आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश

आज पत्रकारीता के आदर्श स्व.गणेश शंकर विद्यार्थी जयंती पर्व मीडिया के लिए महापर्व

विद्यार्थी की अपनी लेखनी से सच को सामने लाना ही होगा
देशभक्त वाली पत्रकारीता के मिशन को गातिमान रखना ही आज की सच्ची पत्रकारीता के लिए विद्यार्थी का नाम आज भी सम्मान पुर्वक लिया जाता है।

(आलेख – राधेश्याम मारू)

प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार और राजनेता गणेश शंकर विद्यार्थी की आज 26 अक्टुबंर को जयंती है। पत्रकारीता के आदर्श स्व.गणेश शंकर विद्यार्थी की जयंती पर्व पर आज आवश्यकता है सामुहिक शपथ की, देश के मीडिया जगत को अत्याचारी के विरूद्ध अपनी लेखनी से सच को सामने लाना ही होगा, यह संकल्प एकमत से लेना ही होगा अन्यथा वो दिन दुर नही की पत्रकारीता एक मिशन की जगह व्यवसाय बनकर रह जाऐगी। क्रांतिकारी पत्रकारीता को पुनः दंबग शेली मे आना ही होगा। स्वर्गीय विद्यार्थीजी की पत्रकारीता को बरकरार रखते हुए हमे देशभक्त वाली पत्रकारीता के मिशन को गातिमान रखना ही आज की सच्ची पत्रकारीता होगी। सच्ची पत्रकारीता मे गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम आज भी सम्मान पुर्वक लिया जाता है।

गणेश शंकर विद्यार्थी को हिंदी पत्रकारिता का प्रमुख स्तंभ माना जाता है, वे भारतीय इतिहास के एक संवेदनशील पत्रकार होने के साथ ही सच्चे देशभक्त समाजसेवी, स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय कार्यकर्ता भी थे, उनकी लेखनी की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि उनदिनों उनकी पत्रकारिता ने ब्रिटिश शासन की नींद उड़ा दी थी। गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के हाथगांव के एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम मुंशी जयनारायण था जोकि एक स्कूल में हेडमास्टर थे, उन्होंने इलाहबाद के कायस्थ पाठशाला कॉलेज में आगे की पढ़ाई की, और विद्यार्थी काल से ही पत्रकारीता की शुरूआत कर पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी कहलाए। यहां इन्होंने कर्मयोगी और उर्दू ‘स्वराज’ अखबार से पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा था। बाद में ‘सरस्वती’ में सहायक संपादक के बतौर काम किया। दिसंबर, 1912 में वे ‘अभ्युदय’ में चले गए, जहां 23 सितंबर, 1913 तक कार्यरत रहे। कानपुर के फील खाना मोहाल में प्रताप प्रेस की नींव डाली 1913 को साप्ताहिक प्रताप का पहला अंक निकाला।

पत्रकारिता के दौरान इन्होंने अपना सर्वस्व समाज सेवा में लगा दिया। अपनी लेखनी के माध्यम से उन्होंने लोगों में राष्ट्रीय चेतना जागृत की। उन्होंने असहयोग आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख व्यक्ति थे। उन्हे जेल भी जाना पढ़ा। यहां तक कि अपने प्राणों की आहुति तक दे दी। 23 मार्च, 1931 को सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी हुई थी। अगली सुबह 24 मार्च को कानपुर हिंदू-मुस्लिम दंगे की आग में जल रहा था। ऐसे विकराल समय में विद्याथीर्जी लोगों को शांत करने और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के लिए सक्रिय हुए। 25 मार्च, 1931 को कानपुर के चौबे गोला इलाके में उनकी हत्या कर दी गई। उन्होंने पत्रकारिता जगत में क्रांति ला दी थी। कितने ही नए-नए शब्दों की खोजकर समाज को प्रदान किया। इस विशेषता से ही उन्हें एक अलग पहचान मिली। बीसवीं शताब्दी के सर्वाधिक सक्रिय, निर्भीक और जनप्रिय पत्रकार के रूप में उभर कर सामने आए। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान पत्रकारिता उनका मिशन बन गई। भारतीय पत्रकारीता मे गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम आज भी सम्मान पुर्वक लिया जाता है। आलेख संकलनकर्ता लेखक-राधेश्याम मारू पत्रकार होकर सामाजिक कार्यकता है।

 

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