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अपराधी जनजाति कानून से विमुक्ति दिवस’ के अवसर पर-विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्द्ध घुमक्कड़ जातियों को चाहिए समाज का संबल

आज 31 अगस्त ‘—अपराधी जनजाति कानून से विमुक्ति दिवस’ के अवसर पर-विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्द्ध घुमक्कड़ जातियों को चाहिए समाज का संबल
ईसाई नहीं बनना था इसलिए चले गए थे जंगल
– रमेशचन्द्र चन्द्रे
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारत में विभिन्न जातियां गांव तथा कबीलों में निवास करती थी और अपना जीवन चलाती थी इसमें कुछ जातियां घुमंतू होकर अपनी कला एवं कारीगरी से वह कृषि उपकरण एवं सरिये, चिमटे ,कढ़ाई, तवे तथा भोजन बनाने के छोटे बड़े बर्तन एवं एक क्षेत्र होने वाली विशिष्ट उपज को दूसरे क्षेत्र में बेचने का काम यह घुमंतू जातियां करते हुए समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करती थी इसके अतिरिक्त गांव गांव शहर शहर में पहुंचकर उनकी आवश्यकता एवं मांग के अनुसार सामग्री का निर्माण करते थी और वह अपना सामान बैल गाड़ियों, ऊटों गधों एवं खच्चरों पर लाद लाद कर भारत के विभिन्न शहरों और गांव में अपना उत्पाद बेचते तथा अपना परिवार चलाते थे इसलिए इन्हें गारूडीये लोहार और बंजारे कहकर भी संबोधित किया जाता था
इसके अतिरिक्त वन उपज एवं औषधियां बेचने के लिए भी गोंड ,पारदी, मोगिया, भील आदि जातियां भी व्यवसाय करती थी इसमें से कुछ जातियां अर्ध घुमक्कड़ थी जो आधे समय व्यापार व्यवसाय के लिए घूमते थे और आधा समय वह अपने गांव में खेती-बाड़ी करके अपना जीवन व्यतीत करते थे जिसे अर्ध घुमक्कड़ जाति कहा गया ।
इसके अतिरिक्त वन उपज एवं औषधियां बेचने के लिए भी गोंड ,पारदी, मोगिया, भील आदि जातियां भी व्यवसाय करती थी इसमें से कुछ जातियां अर्ध घुमक्कड़ थी जो आधे समय व्यापार व्यवसाय के लिए घूमते थे और आधा समय वह अपने गांव में खेती-बाड़ी करके अपना जीवन व्यतीत करते थे जिसे अर्ध घुमक्कड़ जाति कहा गया ।
मुगल शासन के बाद जब अंग्रेजों का शासन आया तो इस प्रकार की जातियों पर उनका कोई विशेष ध्यान नहीं था अर्थात इस प्रकार की जातियां उनकी सूची में थी ही नहीं किंतु जब 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उक्त सभी जातियों ने हथियारबंद होकर अपनी भागीदारी दर्ज कराई तो स्वतंत्रता संग्राम में इन जातियों की भाग लेने की रिपोर्ट जब अंग्रेजों को मिलने लगी तो वह अचानक सतर्क हुए और उन्होंने इन क्षेत्रों में अपनी एजेंसियों से सर्वे करवाया और उनके खराब जीवन स्तर भुखमरी इत्यादि की रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद उनका जीवन स्तर सुधारने के बहाने से उन्हें लालच देकर अपने धर्म में मिलाने हेतु ईसाई मिशनरियों की स्थापना करना प्रारंभ किया ताकि इनका धर्म परिवर्तन कर इन्हें स्वतंत्रता संग्राम के लक्ष्य से भटकाया जा सके और इस हेतु धर्म परिवर्तन की गतिविधियों को तेज करने हेतु अनेक ईसाई मिशनरियों को स्कूल तथा अस्पताल खोलने के बहाने इनकी बस्तियों में स्थापित किया गया किंतु वनवासी जातियों ने इनके जाल में फंसना स्वीकार नहीं करके किसी भी कीमत पर धर्मांतरण स्वीकार नहीं किया बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में यह जातियां और अधिक संगठित शक्ति के साथ सक्रिय हो गई जिनका नेतृत्व बिरसा मुंडा और टंट्या भील जैसे अनेक राज्यों में अपने अपने स्तर पर अनेक लोगों ने किया। यह सब देख कर अंग्रेजों की नींद उड़ गई और उन्होंने सन1871 में इन जातियों के 193 कबीलों पर जन्मजात अपराधिक कानून लगाकर और एक खास अधिनियम के तहत 180 साल तक उन्हें घर और गांव में ही कैद करने आदेश सुनाया गया। इस आदेश के बाद विभिन्न जातियां गिरफ्तारी के डर से जंगल जंगल भटकती रही और अपना पेट पालने के लिए कभी-कभी चोरी डाके और राहजनी की घटनाओं को भी अंजाम देने लगे और तब ही से यह जातियां सुदूर जंगलों में पहाड़ियों में निवास करती है क्योंकि अंग्रेजों ने इनके घर गांव इत्यादि सब उजाड़ दिए थे इस प्रकार 1871 से 1950 तक यह संपूर्ण जातियां अपराधिक जातियों के रूप में ही जानी जाती रही किंतु भारत की स्वतंत्रता के बाद 31 अगस्त 1951 को इन जातियों पर अपराधिक कानून को पूर्णता हटा दिया गया तथा इन्हें विमुक्त जातियों की श्रेणी में रखा गया तथा इन जातियों को गांव में शहरों में समूह बनाकर रहने की अनुमति मिली वर्तमान में पूरे भारत में लगभग 666 जाति इस कानून के तहत विमुक्त जाति के नाम से जानी जाती है।
इस लेख के माध्यम से जन सामान्य को यह बात बताना चाहते हैं कि जिन जातियों को स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों से संघर्ष करने के कारण संपूर्ण जाति एवं उनके समाज को अंग्रेजों ने अपराधी घोषित कर दिया था जो आज भी समाज की नजर में अपराधी मानी जाती है इसके साथ ही भारत की पुलिस उसी पैटर्न पर इन जातियों के लोगों को परेशान करती है जबकि 31 अगस्त 1951 को भारत सरकार ने उक्त कानून से उन्हें विमुक्त कर दिया है।
यद्यपि आज इन क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए सरकारे प्रयत्नशील हो रही है किंतु समाज जन इनकी दुरावस्था से एकदम अनभिज्ञ हैं आज भी सरकार द्वारा मान्यता देने के बाद भी समाज इन जातियों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता अतः ऐसी अनेक जातियां जो अपने अपने क्षेत्र में निवास करती है जब तक समाज, सामाजिक संगठन, और धार्मिक संस्थानों और साधु सन्यासी सहित कथावाचको का सहयोग नहीं मिलेगा तब तक केवल सरकार के भरोसे इनका उत्थान संभव नहीं है।
सरकार के जनजाति गौरव अभियान के तहत विभिन्न संगठनों को इस दिशा में वैचारिक अनुष्ठान कर संपूर्ण समाज को उक्त जातियों के इतिहास की जानकारी देना चाहिए।
यद्यपि आज इन क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए सरकारे प्रयत्नशील हो रही है किंतु समाज जन इनकी दुरावस्था से एकदम अनभिज्ञ हैं आज भी सरकार द्वारा मान्यता देने के बाद भी समाज इन जातियों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखता अतः ऐसी अनेक जातियां जो अपने अपने क्षेत्र में निवास करती है जब तक समाज, सामाजिक संगठन, और धार्मिक संस्थानों और साधु सन्यासी सहित कथावाचको का सहयोग नहीं मिलेगा तब तक केवल सरकार के भरोसे इनका उत्थान संभव नहीं है।
सरकार के जनजाति गौरव अभियान के तहत विभिन्न संगठनों को इस दिशा में वैचारिक अनुष्ठान कर संपूर्ण समाज को उक्त जातियों के इतिहास की जानकारी देना चाहिए।
इनबॉक्स में –
अंग्रेजी शासन के दौरान घुमक्कड़ और अर्ध घुमक्कड़ तथा वनवासी जातियों ने 1857 के संग्राम में सशस्त्र भागीदारी की थी इससे क्रोधित होकर अंग्रेजी सरकार ने सन 1 8 71 में 193 भारतीय कबीलो तथा उनसे जुड़ी जातियों को घर और गांव में ही कैद रखने का आदेश सुनाया था जिससे गिरफ्तारी के डर के कारण अनेक जातियां जंगलों और पहाड़ियों में भटकती रही भारत स्वतंत्र होने के बाद इस कानून को 31 अगस्त 1951 को रद्द कर भारत की 666 जातियों को विमुक्त जाति घोषित किया है!