विभाजन नीति’ पर गरमाया विवाद, राजस्व अधिकारियों में असंतोष की लहर

विभाजन नीति’ पर गरमाया विवाद, राजस्व अधिकारियों में असंतोष की लहर
मंदसौर। राजस्व प्रशासन में हाल ही में लागू की गई न्यायिक और गैर-न्यायिक कार्यों के विभाजन की नीति अब एक बड़े विवाद का रूप लेती जा रही है इस व्यवस्था के खिलाफ प्रदेशभर के राजस्व अधिकारियों में असंतोष गहराता जा रहा है प्रशासनिक सुधार की आड़ में लाए गए इस बदलाव को एकतरफा, बिना संवाद और अव्यवस्थित योजना बताया जा रहा है। क्या है विवाद की जड़? राजस्व अधिकारियों के न्यायिक अधिकारों को समाप्त कर उन्हें केवल कार्यपालक दंडाधिकारी की भूमिका में सीमित कर दिया गया है। इसके तहत वे सीमांकन, नामांतरण, उत्तराधिकार, ऋण पुस्तिका और कोर्ट प्रकरण जैसे कार्यों से अलग कर दिए गए हैं। अधिकारियों का कहना है कि यह फैसला न सिर्फ प्रशासनिक तंत्र को तोड़ता है, बल्कि जनता को मिलने वाली न्यायिक राहत को भी पंगु बना देगा। संवर्ग ने फिर जताया विरोध
पूर्व में जब यह योजना 12 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लागू की गई थी, तब विरोध के बाद शासन ने इसे सीमित रखने का आश्वासन दिया था। लेकिन अब यह योजना मंदसौर सहित अन्य जिलों में भी चुपचाप लागू कर दी गई है, जिससे राजस्व संवर्ग को स्वयं को ठगा महसूस हो रहा है। नतीजतन, एक बार फिर आंदोलन की चेतावनी दी गई है।प्रभाव आम जनता पर भी पड़ेगा।जानकारों के मुताबिक, इस नई व्यवस्था के चलते हजारों प्रकरण लंबित हो सकते हैं। सीमांकन, ऋण पुस्तिका, नामांतरण, उत्तराधिकार जैसे कार्य रुक सकते हैं। राजस्व न्यायालयों में प्रकरणों की सुनवाई बाधित हो सकती है, जिससे ग्रामीण और शहरी जनता को लंबा इंतजार करना पड़ेगा ।नीति- निर्धारकों से उठे सवाल क्या इस योजना से पहले कोई फील्ड स्टडी की गई थी?क्यों संवर्ग से संवाद नहीं किया गया ? क्या यह राजस्व प्रणाली को निजीकरण की ओर धकेलने की तैयारी है? क्या यह निर्णय प्रशासनिक दक्षता बढ़ाता है या स्थानीय प्रशासन को कमजोर करता है?सिर्फ सुविधा नहीं, गरिमा की लड़ाई राजस्व अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि यह आंदोलन किसी सुविधा या लाभ के लिए नहीं बल्कि व्यवस्था की गरिमा और न्यायिक संतुलन की रक्षा के लिए है। यदि शासन समय रहते संवाद की पहल नहीं करता, तो यह असंतोष एक व्यापक प्रशासनिक संकट में बदल सकता है।