकर भी होता है।
आपने देखा होगा कि कई बडे अस्पतालों में तो मरीज के दाखिले के समय बीमारी के बारे में कम और बीमा किस कम्पनी का है, आयुष्मान कार्ड है या नहीं उसकी जानकारी पहले ली जाती है। वहां इसी से तय होता है कि मरीज का इलाज किस लेवल से कितने दिन तक भर्ती करके करना है।
इसके साथ ही जांच केन्द्रों पर जहां मरीज के खून, पेशाब, सिटी स्केन, एम.आर.आई., सोनोग्राफी, वगैरह वगैरह की कई जांचें जो कई मामलों में देखा गया है कि अनावश्यक और बताई गई लेब पर ही करवाना होती है। अन्य लेब की जांच पर डॉक्टर का भरोसा क्यों नहीं होता कहने की आवश्यकता नहीं है।
सवाल यह है कि सरकारी अस्पतालों में निजी चिकित्सालयों और नर्सिंग होम जैसी सुविधा क्यों नहीं मिलती ? क्योंकि सरकार द्वारा सरकारी अस्पतालों में इन सुविधाओं के लिये पर्याप्त डॉक्टर, स्टाफ, वार्ड और उपकरण उपलब्ध नहीं करवाती।  वह इसलिये कि कि सरकार स्वास्थ्य सेवाओं के लिये पर्याप्त बजट प्रदान नहीं करती। सरकार के बजट का बडा हिस्सा फ्री की योजनाओं में पैसा बांटने में खर्च हो जाता है। सरकार फ्री की योजनाओं में कर्ज लेकर भी पैसा बांटने में इसलिये ज्यादा रूचि रखती है क्योंकि इससे उसे वोट मिलते हैं और वोट से सरकार बनती है और जो बजट आता है उसमें भ्रष्टाचार नहीं होता इस बात का दावा नही किया जा सकता।
फिर से आते हैं निजी अस्पतालों की ओर। आपने देखा होगा कि आजकल बडे छोटे सभी अस्पतालों में स्वयं के अथवा ठेके के मेडिकल स्टोर होते हैं। ठेका वो नहीं जहां थके हारे गम के मारों की दवा मिलती है। ये मेडिकल स्टोर जहां डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवा मिलती है बल्कि यह कहूं कि उस अस्पताल के डॉक्टर द्वारा लिखी गई दवा केवल इसी मेडिकल स्टोर पर ही मिलती है। बाहर के मेडिकल स्टोर पर उस नाम की दवा अव्वल तो मिलेगी नहीं अगर किसी अन्य कम्पनी की उसी साल्ट कम्पोजिशन की दवा आप ले भी आए तो डॉक्टर कहेंगे कि जो दवा लिखी है वह लाओ अन्य कम्पनी की दवा रिएक्शन या कोई साईड इफेक्ट हो सकता है। मरता क्या न करता वहीं से दवा लाता है।
अब बात करें दवाईयों की तो दवाईयां दो प्रकार की आती है जेनेरिक और एथिकल। दोनों दवाईयों का साल्ट कम्पोनेन्ट और कम्पोजिशन में कोई अन्तर नहीं होने के बाद भी इनकी कीमतों में भारी अन्तर होता है। इसके मुख्य कारण मुनाफे के अतिरिक्त अन्य खर्च भी होते हैं। ब्राण्डेड कम्पनियों की दवाईयों के विकसित और विपणन में खर्च होता है। इसके अलावा वह इसका पेटेन्ट करवाती हैं। दवा के प्रचार प्रसार का खर्चा, डॉक्टर और अस्पतालों को दवा लिखने के लिये प्रोत्साहन राशि, उपहार, देश विदेश की सैर और इसके पेशेवर विकास पर भी खर्च होता है। दवा विक्रेताओं को भी विभिन्न योजनाओं के माध्यम से दवा बेचने के लिये प्रोत्साहित किया जाता है। इसके पेटेन्ट की अवधि 20 वर्ष होती है। पेटेन्ट अवधि के पश्चात कोई भी कम्पनी उस साल्ट कम्पोनेन्ट व कम्पोजिशन की दवा बना सकती है। जाहिर है कि उसके लिये इन कम्पनियों को उतने रूपये खर्च नहीं करने पडते इसलिये जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं।
सवाल यह है कि क्या जेनेरिक दवाएं भी उतनी ही प्रभावशील होती हैं। डॉक्टर यह कहकर जेनेरिक दवाएं नहीं लिखते क्योंकि उन्हें इसकी गुणवत्ता और प्रभावशील पर भरोसा कम है उसका एक महत्वपूर्ण कारण वह भी है जो उपर ब्राण्डेड कम्पनियों के खर्च में बताया गया है। इसके अतिरिक्त जेनेरिक दवाईयों में सभी आवश्यक दवाएॅं उपलब्ध नहीं होती।
सरकार का कहना है कि डॉक्टर जेनेरिक दवाएं लिखें इसके लिए केन्द्र सरकार ने 2022 में एक आदेश भी जारी किया है। सरकार ने जगह जगह पीएम जन औषधि केन्द्र भी खोले हैं जहां जेनेरिक दवाएं मिलती हैं जो ब्रांडेड कम्पनियों की दवाओं से 30 से लगाकर 60-70 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं। ये दवाएं भी उसी साल्ट कम्पोनेट और कम्पोजिशन की होती हैं जो ब्राण्डेड दवाईयों की होती है। दुनिया की 20 प्रतिशत जेनेरिक दवाएं भारत में बनती और निर्यात होती हैं। अमेरिका में तो 90 प्रतिशत तक जेनेरिक दवाएं ही बिकती हैं।
इसकी पहचान कैसे हो यह सबसे बडा सवाल है। इसकी पहचान दवा विक्रेता से पूछकर, पेकेजिंग से, ड्रग इन्फॉर्मेशन लीफलेट से की जा सकती है। मगर यह इतना आसान नहीं है। सभी यह कर पायें यह मुमकिन नहीं है। सरकार को साल्ट कम्पोनेन्ट और कम्पोजिशन की दवाओं की पहचान के लिये ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे इसकी पहचान आसान हो।

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