आलेख/ विचारमंदसौरमध्यप्रदेश

नर्मदा मैया कि परिक्रमा मोक्ष, ज्ञान की प्राप्ति कष्ट व्याधियों से मुक्त कर आत्मा शरीर को आनंद की अनुभूति कराती है

नर्मदा मैया कि परिक्रमा मोक्ष, ज्ञान की प्राप्ति कष्ट व्याधियों से मुक्त कर आत्मा शरीर को आनंद की अनुभूति कराती है

एक ऐसी नदी हैं मां नर्मदा, जो कि विश्व में एकमात्र ऐसी नदी हैं जिनकी परिक्रमा की जाती है. कहा जाता है कि गंगा मैय्या में स्नान करने से पुण्य प्राप्त होता है लेकिन नर्मदा जी के दर्शन मात्र से ही पुण्य मिल जाता है।

मंहत जितेंद्र दास जी महाराज ने नर्मदा परिक्रमा यात्रा पूर्ण कर आगमन पर संस्कार दर्शन को यात्रा वृत्तांत और महत्व को लेकर बताया कि- हमारे शास्त्रों में नर्मदा नदी के बारे में वर्णन मिलता है कि जो मनुष्य प्रातः काल उठकर नर्मदा जी में स्नान व नाम जप करता है उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।इतना ही नहीं नर्मदा जी की इतनी महिमा है कि उनमें पाया जाने वाला कंकड़ पत्थर शंकर के समान माना जाता है। नर्मदा नदी मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा है, परंतु इसका अधिकतर भाग मध्यप्रदेश में ही बहता है। मध्यप्रदेश के तीर्थ स्थल अमरकंटक से इसका उद्गम होता है।लगभग 34 मंदिर हैं। यहां नर्मदा उद्गम कुंड है,जहां से नर्मदा प्रवाहमान होती है। मंदिर परिसरों में सूर्य, लक्ष्मी, शिव, गणेश, विष्णु आदि देवी-देवताओं के मंदिर है। समुद्रतल से अमरकंटक 3600 फीट की ऊंचाई पर स्थित अमरकंटक को नदियों की जननी कहा जाता है। यहां से पांच नदियों का उद्गम होता है जिसमें नर्मदा नदी, सोन नदी और जोहिला नदी प्रमुख है। तथा 41 सहायक नदियां हैं। और नेमावर नगर में इसका नाभि स्थल है। फिर ओंकारेश्वर होते हुए ये नदी गुजरात में प्रवेश करके खम्भात की खाड़ी में इसका विलय हो जाता है। नर्मदा नदी के तट पर कई प्राचीन तीर्थ और नगर हैं। हिन्दू पुराणों में इसे रेवा नदी कहते हैं। इसकी परिक्रमा का बहुत ही ज्यादा महत्व है। हर माह नर्मदा पंचक्रोशी यात्रा होती है और हर वर्ष नर्मदा की परिक्रमा होती है।नर्मदा के तट पर बहुत सारे तीर्थ स्थित है लेकिन अमरकंटक, मंडला (राजा सहस्रबाहु ने यही नर्मदा को रोका था), भेड़ा-घाट, होशंगाबाद (यहां प्राचीन नर्मदापुर नगर था), नेमावर, ॐकारेश्वर, मंडलेश्वर, महेश्वर, शुक्लेश्वर, बावन गजा, शूलपाणी, गरुड़ेश्वर, शुक्रतीर्थ, अंकतेश्वर, कर्नाली, चांदोद, शुकेश्वर, व्यासतीर्थ, अनसूयामाई तप स्थल, कंजेठा शकुंतला पुत्र भरत स्थल, सीनोर, अंगारेश्वर, धायड़ी कुंड और अंत में भृगु-कच्छ अथवा भृगु-तीर्थ (भडूच) और विमलेश्वर महादेव तीर्थ प्रमुख तीर्थ है। हमारे धर्म के अनुसार नर्मदा का जन्म भगवान शिव के पसीने से हुआ था. साथ ही बताया जाता है कि नर्मदा जी के तट पर लगभग 88 हजार तीर्थ मौजूद हैं. इसके साथ ही अगर कहीं भगवान शिव के मंदिर के पास नर्मदा जी प्रवाहित होती हों, तो वहां स्नान करने से एक लाख गंगा स्नान के बराबर फल मिलता है। महंत जी ने कहा कि नर्मदा मैया की परिक्रमा केवल यात्रा ही नहीं यह आस्था और श्रद्धा के साथ-साथ अपने शरीर में आध्यात्मिक और वैराग्य की साधना को जागृत करने के लिए भी की जाती है। नर्मदा मैया की परिक्रमा क्षेत्र के गांव तीर्थ नागरिकों को जोड़कर धर्म के सूत्र में बंधने का सांस्कृतिक संगम और सामाजिक संबंध कराती है। साथ यह परिक्रमा हमारे पंचभूत पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश पर्यावरण कि सुरक्षा करने का बोध कराती है तथा पाप क्षय और मोक्ष ,ज्ञान की प्राप्ति तथा शरीर को कष्ट व्याधियों से मुक्त आत्मा और शरीर के आनंद की अनुभूति का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

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