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3 महायज्ञों में से एक महायज्ञ है सोम यज्ञ, ऐसे महायज्ञ का दरश-परस स्पर्श एक नहीं करोड़ों जन्मों के पुण्य प्रताप से ही प्राप्त होता है

3 महायज्ञों में से एक महायज्ञ है सोम यज्ञ, ऐसे महायज्ञ का दरश-परस स्पर्श एक नहीं करोड़ों जन्मों के पुण्य प्रताप से ही प्राप्त होता है-बंशीलाल टांक
भारत की करोड़ों वर्ष प्राचीन आदि और अनादि संस्कृति से अनादिकाल अर्थात प्रथम युग सतयुग से यज्ञों का क्रम जारी रहा है। वैसे भी विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जिसे यज्ञों का देश कहा जा सकता हैं। वर्ष भर में प्रत्येक रितु-प्रत्येक पर्व के प्रारंभ अथवा समापन के अवसर पर यज्ञों का आयोजन होता रहता है। यज्ञों का यह सिलसिला एक कुंडी से लेकर 5, एकादश, इक्कीस, इक्यावन, एक सौ एक से लेकर हजार कुण्डी अथवा उसे भी अधिक यज्ञ वर्तमान कलियुग में हुए है। अपने सम्प्रदाय धर्म के अनुसार राम कृष्ण रूद्र जगदम्बा (भवानी-शक्ति)-हनुमान-गायत्री आदि के यज्ञ होते आये है और जब तक सृष्टि है होते रहेंगे।
यज्ञ भी जैसा कि श्रीमद् भगवद्गीता के सत्रहवें अध्याय के श्लोक संख्या 11-12 और 13 में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया है समस्त यज्ञों को सात्विक, राजस और तामस 3 श्रेणी में विभाजित किया है। जो यज्ञ शास्त्रीय विधि से करना ही कर्तव्य समझकर फल को नहीं चाहते हुए निष्काम भाव से किया जाता है उसे सात्विक तथा जो दम्भाचरण से फल को उद्देश्य में रखकर किया जाता है उसे राजस तथा शास्त्रीय विधि से हीन अन्नदान से रहित और बिना मंत्रों बिना दक्षिणा और बिना श्रद्धा के अपने निजी मतलब और दूसरों को कष्ट देने के लिये किया जाता है जैसा रावण मेघनाथ ने किया था जिसमें तापसी वस्तुओं को हवन में डाला जाता है, उसे तामस यज्ञ कहा गया है।
प्राचीन काल में जिन 3 महायज्ञों अश्वमेध, राजसूय और सोम यज्ञ को विशेष उल्लेख और महत्व कहा है।
प्रत्येक युग में अलग-अलग इन यज्ञों के आयोजित होने के उदाहरण मिलते है। चूंकि यहां चर्चा सोमयज्ञ की हो रही है योग गुरू बंशीलाल टांक ने बताया कि सोम यज्ञ भगवान पशुपतिनाथ की इस पावन नगरी में दूसरी बार हो रहा है। प्रथम बार भगवान पशुपतिनाथ परिसर में हुआ था जिसेक मुख्य प्रवर्तक प्रेरक माननीय सांसद श्री सुधीर जी गुप्ता थे जो हाल के यज्ञ के भी हैं उनके साथी रहे थे। टांक उस यज्ञ के प्रातः यज्ञ प्रारंभ से लेकर संध्या समाप्ति तक साथ रहे। उस समय उस यज्ञ का आयोजन वर्षा नहीं होने से वर्षा के लिये हुआ था और यज्ञ की सफलता का चमत्कार उस समय देखने को मिला था जब समापन दिवस पर पूर्णाहुति के समय जैसे ही आचार्यों द्वारा आहूति दी गई यज्ञ कुण्ड से लगभग 8-10 फीट ऊंची ज्वाला प्रकट हुई एकदम से बादल घिर गये, तूफान आया और बारिश (बूंदाबांदी) होने लगी। यज्ञ कैसा भी हो जैसा कि उक्त गीता में कहा गया है भगवान कृष्ण के उपदेश को ध्यान में रखकर किया जाता है। उसे इष्ट फल की सिद्धि अवश्य होती है।
12 अप्रैल से 18 अप्रैल तक कालाखेत मंदसौर में आयोजित सोम महायज्ञ का आयोजन केवल मंदसौर नगरवासियों के लिए नहीं सम्पूर्ण जिला क्षेत्र के लिये पूर्व सोमयज्ञ की ही तरह यह यज्ञ भी सिद्ध और सफल हो ऐसी भगवान पशुपतिनाथ से प्रार्थना है। सपरिवार इष्ट मित्रों सहित सबको इसमें सम्मिलित अलभ्य लाभ लेना चाहिए।