व्यक्ति सांसारिक मोह माया में हमेशा फंसा रहता है उसे अपने लिए क्या करना है यह बात समझ में नहीं -संत श्री दिव्येशराम जी महाराज

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व्यक्ति सांसारिक मोह माया में हमेशा फंसा रहता है उसे अपने लिए क्या करना है यह बात समझ में नहीं -संत श्री दिव्येशराम जी महाराज
“सच्चा संत पारसमणी से कम नहीं उक्त उद्बोधन संत श्री दिव्येशराम जी महाराज ने शामगढ़ में आयोजित अपने चातुर्मास के दौरान कहें
संत श्री ने कहा कि जिस प्रकार से पारसमणी के संपर्क में आने से लोहा सोना बन जाता है अर्थात उसके जो गुण है वह बदल जाते हैं कठोरता रंग स्वभाव यह सब सिर्फ संपर्क में आने मात्र से बदल जाते हैंlमहाराज श्री ने कहा की जीव साधारण लोहे के समान हैं इसकी कीमत बिना संत के सद्गुरु के संपर्क में आने के बाद बढ़ती हैl
बड़ी ओजस्वी वाणी से संत श्री ने कहा जो लोहा 25-50 रुपए किलो में बिकता है यदि वही पारसमणी के संपर्क में आ जाता है तो उसकी कीमत हजारों गुना लाखों गुना बढ़ जाती हैlयही बात संसार के जीव अर्थात मनुष्य के ऊपर भी लागू होती हैl
व्यक्ति सांसारिक मोह माया में हमेशा फंसा रहता है उसे अपने लिए क्या करना है अपने जीवन में उसे मोक्ष कैसे प्राप्त होगा यह बात समझ में नहीं आती हैlअपना अमूल्य जीवन सांसारिक वस्तुओं में खर्च कर देता है किंतु जीव यदि वास्तव में मोक्ष चाहता है तो उसे गुरु संत के पास जाना पड़ेगा गुरु के संपर्क में आना पड़ेगा तभी उसका स्वभाव रंग रूप संस्कार कठोरता सब बदल जाएगी और वह अमूल्य हो जाएगा इस विषय में महाराज श्री ने महर्षि वाल्मीकि का उदाहरण दिया
बालिया भील जो संघन जंगल में डाकू था वहां आने जाने वाले हर राहगीर को लूटकर हत्या कर देता धन हरण कर लेता और अपने परिवार का पालन करता कई वर्षों तक वह या कार्य करता रहा वह इतना कुख्यात हो गया कि वहां से गुजरने में व्यक्ति डरता थाl
जब भाग्य में संत का मिलन हो और जीव का उद्धार होना हो तो प्रभु जीवन में ऐसा प्रसंग उत्पन्न कर देते हैं कि व्यक्ति अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर पहुंच जाता है l
इस जंगल से सप्त ऋषि मंडल का गुजरा हुआ किंतु वहां लोगों ने संत से कहा आप इधर से नहीं जाइए यहां डाकू है लूट लेंगे किंतु संत का स्वभाव हमेशा जीव का कल्याण करने का होता है इसलिए उन्होंने निश्चय किया हम उसी रास्ते से जाएंगे और वह वहां से गुजरे बलिया भील ने उनको देख लिया और रोक कर कहा ,कहां जा रहे हो तुम्हारे पास क्या है संत का स्वभाव बड़ा निर्मल सरल सहज होता है lऋषियों ने कहा हमारे पास कुछ भी नहीं है यह वस्त्र कमंडल और माला है यदि यह चाहिए तो तुम ले सकते हो
डाकू ने विचार किया इनके पास कोई धन संपत्ति नहीं है कमंडल वस्त्र और माला मेरे कोई काम की नहीं हैमहर्षि ने कहा तुम लोगों के साथ यह लूटपाट क्यों करते होडाकू ने कहा मैं परिवार को पालने के लिए यह सब करता हूं महर्षि ने कहा तुमने कभी परिवार से पूछा कि तुम जिस प्रकार से या धन दौलत घर पर ला रहे हो कैसे ला रहे हो और इन कर्मों की सजा के भागीदार परिवार वालेवाले भी होंगे? डाकू के मन में एकाएक परिवर्तन आया उसने कहा मैंने कभी नहीं पूछा महर्षि ने कहा जो पूछ कर आओ तब तक हम यही आपका इंतजार करेंगे बलिया भील दौड़ता हुआ घर पर गया घर वालों से सारी बातें कहीं और पूछा क्या मेरे कर्मों में तुम भी हिस्सेदार रहोगे पूरे परिवार के सदस्यों ने एक स्वर में कहा हम सिर्फ तुम्हारी संपत्ति धन दौलत में हिस्सेदार हैं तुम्हारे कर्मों में नहीं डाकू का हृदय एकदम परिवर्तित हो गया तोड़ता हुआ ऋषि मंडल की तरफ गया सारी बात बताई और दंडवत प्रणाम करके रोने लगाl आप मेरी मुक्ति कैसे हो क्योंकि मैं तो घोर पापी हूं कितने ही लोगों की हत्या लूट पाठ मैंने की है मेरा उद्धार कैसे होगा संत स्वभाव बड़ा निर्मल सहज तथा हर जीव का कल्याण हो यह भाव रहता है
महर्षि ने कहा यदि तुम्हें इन पापों से मुक्ति चाहिए तो राम का नाम बोलो डाकू के पाप इतने थे कि उसके मुख से राम का नाम नहीं लिया गया बार-बार कोशिश करने पर वह मरा-मरा ही बोल पायाl ऋषि समुदाय ने कहा यही बोल मरा शब्द की का मंत्र देकर सप्त ऋषि अपने मार्ग से गुजर गए डाकू के मन में इतनी लगन लगी दिन रात मारा मारा मारा मारा बोलता रहा धीरे-धीरे मरा राम का उच्चारण होने लगा उसकी मां निर्मल हो गया और वह डाकू से भागवत नाम के प्रभाव से संतो के आशीर्वाद से सप्त ऋषि की कृपा से ब्रह्म ऋषि बन गया और भगवान राम के जन्म से पहले रामायण की रचना उन्होंने की संत का आशीर्वाद और भागवत नाम कभी निष्फल नहीं होते इसी प्रकार संत श्री ने अपने मुखारविंद से मानव जीवन कैसा होना चाहिए इस पर भी प्रकाश डाला
उन्होंने कहा कि मनुष्य की रचना ब्रह्मा जी ने सबसे आखिर में की 83 लाख 99 999 जीवन की रचना करने के बाद आखिर में मनुष्य की रचना की मनुष्य की रचना प्रभु ने बड़ी सोच समझकर तथा मनुष्य जीवन ही मुक्ति का मार्ग अपना सकता है इसलिए इस योनि में व्यक्ति को कर्म अच्छे करना चाहिए संतों का सम्मान आधार के साथ-साथ संस्कार भी होना चाहिए
संत श्री ने कहा हर योनि में आपको सब कुछ मिलेगा सिर्फ बुद्धि और मुक्ति का मार्ग प्राप्त करने का ज्ञान नहीं प्राप्त होगा ईश्वर के यहां जाने का रास्ता मनुष्य योनि से होकर ही गुजरता है इसलिए मनुष्य जीवन कोई साधारण जीवन नहीं है हमने 84 लाख योनियों में सबसे सर्वश्रेष्ठ यानी प्राप्त की है अपने इस अमूल्य जीवन का महत्व हर जीव को समझना चाहिए और इस भवसागर से कैसे पर हो कैसे यहां आना-जाना छूटे किस प्रकार से हम प्रभु के चरणों में निवास करें यह सब रास्ते ज्ञान संत के आशीर्वाद से उनके बताए हुए मार्ग से प्राप्त होते हैंl
” कुवा एक है पनिहारी अनेक बर्तन अनेक है अपनी एक”
इस संसार में जितने धर्म संप्रदाय पथ जाति यह सब पनिहारी है अर्थात जीव का कल्याण चाहने वाले हैं बर्तन अनेक अर्थात आपको मार्ग बताने वाले संत महात्मा ऋषि महर्षि कोई भी हो सकता है किंतु अंतिम लक्ष्य प्रभु मिलन ही होता है और सबके पास जो पानी है जो ज्ञान है वह एक ही है परमात्मा की प्राप्ति कैसे हो इसी का मार्ग सब बताते हैंl
इस प्रकार से और भी कई ज्ञानवर्धक बातें संत श्री के मुखारविंद से आज के प्रवचन में जीव के लिए कही गई एक-एक बात जीवन को नई दिशा प्रदान कर सकती है
रामस्नेही संप्रदाय के जो आचार्य हुए उनकी अनुभव वाणी के संबंध में भी आपने कई बातें बताई जो हर जीव के लिए मोक्ष का रास्ता बताती है।
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